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मां कहीं गई ही नहीं

राजेश की मां को इस दुनिया से गये आज बीस दिन हो आये है… मगर ऐसा एक पल नहीं गुजरा कि उसे उनकी याद ना आई हो….कहने को उस घर में अब दो लोग है | राजेश के अलावा उसकी एक छोटी बहन पर उसका होना ना होना एक ही बराबर है | दिखने मे वो राजेश की मां पर गई है पर दिमागी रूप से बिलकुल कमजोर है ना किसी बात पर हँसती है ना रोती है माँ की मौत पर भी उसके आँसू नहीं निकले थे |

राजेश जब जब उसे सामने देखता तो माँ की याद और भी आने लग जाती है और ये भी लगने लगता है कि वो कैसे इसे अब पूरी ज़िंदगी सम्भाल पाएगा कयोंकि छोटी को किसी भी बात को सिखाने में बहुत वक़्त लगता है , सच मां ने बहुत गलत वक़्त पर साथ छोड़ा है |

आज हफ्तों बाद वो काम पर जाने के लिए जैसे ही दरवाजे पर आया तो मां की याद ने उसे कुछ पल वहीं रोक लिया, मां के जाने के बाद घर ही नहीं जैसे ज़िंदगी ही खाली और सूनी हो गई है | मां रोज उसे घर से निकलने से पहले दही और गुड़ खिलाती थी…

कभी वो जल्दी में होता तो ऐसे ही निकलने लगता पर माँ बिना खिलाए उसे भेजती ही नहीं थी राजेश थोड़ा चिड़चिड़ा भी हो जाता था उस वक़्त पर मां

“क्या मां…. तुम रोज रोज ये सब, क्या हो गया किसी दिन नहीं खा कर निकला तो”

“आदत हो गई है बेटे, ऐसे ही चला जाता है तो लगता है कुछ छूट सा गया….

याद कर राजेश की आँखे भीग आई, रो कर कहना चाहता था कि अब मुझे भी आदत हो गई है मां तेरे उस गुड़ की, पर ये ना अब सुनने के लिए मां है ना मां के हाथों का वो गुड़, वो इन्हीं यादों के साथ निकलने ही वाला था कि पीछे से आवाज आई

“भैया….पहले ये खा लो,

पलटकर देखा कि उसकी छोटी बहन उसी कटोरे में मां की ही तरह गुड़ और दही हाथों में लिए खड़ी थी, राजेश आश्चर्य से उसे देखने लगा…

उसे देख एकबार को लगा जैसे मां ही है…

उसने दरवाजे पर आकर मां की ही तरह उसे गुड़ खिलाया और “अच्छे से जाना भैया… और घर जल्दी आना”

वो उसके चेहरे को ध्यान से देख रहा था अब भी कोई भाव नहीं थे पर आँखों के कोर थोड़े भीगे हुए थे….

“तुमने ये सब कहाँ से…..सीखा .रे…छोटी..”

“वो मेरी भी तो मां थी ना…..भैया….

राजेश उससे लिपट कर रो पड़ा…

उसे लग रहा था जैसे मां कहीं गई ही नहीं.है…..

बस रुप बदलकर छोटी बहन मे वापस आ गई है

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