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संघर्ष से सहयोग तक

एक परिवार की कहानी

अब तो रघु और पारो के लिए एक एक दिन निकलना भारी होता जा रहा था, बेटा बहू रोज़ किसी न किसी बात पर आपस में भिड़ जाते नतीज़ा बाजू की खोली में रहते मां बाप और पोता,डरे से बिल्कुल चुप हो जाते प्यार से बेटा दोनों को शहर ले आया था पर महंगाई ने सभी की कमर तोड़कर रख दी ऐसे में दोनों एक दूसरे पर दोषारोपण शुरु कर देते नतीज़ा सहमा सा बच्चा और माता पिता अपने को गुनहगार सा समझने लगते!! शुक्र है छोटा सा जमीन का टुकड़ा खरीद लिया था तो दो कमरे बना लिए, प्लास्टर तो आज़ तक नहीं करा पाए!

यूं तो बहू भी बुरी नहीं पर वो भी कितना सहन करे, रघु और पारो ने एक दूसरे की ओर देखा और मन ही मन एक फैसला किया, बच्चे को तैयार कर टिफिन दे स्कूल भेजा और बेटे बहू को अपनी खोली में बुलाया!! “क्या बात है बेटा रोज़ रोज़ होते तुम्हारे झगड़े बढ़ते जा रहे हैं हम कुछ जानते नहीं, तुम दोनों कुछ बताते नहीं… कुछ तो पता चले हमें ताकि कुछ मदद कर सकें, अगर हम दोनों के यहां रहने से कोई परेशानी है तो खुलकर बताओ!!”

“अरे नहीं बाबूजी , आप क्यों वजह होंगे है न दिव्या?”
“हां बाबूजी ऐसे कैसे सोचा आपने ” बहू भी पास आकर खड़ी हो गई “तो कारण क्या है हमें भी तो पता चले पारो बोल पड़ी!!”
“दरअसल बाबूजी फैक्ट्री में छंटनी हो रही है,वेतन में भी कटौती होगी, दिव्या को अगरबत्ती कंपनी में छह हजार मिलते हैं, मेरा वेतन कम हो गया तो गुजारा कैसे होगा, राजू की फीस घर का खर्च कैसे चलेगा, दिव्या से खर्च कम करने को कहता हूं तो ये चिड़चिड़ाने लगती है मुझ पर कहते हुए निराश होकर भोला सिर पकड़कर नीचे बैठ गया!!” “अरे तो हमें क्यूं न शामिल किया अपनी परेशानी में ,आख़िर जीवन भर ड्राइवरी की तेरे बाबूजी ने और मैंने हॉस्टल में खाना बनाया, मेहनत करके ही तुझे और तेरी बहन को पाला है, तुम चिन्ता न करो हम सोचते हैं कुछ न कुछ जरूर हल निकलेगा इस समस्या का!!”

रघु और पारो काफ़ी देर तक सोचने के बाद एक नतीजे पर पहुंचे शाम को भोला और दिव्या को बुलाया और अपना सोचा हुआ विचार उनके सामने रखा, सुनकर दोनों एक दूसरे को देखने लगे, विचार तो उन्हें जमा पर मां बाबूजी को मेहनत करना पड़ेगी सोच भोला उदास होकर बोला “मैं आप दोनों को इसलिए अपने पास लेकर नहीं आया था कि आप दोनों से इस उम्र में काम करवाऊं, मुझे बुरा लग रहा है बाबूजी ” रघु ने भोला के कंधे पर हाथ रखकर कहा “आराम भी कर लेंगे बेटा अभी तो अपनी समस्या का निदान तो कर लें!!”

आज़ की सुबह कुछ अलग थी, भोला सुबह ही मां की बताई सब्जियां और जरूरत का सामान ले आया, दोना पत्तल थोड़ी मात्रा में ले आया, पानी के बर्तन ज्यादा भरकर रख दिए, दिव्या ने सब्जी, मसाले और मां के बताए अनुसार सब काम कर दिए, रघु ने एक पटिए पर सफेद कागज चिपकाकर उस पर “विशेष प्रादेशिक खाने का पोस्टर ” बनाकर दरवाज़े पर लगा दिया , सभी ने साथ मिलकर पूजा की और जोरदार जयघोष के साथ माता अन्नपूर्णा को ध्यान करते हुए चूल्हे को अग्नि समर्पित की!!

भोला कंपनी चला गया, दिव्या अपनी फैक्ट्री रघु और पारो धड़कते दिल से आने वालों की राह देखने लगे एक घंटा बीता दो घंटे हो गए, कोई नहीं आया, दोनों बुजुर्ग उदास होने लगे अचानक किसी ने आवाज़ लगाई दोनों की आंखों में चमक और देह में फुर्ती आ गई, एक ग्राहक ने खाना मांगा पारो ने झट चूल्हे की आग तेज की और झटपट खाना गरम कर गरमागरम रोटियां परोसकर भोला के हाथ में थमा दी, बरांडे में बैठकर खाना खिलाया और लोगों को बताने का आग्रह भी किया 60 रुपए एक थाली के लिए उन पैसों को देखकर आंखें भर आईं आखिर उनका सोचा फलीभूत हो गया!!

शाम को भोला और दिव्या उत्साहित होकर घर लौटे आते ही मां बाबूजी का चेहरा देखा, दोनों के चेहरे पर मंद मंद मुस्कान दोनों के चेहरे पर उत्सुकता और सवाल देख पारो ने मन्दिर की ओर इशारा किया, दोनों ने जाकर देखा, कुछ रुपए रखे थे, गिने तो 180 रुपए आंखें छलछला गईं, आकर मां बाबूजी से लिपट गए “बिना कोशिश किए हार मानना तो गलत है, समस्या है तो निदान भी है प्रयास करना भी तो जरूरी है कुछ लोग अपने डिब्बे दे गए हैं वो रोज़ खाना लेंगे ,अरे तेरी मां खाना ही इतना जायकेदार बनाती है, किसी को पसन्द आता कैसे नहीं?

“कहते हुए भोला ने जोरदार ठहाका लगाया सब हंस पड़े, दिव्या बोल पड़ी ” मैं नौकरी छोड़ दूं मां मैं आपका हाथ बटाऊंगी
“अभी नहीं बेटा.. थोड़ा काम बढ़ने दे, सामान का खर्च भी तो बढ़ गया न, जैसे ही हमारा काम बढ़ा हम सब मिलकर अपना काम संभालेंगे!!” बुजुर्गों का अनुभव बहुत काम का होता है, सब मिलकर रहें तो कोई मुश्किल, कोई समस्या हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती , क्योंकि जहां चाह है वहां राह भी तो है,बस जरूरत है एक प्रयास है।

संघर्ष और सहयोग से आप क्या समझते हैं?

कई अलग-अलग प्रकार हैं लेकिन सहयोग ( एक सामान्य लक्ष्य के लिए मिलकर काम करने वाले लोग), प्रतिस्पर्धा (किसी उत्पाद या सेवा को हासिल करने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ प्रयास करने वाले लोग), और संघर्ष (एक व्यक्ति दूसरे की इच्छा का विरोध करता है) सबसे आम हैं।

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