कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार,
मोहे चाकर समज निहार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार,
तू जिसे चाहे वैसी नही मैं
हां तेरी राधा जैसी नही मैं
फिर भी हु कैसी कैसी नही मैं
कृष्णा मोहे देख ले इक बार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार,
बूंद ही बूंद मैं प्यार की चुन कर
प्यासी रही परलाई हु गिरधर
टूट ही जाए आस की गागर
मोहन एसी कंकरिया मत मार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार,
माटी करो या स्वर्ण बना लो,
तन को मेरे चरनो से लगा लो
मुरली समज हाथो में उठा लो
सोचो न कशु अब हे कृष्ण मुरार
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार,,,,,,,,