जब से गये मेरे मोहन परदेश में।
तब से रहती हूँ पगली के वेश में॥
कभी नींद न आये,कभी नैना भर आये।
क्या मानू समझ लीजिए,
मेरे कान्हा को मुझसे मिला दीजिये।
वो वंशी की धुन फिर सुना दीजिये॥
गालियां ये हो गई सुनी,सुना अँगनवा,
कान्हा नही है आते,आवे सपनवा।
कभी वंशी बजाए,कभी माखन चुराए॥
बस यादे समझ लीजिए,
मेरे कान्हा को मुझसे मिला दीजिये।
वो वंशी की धुन फिर सुना दिजीये॥
परसो की कहकर गए वर्षो लगायल
न ही वो खुद आये न संदेश आयल
मैं तो राह निहारूँ, कान्हा कान्हा पुकारूँ।
कोई मुझको मिला दीजिये
मेरे कान्हा को मुझसे मिला दीजिये।
वो वंशी की धुन फिर सुना दीजिये।।
जब से गये मेरे मोहन परदेश में..
तब से रहती हूँ……..