श्री कृष्ण एवम देवी रुकमणी ब्रह्माण भ्रमण पर निकले थे तभी उनकी नजर एक परिवार पर पड़ी उस परिवार के सभी सदस्य धन संचय में लगे रहते थे दिन रात मेहनत कर पैसा भविष्य के लिए सुरक्षित कर देते थे यह देख देवी रुक्मणी उनकी प्रशंसा करती हैं जिसे सुन श्री कृष्ण मुस्कुराने लगे और कहते कि ये मुर्ख हैं | देवी ने उनके इस कथन का कारण पूछा तब श्री कृष्ण ने उन्हें ऋषि वेद व्यास की एक कहानी सुनाई
एक दिन प्रश्नकाल के वक्त शिष्य ने गुरु व्यास से एक प्रश्न किया कि हे गुरु ! धन संचय करना उचित हैं या नहीं | ऋषि वेद व्यास ने कहा अति सदा ही बुरी होती हैं पुत्र | शिष्य ने इसको विस्तार से बताने का आग्रह किया |
ऋषि वेद व्यास ने पूछा पुत्र क्या तुमने रेशम का कीड़ा देखा हैं यह एक अनमोल कीड़ा होता हैं जो अपने भीतर रेशम जैसे अमूल्य धागे को जन्म देता हैं वह अपने चारो तरफ इस अनमोल धागे का सांचय करता हैं और जाल बुनता जाता हैं जो उसे जकड़ लेता हैं यह उसकी जमा पूंजी है जो उसके किसी काम की नहीं होती इस जमा पूंजी के फल के लिए उसे अपने प्राण देना होता हैं और उसकी मृत्यु के बाद यह रेशम किसी अन्य के लिए लाभकारी होता हैं अत: इस संचय का उस कीड़े को कोई लाभ नहीं होता अपितु उसकी मृत्यु का कारण बनता हैं |आवश्यक्ता से अधिक धन का संचय विनाश का कारण बनता हैं |
यह कहानी सुनकर देवी को समझ आ गया कि भगवान ने उस परिवार को मुर्ख क्यूं कहा | अति का कभी भगवान भी सहयोग नहीं करते जीवन में हर चीज़ का संतुलन होना आवश्यक हैं |
कहानी की शिक्षा
अति सर्वत्र वर्जयेत् | किसी बात की अधिकता जीवन के लिए उचित नहीं होती जीवन को संतुलित करना ही जीवन को सफल बना सकता हैं |