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खुशियां बांटो, खुश रहो!!

एक नगर में एक सेठ रहता था। वह बहुत कंजूस था। धन के प्रति उसका मोह इतना अधिक था कि वह एक पैसा भी खर्च नहीं करना चाहता था। प्रचुर मात्रा में धन होते हुए भी वह निर्धनों की तरह जीवन व्यतीत करता था। 

उसका परिवार भी उसकी कंजूसी की आदत से दुखी रहता था। घर में सब कुछ होते हुए भी उन बेचारों को गरीबों की तरह जीवन जीना पड़ता था। अगर कभी उसकी पत्नी या बेटे उसकी अनुपस्थिति में थोड़ा भी धन खर्च कर देते तो वह आगबबूला हो जाता।

इससे तंग आकर एक दिन उसकी पत्नी और बेटे घर छोड़ कर चले गए। इससे सेठ को दुखी होने चाहिए था। लेकिन वह बहुत खुश हुआ। उसने सोचा कि उन लोगों के जाने से फायदा ही हुआ। उनके ऊपर जो धन व्यय होता था। अब वह भी बच जाएगा। साथ ही जो दिन रात यह चिंता लगी रहती थी कि मेरी अनुपस्थिति में ये लोग मेरा धन व्यय न कर दें, उससे भी मुक्ति मिल गयी।

अब वह बड़े आनन्द से अकेले रहने लगा। शुरू शुरू में तो उसे अच्छा लगा। लेकिन जैसे जैसे दिन बीतते गए। उसे अकेलापन खलने लगा। परिवार की कमी उसे महसूस होने लगी। अब वह उदास रहने लगा। धीरे धीरे वह बीमार पड़ गया।

धंधे में भी उसका मन कम लगने लगा। दिन पर दिन उसकी बीमारी बढ़ती जा रही थी और अब तो वह बिस्तर पर ही पड़ा रहने लगा। उसके एक पड़ोसी जो बहुत ही उदार व्यक्ति थे, एक दिन सेठ से मिलने आये। सेठ को बिस्तर पर पड़ा देखकर उसे बहुत दुख हुआ।

उसने सेठ से बातचीत के दौरान सेठ की बीमारी का कारण जान लिया। पड़ोसी ने सेठ से कहा, “सेठ जी मेरे पास आपकी बीमारी का उपाय है। लेकिन जो उपाय मैं आपको बताऊँगा उसे एक महीने तक लगातार करना पड़ेगा। सेठ बीमारी की स्थिति से परेशान था। अतः तुरंत तैयार हो गया।

तब पड़ोसी ने उसे बताया कि प्रतिदिन सुबह के समय एक मुट्ठी चावल आंगन में डालने हैं और उसका परिणाम देखना है। इसके बाद पड़ोसी अपने घर चला गया। अगले दिन सेठ ने सुबह के समय घर के आंगन में एक मुट्ठी चावल बिखेर दिए।

थोड़ी देर बाद वहां दाना चुगने के लिए पक्षी एकत्र होने लगे। सेठ बैठकर पक्षियों के क्रियाकलाप देख रहा था। पक्षियों की चहचहाहट से घर भर गया। सेठ को बड़ा मजा आया। अब तो वह रोज सुबह होने का इंतज़ार करता रहता। पक्षियों की चहचहाहट और उनके खेल में उसे बड़ा आनन्द आने लगा।

उसकी तबियत में भी सुधार आने लगा। धीरे धीरे वह ठीक हो गया और खुश भी रहने लगा। एक दिन वह मिठाई लेकर अपने पड़ोसी के घर धन्यवाद देने गया। पड़ोसी सेठ को देखकर हैरान हो गया। सेठ ने बीमारी का उपाय बताने के लिए पड़ोसी को धन्यवाद कहा।

पड़ोसी ने कहा, “सेठजी, यह कोई उपाय नहीं था। आपकी समस्या का कारण आपका अकेलापन था। पक्षियों की चहचहाहट और उनके खेल से आपके अंदर का अकेलापन और उदासी दूर हुई। सेठजी! धन के प्रति आपके मोह ने आपको परिवार से दूर कर दिया।”

पड़ोसी फिर बोला, “सेठजी! धन का सदुपयोग कीजिये। दूसरों को खुशियां बांटने से खुशियां मिलती हैं। लोगों की मदद कीजिये। धन तो आता जाता रहता है। लेकिन खुशियां अनमोल हैं। खुशियां बांटो, खुश रहो।

कहानी से सीख Moral of Story

मोरल स्टोरी- खुशियां बांटो, खुश रहो हमें यह शिक्षा देती है कि हमें अपने आस पास लोगों को खुश रखने का प्रयत्न करना चाहिए। सब खुश रहेंगे तो हमें भी खुशी मिलेगी। इसलिए खुशियां बांटो, खुश रहो।

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