बात 1920 s की है। हंगरी आर्मी का एक नौजवान लड़का था जिसकी ज़िन्दगी में बस एक ही मकसद था; उसका मकसद था दुनिया का सबसे अच्छा pistol shooter बनना। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वो दिन-रात मेहनत करता, घंटो प्रैक्टिस करता, और इसी का परिणाम था कि वो अपने देश के टॉप पिस्टल शूटर्स में गिना जाने लगा।
सन 1938 में , 28 साल का होते-होते उसने देश-विदेश की कई shooting championships जीत ली थी और सभी को यकीन हो चला था कि दांये हाथ का ये निशानेबाज 1940 के टोक्यो ओलंपिक्स में गोल्ड मैडल जीत कर ही दम लेगा!
लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंज़ूर था! एक आर्मी ट्रेनिंग सेशन के दौरान उसके दांये हाथ में मौजूद एक हैण्ड ग्रेनेड फट गया… इस हादसे में उसने अपना दांया हाँथ गंवा दिया और इसके साथ ही उसका ओलंपिक गोल्ड मैडल जीतने का सपना भी चकनाचूर हो गया। वह एक महीने तक हॉस्पिटल में पड़ा रहा और उसके बाद जब बाहर निकला तो उसकी दुनिया बदल चुकी थी…अब उसकी सबसे बड़ी ताकत उसका दांया हाथ उसके साथ नहीं था!
कोई आम इंसान होता तो क्या करता? अपने भाग्य को कोसता… लोगों की sympathy लेने की कोशिश करता या लोगों से कटने लगता, may be depression में चला जाता और अपने ज़िन्दगी के मकसद को भूल जाता।
लेकिन बचपन से दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शूटर बनने का सपना देखने वाला वो लड़का तो किसी और ही मिट्टी का बना था… बाकी लोगों की तरह उसने ये नहीं सोचा कि उसने अपना वो हाथ खो दिया है जिसे दुनिया का सबसे अच्छा शूटिंग हैण्ड बनाने में उसने दिन रात एक कर दिए…बल्कि उसने सोचा कि मेरा एक हाथ बेकार हो गया तो क्या…. अभी भी मेरे पास भगवान् का दिया एक और हाथ है जो पूरी तरह से ठीक है और अब मैं इसी हाथ को दुनिया का सबसे अच्छा शूटिंग हैण्ड बना कर रहूँगा!!! और अपने इसे attitude के साथ वो एक बार फिर शूटिंग प्रैक्टिस में जुट गया और असम्भव को सम्भव बनाने की कोशिश करने लगा।
लगभग एक साल बाद वो नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में पहुंचा! इतने समय बाद उसे वहां देख बाकी शूटर्स उसकी हिम्मत की दाद देने लगे कि इतना कुछ हो जाने पर भी वो उन्हें encourage करने के लिए आया है।
पर जल्द ही वे आश्चर्य में पड़ गए जब उन्ह पता चला कि वो उन्हें encourage करने के लिए नहीं बल्कि उनसे मुकाबला करने के लिए आया है।
मुकाबला हुआ…और पूरी दुनिया को हैरान करते हुए अदम्य साहस वाले उस सख्श ने अपने बाएँ हाथ से वो मुकाबला जीत लिया।
एक बार फिर लगने लगा कि वो दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शूटर बनने का अपना सपना पूरा कर सकता है और ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीत सकता है। पर दुर्भाग्य तो मानो उसके पीछे पड़ा था… विश्व युद्ध की वजह से 1940 और 1944 के ओलंपिक गेम्स कैंसिल हो गए और सीधे 1948 London Olympics कराने का फैसला लिया गया।
इस बीच कितने ही नए शूटर्स अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के लिए खड़े हो गए…कहाँ अपने प्राइम डेज में उसे दाएं हाँथ से मुकाबला करना था और कहाँ इतने सालों बाद अब बाएँ हाँथ से विश्वस्तरीय मुकाबले में भाग लेना था।
पर उसे इन बातों की फ़िक्र ही कहाँ थी वो तो बस एक ही चीज जानता था….practice…practice..and…practice…वो दिन रात अभ्यास करता रहा… और लन्दन ओलंपिक्स में दुनिया के बेहतरीन शूटर्स के बीच मुकाबला करने उतरा… उसके साहस…उसकी हिम्मत और उसके धैर्य का आज इम्तहान था और उसने किसी को निराश नहीं किया वो उस इम्तहान में पास हो गया….उसने गोल्ड मैडल जीत लिया।
दोस्तों, उस लड़के का नाम था कैरोली टैकाक्स (Károly Takács) . और उसकी ये unbelievable story हर उस सख्स के लिए एक बहुत बड़ा सन्देश है जो जरा सी परेशानी आने पर हार मान लेते हैं, जो अपनी असफलता के पचास कारण गिनाने में आगे रहते हैं पर सफल होने की एक भी वजह नहीं बता पाते!
Friends, दुनिया में बस एक ही इंसान है जो आपको कामयाब या नाकामयाब बना सकता है और वो इंसान आप खुद हैं। सफलता के संघर्ष में जब भी आपको लगे कि आपके साथ कुछ बुरा हुआ है तो एक बार उस एक हाथ वाले पिस्टल शूटर के बारे में ज़रूर सोचिये और खुद ही decide करिए कि क्या ये अपना एक हाथ खो देने से भी बुरा है… लाइफ में ups and downs को आने से हम नहीं रोक सकते…पर हम अपने साथ बुरा होने पर कैसे react करते हैं, इस चीज को ज़रुर control कर सकते हैं। इसलिए situation चाहे जितनी भी बुरी हो जाए अपना attitude positive बनाये रखिये, अपना ध्यान अपने लक्ष्य पर लगाए रखिये और इस दुनिया को अपनी मंजिल पाकर दिखाइए!
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