सालों पहले की बात है, चंदनपुर नाम के एक गांव में दगड़ू नाम का लड़का रहा करता था। वह बहुत ही आलसी और कामचोर था। दगड़ू के आलस और दिन-रात सोने की आदत से उसकी बूढ़ी मां परेशान रहती थी। किसी तरह वो दर्जी का काम करके अपना परिवार चलाती, लेकिन दगड़ू पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। वो तो बस दिन रात सोता और सपने देखा करता था, लेकिन सबसे अनोखी बात यह थी कि जब भी वो कोई अनहोनी या बुरी घटना से जुड़ा सपना देखता, तो कुछ घंटों बाद वह सपना सच हो जाया करता था।
एक दिन रोज की तरह दगड़ू सो रहा था, अचानक उसे सपना आया कि एक लड़की की शादी में डाकू आए और सारा समान लूटकर ले गए। जैसे ही सुबह हुई, उस आलसी लड़के को सपने में दिखी लड़की अपने घर में नजर आई। वो लड़की अपनी शादी का जोड़ा लेने दर्जी के पास आई थी। लड़की को देखते ही दगड़ू उसे तुरंत अपने सपने के बारे में बताता है। लड़की परेशान होकर घर जाती है और घरवालों को सारी बात बताती है। सब लोग सपने की बात सुन तो लेते हैं, लेकिन उस पर विश्वास नहीं करते और कुछ ही घंटों बाद लुटेरे शादी का घर और बरातियों को लूटकर चले जाते हैं। इस घटना से गुस्सा होकर लोग दगड़ू की पिटाई कर देते हैं और उस पर लुटेरों के साथ मिले होने का आरोप लगाते हैं।
इसके बाद दगड़ू को कुछ दिनों बाद एक और सपना आता है। इस बार दगड़ू अपनी ही पड़ोस की चौधराइन के नए मकान में आग लगने का सपना देखता है। दोपहर के समय जब वो आलसी लड़का घर से बाहर निकलता है, तो उसे चौधराइन मोहल्ले में नए घर की खुशी में मिठाई बांटती और लोगों को गृह प्रवेश समारोह में न्यौता देती नजर आती है। महिला को देखते ही उसके पास दगड़ू भागा चला जाता है और उसे अपने सपने के बारे में सब कुछ बता देता है। महिला दगड़ू पर नाराज होकर वहां से चली जाती है, लेकिन समारोह से पहले घर को आग से बचाने का पूरा बंदोबस्त कर लेती है, लेकिन फिर भी दगड़ू का सपना सच हो जाता है और चौधराइन का घर जलकर राख हो जाता है।
ऐसा सालों तक चलता जाता है। हर बार दगड़ू बुरा सपना देखते ही लोगों को सतर्क करने के लिए पहुंच जाता, लेकिन आखिर में उसे ही लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ता। इससे तंग आकर दगड़ू गांव छोड़ने का फैसला लेता है। वो गांव से दूर एक दूसरे राज्य में चला जाता है। यहां अपना पेट पालने के लिए दगड़ू नौकरी ढूंढने लगता है। किस्मत से उसे एक राजा के यहां चौकीदार का काम मिल जाता है।
दगड़ू को नौकरी मिलने के कुछ दिनों बाद ही राजा को सोनपुर गांव निकलना होता है। सोनपुर जाने से एक दिन पहले की रात दगड़ू को सपना आता है कि सोनपुर गांव में भयानक भूकंप आया और वहां कोई भी जिंदा नहीं बचा। जैसे ही सुबह राजा की सवारी सोनपुर की तरफ रवाना होने लगती है, तो दगड़ू फटाफट राजा के रथ के पास पहुंचकर उन्हें अपने सपने के बारे में बताता है और उन्हें सोनपुर जाने से रोक लेता है। अगले ही दिन राजा के पास समाचार पहुंचता है कि उस गांव में भूकंप आने के बाद कोई भी जिंदा नहीं बचा, पूरा गांव श्मशान में तब्दील हो गया।
समाचार मिलते ही राजा चौकीदार को अपने दरबार में बुलवाते हैं। सोनपुर में आए भूकंप से बचाने के लिए वो दगड़ू को कीमती जेवर देकर नौकरी से निकाल देते हैं। इतनी कहानी सुनाकर बेताल चुप हो जाता है। कुछ देर बात वो राजा विक्रम से पूछता है – बताओ, ‘दगड़ू को उपहार देने के बाद नौकरी से क्यों निकाल दिया गया?’ सवाल सुनते ही राजा विक्रमादित्य जवाब देते हैं कि उसे जेवर राजा की जान बचाने के लिए दिए गए और चौकीदारी करते समय सोने के लिए उसे नौकरी से निकाल दिया गया।
अपने सवाल का जवाब मिलते ही बेताल दोबारा से उड़कर घनघोर जंगल में जाकर किसी पेड़ में बैठ जाता है और विक्रमात्दिय दोबारा उसकी खोज में निकल जाते हैं।
कहानी से सीख:
इस कहानी से दो सीख मिलती है। पहली, काम के प्रति लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। वरना परिणाम गंभीर हो सकते हैं। दूसरी, किसी का भला करने पर अगर बुराई या फटकार मिल रही हो, तो भी भलाई करने का रास्ता नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि कभी न कभी अच्छे कर्म का फल जरूर मिलता है।