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जब से नैन लड़े गिरधर से


एक दिन मोहे मिल गओ
वाह छैला नन्द कुमार
लूट लिया ये दिल मेरो
साखि लूट लिया ये दिल मेरु
आंखियन में अंखिया दार

जब से नैन लड़े गिरधर से
मेरी अकाल गयी बौराए

जने कैसा जादू  डाला
चारो और नज़र वो खुमाये
वृन्दावन की कुञ्ज गलियन में
जब से देखा नन्द का लाला
मेरी अँखियाँ आगे डो’
उसका मुखड़ा भोला भाला
उसके मतवारे नैनो
मेरे दिल को लिया चुराए
जब से…….

उसकी देख के सुरत प्यारी
मेरी मति गयी है मारी
उसने मारी नयन कतरी
आईसी मारी नयन कतर
दार दर डोलू मरी मरी
आईसा दर्द दिया है दिल को
हरदुम मुख से निकले है
जब से…….

मेरी सुधबुध सब बिसराके
मेरे दिल को रोग लगके
मोहे एक झलक दिखलाके
जने कहा छिपा है जाक
उसकी याद में मेरी अँखियां
हरपाल ऑंसू रही बहाए
जब से……

रो रो सारी रात बिताऊ
किसको मैं की व्यथा सुनाऊ
काइसे धीरज धरु रविंदर
काइसे इस दिल को समझो
मै तो होगयी रे बावरिया
उसके बिना रहा नहीं जाए
जब से………….

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