ओलंपियन,भारत केसरी,हिंद केसरी,अर्जुन अवॉर्डी, पदम श्री जैसे अवार्ड जीत चुके मास्टर चंदगीराम हरियाणा के जिला हिसार के सबसे बड़े गाँव सिसाय में 9 नवम्बर 1937 में जन्मे थे।
-कुश्ती के लिए ऐसा लगाव था कि अपने चाचा से प्रेरित होकर ब्याह के बाद भी पहलवानी के लिए ब्रहमचारी का पालन किया।उनके हाथो कि पकड़ इतनी मजबूत थी कि प्रतिद्वंद्वी के पोहंचे को पकड़कर सुन्न कर देते थे।इनके नाम का रूक्का रूस से लेकर पुरे मध्य एशिया के देशों ओर अमेरिका तक रहा।
-मास्टर साहब शुरू में कुछ समय के लिए भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट में सिपाही रहे और बाद में स्कूल टीचर होने के कारण उनको ‘मास्टर चंदगीराम’ भी कहा जाने लगा था। सत्तर के दशक में भारत के सर्वश्रेष्ठ पहलवान रहे। लंबाई 6 फुट 3 इंच ओर हाड-पाँव ऐसे कि एक घड़ी आदमी खड़ा खड़ा देखता रहे ओर व्यक्तितव इतना सहज कि पथर भी पिंघल जाए।चौधरी साहब ने कई फिल्मों में भी काम किया। भारत का हर प्रभावशाली मास्टर साहब से मिलने को तरसता था।
मास्टर चंदगीराम ने मैट्रिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आर्ट और क्राफ्ट मे डिप्लोमा किया । उनके व्यक्तित्व में उनकी पगड़ी ने और भी अधिक निखार ला दिया था । चंदगीराम का कुश्ती खिलाड़ी के रूप में कैरियर थोड़ा देर से शुरू हुआ । वह जब कुश्ती के क्षेत्र में आए तब वह 21 वर्ष के थे । जब उन्होंने राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती, तब वह अचानक प्रसिद्धि पा गए । साठ के दशक में राजस्थान के पहलवान मेहरदीन की तूती बोलती थी।
तब चंदगीराम का कैरियर उठान पर था। उनके बीच दो बार मुकाबला रखा गया लेकिन किन्हीं कारणों से नहीं हो पाया। तीसरी बार प्रोगाम बनने पर जब दोनों पहलवान मैदान में उतरे तो पहले राउंड तक मेहरदीन कुछ हावी रहे। दूसरे राउंड में ने कलाइयों के पास से मेहरदीन को ऐसा जकड़ा कि उनके हाथों ने जवाब देना बंद कर दिया।
तभी उन्होंने मेहरदीन को नीचे पटका और उनके छाती पर घुटने टेककर बैठ गए। इस जीत से उन्हें हिंद केसरी के खिताब से नवाजा गया। तब मेहरदीन ने कहा था कि मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं एक नहीं, दो पहलवानों से लड़ रहा हूं।उन्होंने 1961 में अजमेर में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती, फिर 1962 में जालंधर में वह राष्ट्रीय चैंपियन बने । इस बीच 1962 में उन्हें दिल्ली में ‘हिन्द केसरी’ का खिताब भी दिया गया । इसके पश्चात् चंदगीराम ने 1968 में रोहतक में तथा 1972 में इंदौर में राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीतीं । 1968 तथा 1969 में उन्होंने दिल्ली में आयोजित ‘भारत केसरी’ खिताब जीता । 1969 तथा 1970 में चंदगीराम ने लखनऊ का ‘भारत भीम’ खिताब जीत लिया ।
1969 में उन्हें ‘रुस्तमे हिन्द’ की उपाधि से सम्मानित किया गया ।चंदगी राम को पता था कि हर जगह गद्दों की तो व्यवस्था नहीं हो सकती मगर ओलंपिक में कुश्ती में हिस्सा लेने के लिए ज़रूरी है कि पहलवान अपने प्रतिद्वन्द्वी का जांघिया न पकड़ें और उन्होंने इस पर ज़ोर दिया. हालाँकि इसका विरोध भी हुआ पर आख़िरकार उनकी बात मानी गई………… उनका सर्वाधिक प्रशंसनीय प्रदर्शन 1970 में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिला ।
उन्हें 1971 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया | 1970 में बैंकाक एशियाई खेलों में चंदगीराम ने 100 किलो वर्ग में भाग लिया और ईरान के विश्व चैंपियन अंबानी अबुल फजल को हरा कर स्वर्ण पदक जीत लिया । इसके दो वर्ष पश्चात् जर्मनी के म्यूनिख में हुए 1972 के ओलंपिक खेलों में चंदगीराम ने भारत का प्रतिनिधित्व किया ।
1969 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया | बात 1977 – 1978 के आस पास की है। एक पत्रकार की लखनऊ से प्रकाशित होने वाले navjeewan अखबार के खेल विभाग में भर्ती नई नई हुई थी अखबार के संपादक ने कहा कि लिखा करोए मैं तुम्हें प्रति लेख 30.40 रुपए दिला दूंगा। पत्रकार किसी काम से फिरोजाबाद गया हुआ था वही पर पता चला की गुरू हनुमान जी वहॉ धर्मशाला मे रूके हुये है।
पत्रकार ने सोचा की क्यो ना गुरू हनुमान जी का साक्षातकार लेता चलू जब पत्रकार धर्मशाला पहुंचा धर्मशाला में प्रवेश करते ही बारामदे में एक चारपाई पर एक शानदार पर्सनेल्टी का एक व्यक्ति बैठा नजर आया। जब पत्रकार ने पूछा.श्मै गुरु हनुमान से मिलने आया हूं। क्या उनसे मुलाकात संभव हो सकेगीघ्श् जवाब मिलाए श्गुरु हनुमान तो कहीं बाहर चले गए हैं। आपको उनसे क्या काम है पत्रकार ने बताया में एक अखबार से हूं और उनका इंटरव्यू करना चाहता हूं।
इस पर उस व्यक्ति ने कहाए इंटरव्यू करना है तो मेरा कर लो। यह सुनकर पत्रकार थोड़ा रोमांचित हुआ और यह जिज्ञासा जागी कि यह सज्जन कौन हैं। इस पर उन सज्जन ने खुद ही बतायाए मैं ashiya चैंपियन पहलवान मास्टर चंदगीराम हूं। पत्रकार ने मास्टर जी का साक्षातकार लिया साक्षातकार के बाद पत्रकार की नजर चन्दकी राम जी के हाथ पर पडी उनके हाथ मे एक घडी बन्धी हुई थी घडी का पट्टा छोटा पड रहा था जिसमे एक कलेउ बन्धा हुआ था तब मास्टर जी ने बताया की घडी के पट्टे मेरे हाथ मे छोटे पड जाते है।
चंदगीराम ने भारतीय स्टाइल की कुश्ती में अपना नाम खूब कमाया । इसी कारण उनके प्रदर्शनों में खूब भीड़ इकट्ठी होती थी । उनके तेवर जो उन्होंने ‘हिन्द केसरी’ खिताब के लिए राजस्थान के मेहरदीन के विरुद्ध प्रदर्शित किए, अत्यंत प्रशंसनीय रहे और लोगों ने उनके प्रदर्शन की खूब सराहना की ।
चंदगीराम ने हरियाणा राज्य के अतिरिक्त खेल निदेशक का कार्य भी किया । उन्होंने दो फिल्मों में अभिनय भी किया जिनमें उन्होंने वीर घटोत्कच और टार्जन की भूमिकाएं निभाईं । उन्होंने कुश्ती से अपना नाता बाद तक भी नहीं तोड़ा क्योंकि इसी कुश्ती के खेल से उन्हें नाम व प्रसिद्धि मिली थी ।
चंदगीराम ने दिल्ली में यमुना नदी के किनारे अखाड़ा खोल लिया । चंदगीराम ने कुश्ती पर एक पुस्तक भी लिखी है-भारतीय कुश्ती के दांव-पेंच । जून 2010 में प्रसिद्ध पहलवान चंदगी राम का निधन हो गया था।