गंगा नदी किनारे स्थित कुटिया में याज्ञवल्क्य नाम मुनि अपनी पत्नि के साथ रहा करते थे. उनकी कोई संतान नहीं थी. दोनों को संतान की कामना थी. अतः वे इस हेतु सदा ईश्वर से प्रार्थना किया करते थे.
एक दिन मुनि नदी किनारे अपने दोनों हाथ फैलाये ईश्वर से संतान प्राप्ति हेतु प्रार्थना कर रहे थे. तभी आकाश में उड़ता हुआ एक कौवा उनके ऊपर से गुजरा. कौवे ने अपनी चोंच में एक नन्हीं चुहिया को दबाया हुआ था.
मुनि के ऊपर से गुजरते समय कौवे की चोंच से छिटककर चुहिया उनकी हथेली में जा गिरी, जिसे देख मुनि ने सोचा कि अवश्य ही ईश्वर ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली है और ये चुहिया संतान स्वरुप प्रदान की है.
चुहिया को एक सुंदर कन्या का रूप दे वे अपने घर ले गए और अपनी पत्नि को सौंपते हुए बोले, “ईश्वर ने यह कन्या हमें प्रदान की है. अब से ये हमारी पुत्री है और इसके पालन-पोषण का संपूर्ण दायित्व हमारा है.”
मुनि पत्नि ने भी उस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया. तबसे वह कन्या मुनि की कुटिया में पलने लगी.
समय व्यतीत हुआ और वह कन्या बड़ी हो गई. मुनि की पत्नि को उसके विवाह की चिंता सताने लगी. एक दिन उसने मुनि से अपनी पुत्री के लिए एक सुयोग्य वर ढूंढने को कहा.
कुछ देर विचार उपरांत मुनि इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कि सूर्यदेव ही उनकी पुत्री के लिए श्रेष्ठ वर हैं. उन्होंने सूर्यदेव की आराधना प्रारंभ की. जब सूर्यदेव के दर्शन दिए, तो साधु ने अपनी पुत्री से पूछा, “क्या तुम्हें सूर्यदेव अपने पति के रूप में स्वीकार है?”
पुत्री ने उत्तर दिया, “क्षमा करें पिताश्री. सूर्यदेव में इतना ताप है कि इनके समक्ष मैं क्षण भर में राख में परिवर्तित हो जाऊंगी. मैं इनसे कैसे विवाह कर सकती हूँ? कृपा कर आप मेरे लिए कोई दूसरा वर ढूंढिए.”
पुत्री के उत्तर सुन मुनि ने सूर्यदेव से पूछा, “सूर्यदेव, अब आप ही बतायें कि मेरी पुत्री के लिए आपसे श्रेष्ठ वर कौन होगा.?”
सूर्यदेव ने उत्तर दिया, “मेरे अनुसार मेघ तुम्हारी पुत्री के योग्य है क्योंकि उसमें मुझे ढक देने का सामर्थ्य है.”
मुनि ने मेघ प्रार्थना प्रारंभ की और उनके दर्शन देने पर अपनी पुत्री से पूछा, “क्या तुझे मेघ अपने पति के रूप में स्वीकार हैं?”
पुत्री ने यह प्रस्ताव भी अस्वीकार कर दिया और बोले, “पिताश्री! मैं इतने काले व्यक्ति से विवाह नहीं करना चाहती. साथ ही इनकी गड़गड़ाहट से भी मुझे डर लगता है.”
मुनि ने मेघ से परामर्श लिया, तो मेघ बोले, “मेरे विचार में वायुदेव तुम्हारी पुत्री के योग्य है क्योंकि उनमें मेघ को उड़ा देने की शक्ति है.”
मुनि ने वायुदेव को आराधना कर प्रसन्न किया और उनके दर्शन देने पर अपनी पुत्री से पूछा, “क्या तुझे वायुदेव स्वीकार हैं?”
मुनि पुत्री बोली, “वायुदेव तो बड़े चंचल हैं. कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहते. मैं उनसे विवाह नहीं कर सकती.”
मुनि ने वायुदेव से उनसे अच्छे वह के बारे में पूछा, तो वे बोले, “मुझसे अच्छा पर्वत है, जो मजबूती से एक स्थान पर डटा रहता है और तेज हवा, आंधी और तूफ़ान से भी नहीं डिगता.”
मुनि पुत्री सहित पर्वत के पास गया और पुत्री का विचार पूछा, तो वह बोली, “ये बड़े कठोर ह्रदय के हैं. मैं इनसे विवाह नहीं कर पाऊंगी.”
तब पर्वत ने मुनि को सुझाया कि मुझसे योग्य चूहा है. वह कोमल तो है. पर साथ ही पर्वत में भी सुराख़ कर देने की शक्ति रखता है.”
मुनि मूषकराज को बुलाया और अपनी पुत्री से पूछा कि क्या उसे मूषकराज से विवाह स्वीकार है. मूषकराज को देख मुनि की पुत्री को एक अपनत्व भाव का अनुभव हुआ और वह उस पर मुग्ध हो गई. उसने उसने मूषकराज से विवाह करना स्वीकार कर लिया.
तब मुनि अपनी पुत्री से बोला, “यह भाग्य ही है. तुम इस दुनिया में चुहिया के रूप में आई और अब भाग्य से तुम एक चूहे से ही विवाह कर रही हो. मैं तुम्हें तुम्हारा मूल रूप वापस प्रदान करता हूँ.”
मुनि ने अपनी पुत्री को चुहिया में परिवर्तित कर दिया और
उसका विवाह मूषकराज से करवा दिया.
सीख – बाह्य स्वरुप परिवर्तित हो जाने से आंतिरक स्वरूप परिवर्तित नहीं होता ||