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बुजुर्गों का महत्व!!

बहुत पुरानी बात है। सुंदरगढ़ नामक एक राज्य था। जिसका राजा सुमंत बहुत धनलोलुप था।वह हमेशा यही विचार किया करता था कि किस प्रकार उसका राज्य सबसे धनवान बने।इसके लिए वह नए नए तरीके सोचा करता था। नए नए नियम लागू करता रहता था।

उसकी प्रजा भी उससे परेशान रहती थी। एक दिन उसने सोचा कि ये बुजुर्ग लोग उसके राज्य के लिए बोझ हैं। ये कोई काम तो करते नहीं हैं। बस बैठे बैठे खाते है। इनके दवा इलाज और सुविधाओं पर जो खर्च होता है वह अलग। इसलिए उसने घोषणा कर दी कि उसके राज्य में साठ साल से ऊपर का कोई व्यक्ति नहीं रहेगा।

जिनके घरों में साठ साल से ऊपर के लोग हैं वो उन्हें जंगल में छोड़ आये। प्रजा में कुछ लोगों को राजा यह आदेश पसन्द भी आया। लेकिन कुछ लोगों को राजा का आदेश बहुत बुरा लगा। इस अवस्था में जब बुजुर्गों की सेवा की जानी चाहिए। तब राजा आदेश दे रहा है कि उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाय।

लेकिन राजा के आदेश की अवहेलना कौन कर सकता था? लोगों ने राजा की आज्ञा का पालन किया। राजा सुमंत के राज्य में ही एक लड़का अपनी बूढ़ी माँ के साथ रहता था। लड़का अपनी माँ से बहुत प्रेम करता था। इस आदेश से उसे बहुत पीड़ा हुई। लेकिन राजाज्ञा का पालन अनिवार्य था।

इसलिए वह अपनी बुजुर्ग और असहाय माँ को पीठ पर लादकर जंगल की ओर चल दिया। रास्ते में चलते हुए उसकी माँ झाड़ियों से लकड़ियाँ तोड़ तोड़ कर रास्ते पर डाल रही थी। यह देखकर लड़के ने अपनी मां से पूछा, “मां! यह क्या कर रही हो?” माँ ने जवाब दिया, ” बेटा! वापसी में तुम रास्ता न भूल जाओ, इसलिए मैं यह लकड़ियां डाल रही हूँ।”

माँ के प्रेम को देखकर लड़का फूट फूट कर रो पड़ा। उसने निश्चय किया कि वह अपनी बूढ़ी माँ को जंगल में नहीं छोड़ेगा। रात के अंधेरे में वह अपनी मां को लेकर वापस घर आ गया। घर के आंगन में खुदाई करके उसने एक गुफा बना दी। जिससे किसी को पता न चले। उसकी मां उस गुफा में रहने लगी।

बेटा समय समय पर गुफा के अंदर जाकर माँ की सेवा करता। थोड़े समय बाद उस राज्य की धन संपत्ति को देखकर एक शक्तिशाली पड़ोसी राजा ने सुंदरगढ़ पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में सुंदरगढ़ की हार हुई। राजा सुमंत बन्दी बना लिए गए.

पड़ोसी राजा ने घोषणा की कि सुंदरगढ़ राज्य का कोई भी नागरिक अगर मेरे दो प्रश्नों के उत्तर दे देगा तो मैं सुंदरगढ़ राज्य और राजा सुमंत को भी छोड़ दूंगा। पूरा राज्य प्रश्न सुनने उमड़ पड़ा। राजा ने एक शीशे का छोटा सा बर्तन दिखाते हुए कहा, ” इसे कद्दुओं से भर दो।”

लोगों ने उस बर्तन को देखा और कहा, “इस छोटे से बर्तन में तो एक भी कद्दू नहीं आ सकता। राजा ने जवाब देने के लिए सात दिनों की मोहलत दे दी। लेकिन किसी को जवाब नहीं सूझ रहा था। वह लड़का भी वहां था। रात में जब वह अपनी माँ के पास गया तो उसने मां से सारी बात बताई।

माँ ने उससे कहा कि शीशे के बर्तन में मिट्टी भरकर उसमें कद्दू के बीज डाल दो। तीन चार दिन में जब बीज उग आए तो उन्हें राजा के पास ले जाना। लड़के ने वैसा ही किया, और सचमुच चार दिन बाद शीशे का वह बर्तन कद्दू के छोटे छोटे पौधों से भर गया।

लड़का बर्तन लेकर राजा के पास गया। अपने प्रश्न का जवाब पाकर राजा प्रसन्न हुआ। फिर उसने

दूसरा प्रश्न किया, ” एक जैसी दिखने वाली दो गाय एक साथ खड़ी हैं। उनमें से माँ बेटी की पहचान कैसे करोगे? यह प्रश्न भी बड़ा कठिन था। इसका भी जवाब किसी को नहीं सूझ रहा था। राजा ने इस बार तीन दिन की मोहलत दी।

लड़का फिर माँ के पास पहुंचा और उसे सारी बात बतायी। माँ ने बताया कि दोनों के सामने घास डालो। दोनों में से जो माँ होगी वह अपनी बेटी के खाने के बाद खाना शुरू करेगी। लड़के ने राजा के सामने माँ के बताए अनुसार दोनों गायों में माँ बेटी की पहचान कर दी।

पड़ोसी राजा ने अपने वादे के अनुसार सुंदरगढ़ के राजा और राज्य दोनों को मुक्त कर दिया। राजा सुमन्त बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने लड़के से पूछा, “तुमने दोनों प्रश्नों के उत्तर कैसे दिए?” लड़के ने कहा, ” महाराज! यदि आप मुझे अभयदान दें, तो मैं बताऊंगा।” राजा ने उसे आश्वासन दिया।

तब लड़के ने बताया कि ये उत्तर उसे अपनी माँ से पता चले थे। तब राजा को बुजुर्गों के अनुभव का महत्व पता चला। उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने अपनी आज्ञा वापस ले ली। उसने आज्ञा दी कि उसके राज्य में बुजुर्गों की सेवा और सम्मान होना चाहिए।

कहानी से सीख- Moral of Story

मोरल स्टोरी- बुजुर्गों का महत्व  नामक यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी भी समाज में बुजुर्गों का कितना महत्व है? उनके अनुभव हमारे बहुत काम आते हैं। इसलिए हमें अपने बुजुर्गों की सेवा और उनका सम्मान करना चाहिए। 

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