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हमारी संस्कृति

आज जगन राय बहुत खुश थे और खुश क्यों ना हो आज उनकी प्यारी सी सुन्दर सी बिटिया पल्लवी का विवाह परम्परागत तरीके से उनके दोस्त राजनारायण के बेटे अपूर्व से होना था । वह बहुत समय पहले विदेश में बस गये थे पर रहने वाले राजस्थान के एक छोटे से कस्बे के । बिटिया भी विदेश में ही पली थी । अपूर्व भी राजस्थान का ही रहने वाला था उसका पूरा परिवार अब भी यहीं रहता था । अपूर्व एक मल्टी नेशनल कम्पनी में इंजीनियर था । अपूर्व का पूरा परिवार पूरी तरह अपनी राजस्थानी संस्कृति को मानता था ।
जगन राय जी की इच्छा थी कि शादी राजनारायण जी के यहाँ से परम्परागत तरीके से हो हालांकि उनका परिवार विदेशी सभ्यता में रंगा हुआ था उन सब को यह बात पसंद नहीं आ रही थी । पल्लवी भी बहुत अधिक खुश नहीं थी उसने अपूर्व से अपनी इच्छा बताई कि हम शादी बोम्बे में किसी रिसोर्ट से क्यों नहीं करते । अपूर्व ने कहा पल्लवी ये तुम्हारे पापा की ही पसंद है। तुम देखो तो सही हमारे यहाँ कितने प्यार और अपनत्व से तुम्हारा स्वागत होता है।
आज राजनारायण ने लड़की वालों के ठहराने का गजब का इन्तजाम करवाया था । रंग बिरंगी झालरें , रंग बिरंगी चारपाईयां , नक्काशी वाली चादरें , पानी से भरी हुई मिट्टी की सुराही , हाथ के झालर वाले बीजने जब सब लोग आये तो उस इन्तजाम को देख कर जगन राय की तो खुशी देखने लायक थी सभी विदेशी मेहमान बहुत खुश थे । जब सब भोजन करने बैठे तब डाइनिंग टेबल ना होकर जमीन पर पटरों पर थालियों में राजस्थानी भोजन लगा हुआ था । सबने यह पहली बार देखा विदेशी मेहमान तो बहुत ही खुश थे ।शादी बहुत ही अच्छे ढंग से हुई । जब विदाई का समय आया तब अपूर्व पल्लवी से बोला अब तुम कहां रहोगी । पल्लवी बड़े प्यार से बोली जहां मेरा पिया चाहेगा हां शर्त यह है कि मेरे घर की सजावट इसी पारम्परिक तरह की होगी । जैसी हमारी संस्कृति है।

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