एक बार एक प्रसिद्ध कवि की एक ‘स्याही की दवात’ थी। एक दिन अपने पर घमंड करते हुए वह बोली-“विश्वास नहीं होता! मेरी स्याही की कुछ बूंदें इतना सुंदर और इतना सार्थक लिख सकती हैं।”
तभी, एक ‘कलम’ चिल्लाई-“तुम कितनी मूर्ख हो। तुम्हें नहीं पता? तुम तो सिर्फ स्याही देती हो। कागज़ पर लिखने वाली तो मैं हूँ, इसलिए मैं तुमसे ज्यादा महान हूँ।”
उन दोनों में बहस होने लगी। दोनों ही अपने आपको महान बता रही थीं। इतने में, एक कवि जो कि एक संगीत सभा से होकर लौट रहा था। उसने लिखना शुरू किया-“वह, कितना सुंदर संगीत था।
यह संगीत वाद्यों की मूर्खता होगी, अगर वे यह सोचें कि संगीत वे उत्पन्न करते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि हम कुछ महान नहीं करते।
यह तो भगवान है जो हमसे महान काम करवाता है।” लेकिन लेखक के इतने सुंदर विचार भी ‘स्याही की दवात’ और ‘कलम’ के विचारों में कोई बदलाव न ला सके।