तेरे नाम से मिली है पहचान एह मुरारी
कैसे भूलू मैं वो दिन फिरती थी मारी मारी
मेरे दर्द की कहानी सुन लो मेरी जुबानी
आई बड़ी मुसीबत देखो तो तुम मेरी कानी
तुमको पुकारा बाबा हारी मैं बिलकुल हारी
कैसे भूलू मैं वो दिन फिरती थी मारी मारी….
घंटो मैं बैठी रोती तस्वीर को निहारु
मेरी खता क्या बाबा सोचु कभी विचारू
इकरार कर के बैठी बेटी हु मैं तुम्हारी
कैसे भूलू मैं वो दिन फिरती थी मारी मारी…
कब तक चलेगा ऐसा बोलो न एह बिहारी
अगर भीख दया की न दी होगी हसी तुम्हारी
पत्थर तो था हिलाया दोडा वो लीला धारी
कैसे भूलू मैं वो दिन फिरती थी मारी मारी….
ऐसा वो आ स्म्बाला मेरा शीश का दानी
रखना ये याद भगतो या की थी बोल वाणी
अरचना छोड़ो इन्ह पे चिंताए अपनी सारी
कैसे भूलू मैं वो दिन फिरती थी मारी मारी…….