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पाँच सौ रुपये कम पड गऎ, वरना

रौबीला चेहरा घुमावदार बड़ी बड़ी मूंछे ……आँखों में जबरदस्त चमक …हाथों में दोनाली बंदूक और पैरो के पास पड़ा हुआ कम से कम दस फूट का बब्बर शेर…
पेंटिंग्स की दुकान में तस्वीरें देखते देखते बाबूलाल अचानक इस तस्वीर के सामने रुक गए थे और एकटक देख रहे थे उसे …
तस्बीर ने जैसे बाबूलाल को जकड़ सा लिया था …
5000 /-रु. ………बाबूलाल के पूछने पर दुकानदार ने उस तस्वीर की कीमत बताई…
हालांकि कीमत कुछ ज्यादा लगी फिर भी बाबूलाल ने अपनी जेब से रुपये निकाल कर गिने तो वे महज 4500/- ही निकले
बाबूलाल ने उस दुकानदार से वह तस्वीर 4500/- रु. में उन्हें बेचने का आग्रह किया, किंतु दुकानदार ने मना कर दिया…
दो दिन बाद बाबूलाल पुनः पूरे 5000/- रु़ लेकर दुकान पर पहुंचे तो गए लेकिन तबतक वो तस्वीर बिक चुकी है …
कई महीनों तक बाबूलाल को तस्वीर ना खरीद पाने का मलाल रहा…
आज चार बर्षो के पश्चात अपने मित्र साधुराम के ड्राइंगरुम की शोभा बढाते हुऎ उसी तस्वीर को देखकर बाबूलाल ने जब साधुराम से उस तसवीर के बारे में पूछा तो साधुराम ने बड़े गर्व से बताया कि ये उनके दादाजी की तस्बीर है….. बहुत ही बड़े शिकारी थे दादाजी… बीसियों शेरो का शिकार किया था दादाजी ने… अकेले ही….. कई अंग्रेज अपॉइंटमेंट लेते थे दादाजी से शिकार करने को …
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बाबूलाल साधुराम की बातें सुन मन ही मन कह रहे थे…….कि साले पाँच सौ रुपये कम पड गऎ थे …….वरना आज ये मेरे दादाजी होते !!!

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