एक बार की बात है सीतापुरी गांव में जीर्णधन नाम का एक बनिया रहता था। उसका काम कुछ अच्छा नहीं चल रहा था, इसलिए उसने धन कमाने के लिए विदेश जाने का फैसला किया। उसके पास कुछ ज्यादा पैसे या कोई कीमती वस्तु नहीं थी। सिर्फ उसके पास एक लोहे का तराजू थी। उसने वो तराजू साहूकार को धरोहर के रूप में दे दिया और बदले में कुछ रुपये ले लिए। जीर्णधन ने साहूकार से कहा कि वह विदेश से लौटकर अपना उधार चुका कर तराजू वापस ले लेगा।
जब दो साल बाद वह विदेश से लौटा, तो उसने साहूकार से अपना तराजू वापस मांगा। साहूकार बोला कि वो तराजू तो चूहों ने खा लिया। जीर्णधन समझ गया कि साहूकार की नियत खराब हो गई है और वह तराजू वापस करना नहीं चाहता। तभी जीर्णधन के दिमाग में एक चाल सूझी। उसने साहूकार से कहा कि कोई बात नहीं अगर तराजू चूहों ने खा लिया है, तो इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। सारी गलती उन चूहों की है।
थोड़ी देर बाद उसने साहूकार से कहा कि दोस्त मैं नदी में नहाने जा रहा हूं। तुम अपने बेटे धनदेव को भी मेरे साथ भेज दो। वो भी मेरे साथ नहा आएगा। साहूकार, जीर्णधन के व्यवहार से बहुत खुश था, इसलिए उसने जीर्णधन को सज्जन पुरुष जानकर अपने बेटे को उसके साथ नहाने के लिए नदी पर भेज दिया।
जीर्णधन ने साहूकार के बेटे को नदी से से कुछ दूर ले जाकर एक गुफा में बंद कर दिया। उसने गुफा के दरवाजे पर बड़ा-सा पत्थर रख दिया, जिससे साहूकार का बेटा बचकर भाग न पाए। साहूकार के बेटे को गुफा में बंद करके जीर्णधन वापस साहूकार के घर आ गया। उसे अकेला देखकर साहूकार ने पूछा कि मेरा बेटा कहां हैं। जीर्णधन बोला कि माफ करना दोस्त तुम्हारे बेटे को चील उठाकर ले गई है।
साहूकार हैरान रह गया और बोला कि ये कैसे हो सकता है? चील इतने बड़े बच्चे को कैसे उठा ले जा सकती है? जीर्णधन बोला जैसे चूहे लोहे के तराजू को खा सकते हैं, वैसे ही चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है। अगर बच्चा चाहिए, तो तराजू लौटा दो।
जब अपने ऊपर मुसीबत आई तब साहूकार को अक्ल आई। उसने जीर्णधन का तराजू वापस कर दिया और जीर्णधन ने साहूकार के बेटे को आजाद कर दिया।
कहानी की सीख
जो जैसा व्यवहार करता है उसके साथ वैसा व्यवहार करो, ताकि उसे अपने गलती का अहसास हो जाए।