कहते हैं महापुरषों का बचपन असामान्य रहता है। ऐसा ही कुछ पं. मदन मोहन मालवीय जी का भी था। एक बार प्रयाग में चौक के पास एक गली में बीमार श्वान (कुत्ता) पड़ा था। चोट लगने से उसे घाव हो गया था। वह छटपटा रहा था, चिल्ला रहा था।
पर तमाशबीन बने लोग उसे देख रहे थे। बारह वर्षीय मदन मोहन जी किसी काम से उस गली से निकले। वह श्वान की पीड़ा देख कर उनके मन में दया आ गई।वह गए और तुरंत डॉक्टर के पास से दवा ले आए। दवा तेज थी तो श्वान गुर्राने और दांत दिखाने लगा।
कई लोगों ने कहा अरे दूर हट जाओ, नहीं तो यह तुम्हे काट लेगा। पर बालक ने न केवल दवा लगाई बल्कि उसे नियमित दवा लगाकर ठीक कर दिया। बाद में यही बालक बड़े होकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक बने
In English
It is said that childhood childhood is unusual. There was something similar to Pandit Madan Mohan Malviya ji. Once, there was a dog with a dog in a street near Chowk in Prayag. He was wounded due to injury. He was shouting, screaming.
But the people who watched him were watching him. Twelve year old Madan Mohan ji came out of the street with some work. Seeing the pain of the dog he felt pity. He went and immediately brought the medicine to the doctor. When the drug was fast, the dog began to gulp and show teeth.
Many people said, Oh, get away, otherwise it will bite you. But the child did not only put the medicine, but he justified it with regular medicines. Later this boy grew up and became the founder of the Banaras Hindu University.