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जय श्री राम और जय हनुमान

एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी । दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद- काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा हैं ।
मैंने कहा, “जी कहिए..”
तो उसने कहा,
अच्छा जी, आप तो रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे,
मैंने कहा
“माफ कीजिये, भाई साहब ! मैंने पहचाना नहीं, आपको…”
तो वह कहने लगे,
“भाई साहब, मैं वह हूँ, जिसने तुम्हें साहेब बनाया हैं… अरे ईश्वर हूँ.., ईश्वर.. तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र में बसे हो पर नज़र नहीं आते.. लो आ गया..! अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।”
मैंने चिढ़ते हुए कहा,
“ये क्या मज़ाक हैं?”
“अरे मज़ाक नहीं हैं, सच हैं। सिर्फ़ तुम्हें ही नज़र आऊंँगा। तुम्हारे सिवा कोई देख- सुन नहीं पायेगा, मुझे।”
कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी..
: “अकेला ख़ड़ा- खड़ा क्या कर रहा हैं यहाँ, चाय तैयार हैं , चल आजा अंदर..”
अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था.. मैं जाकर सोफे पर बैठा ही था, तो बगल में वह आकर बैठ गए। चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पिया मैं गुस्से से चिल्लाया,
“अरे मां..ये हर रोज इतनी चीनी ?”
इतना कहते ही ध्यान आया कि अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नही आयेगा कि कोई अपनी माँ पर गुस्सा करे। अपने मन को शांत किया और समझा भी दिया कि ‘भई, तुम नज़र में हो आज… ज़रा ध्यान से।’
बस फिर मैं जहाँ- जहाँ… वह मेरे पीछे- पीछे पूरे घर में… थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही मैं बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढ़ा दिए..
मैंने कहा,
“प्रभु, यहाँ तो बख्श दो…”
खैर, नहा कर, तैयार होकर मैं पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु वंदन किया, क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी.. फिर आफिस के लिए निकला, अपनी कार में बैठा, तो देखा बगल में महाशय पहले से ही बैठे हुए हैं। सफ़र शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया, ‘तुम नज़र मे हो।’
कार को साइड मे रोका, फ़ोन पर बात की और बात करते- करते कहने ही वाला था कि ‘इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे’ …पर ये तो गलत था, : पाप था तो प्रभु के सामने कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया,
“आप आ जाइये । आपका काम हो जाएगा, आज।”
फिर उस दिन आफिस में ना स्टाफ पर गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 25 – 50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जाती थी मुँह से, पर उस दिन सारी गालियाँ, ‘कोई बात नहीं, इट्स ओके…’ में तब्दील हो गयीं।
वह पहला दिन था जब
क्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द , बेईमानी, झूठ
ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नहीं बनें।
शाम को आफिस से निकला, कार में बैठा, तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया…
“प्रभु सीट बेल्ट लगा लें, कुछ नियम तो आप भी निभायें… उनके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी…”
घर पर रात्रि भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला,
“प्रभु, पहले आप लीजिये ।”
और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह में रखा। भोजन के बाद माँ बोली,
“पहली बार खाने में कोई कमी नहीं निकाली आज तूने। क्या बात हैं ? सूरज पश्चिम से निकला हैं क्या, आज?”
मैंने कहाँ,
“माँ आज सूर्योदय मन में हुआ है… रोज़ मैं महज खाना खाता था, आज प्रसाद ग्रहण किया हैं माँ, और प्रसाद में कोई कमी नहीं होती।”
थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग के साथ तकिये पर अपना सिर रखा तो ईश्वर ने प्यार से सिर पर हाथ फिराया और कहा,
“आज तुम्हे नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नहीं हैं।”
गहरी नींद गालों पे थपकी से उठी…
“कब तक सोयेगा .., जाग जा अब।”
माँ की आवाज़ थी… सपना था शायद… हाँ, सपना ही था पर नीँद से जगा गया… अब समझ में आ गया उसका इशारा…
“तुम नज़र में हो…।”
जिस दिन ये समझ गए कि “वो” देख रहा हैं, सब कुछ ठीक हो जाएगा।
सपने में आया एक विचार भी आंँखे खोल सकता हैं..!!
*🙏🏾 ॐ नमः शिवाय🙏🏼
🙏🏻जय माँ भवानी🙏🏿
जय श्री राम
जय हनुमान
जय श्री राम
जय हनुमान

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