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कर्मसिद्धांत!!

रामू एक मेहनती किसान था। बहुत शांत, दयालु और सबका भला चाहने वाला। प्रतिदिन वह अपने खेतों पर जाता और कड़ी मेहनत करता था। जिसके कारण पूरे गांव में उसकी फसल सबसे अच्छी होती थी।

लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसका भाग्य साथ नहीं दे रहा था। कुछ दिन पहले ही उसका एक बैल मर गया। जोकि बहुत होशियार और मेहनती था। इधर पैसों की की भी तंगी थी।

लेकिन खेती करनी है तो बैल तो खरीदना ही पड़ेगा। जैसे तैसे करके रामू एक जवान, तगड़ा बैल ले आया। उसने सोचा अब खेती और अच्छी होगी। क्योंकि बैल जवान और तगड़ा है, इसलिये अच्छा काम करेगा।

लेकिन किस्मत की मार देखिए। नया बैल लेकर रामू खेत में पहुँचा। थोड़ी सी जुताई के बाद ही बैल बैठ गया। रामू ने सोचा कि अभी नया बैल है, सीखने में थोड़ा समय लगेगा। लेकिन एक महीना बीतने के बाद भी बैल का रवैया न बदला।

एक दिन दोपहर में रामू खेत की जुताई कर रहा था। हमेशा की तरह बैल थोड़ी देर में ही बैठ गया। धूप और गर्मी से परेशान रामू को गुस्सा आ गया। उसने बैल को पीटना शुरू कर दिया। मार खाने के बाद भी बैल उठ नहीं रहा था।

उसी समय खेत के सामने के रास्ते से शहर के एक बड़े मठ के महंत जी जा रहे थे। वे एक सिद्ध संत थे। आस पास के इलाकों में उनका बड़ा नाम था। उन्होंने रामू को बैल को पीटते देखा तो बोले, “रुक जा भाई ! पिटाई बन्दकर ! मैं आता हूँ।”

ऐसा कहकर वे खेत में रामू के पास पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने बैल को गौर से देखा फिर धीरे से उसके कान में कुछ कहा। बैल तुरंत उठकर खड़ा हो गया। यह देखकर रामू चकित हो गया। जो बैल इतना मार खाने के बाद भी टस से मस नहीं हो रहा था। वह एक झटके में खड़ा कैसे हो गया ?

रामू ने हाथ जोड़कर महंतजी से इसका राज पूछा। महंत जी बोले, ” ये कर्मसिद्धांत का प्रभाव है। तुम पिछले जन्म में भी एक सदाचारी किसान थे। ये बैल तुम्हारे गांव के एक मठ के महंत थे। जिनकी गांव में बड़ी प्रतिष्ठा थी।”

“तुम कड़ी मेहनत करके जो कुछ कमाते थे। उसमें से अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ बचाते थे। बचत का वह पैसा तुम महंतजी के पास यह कहकर रख देते थे कि शादी के समय ले लूंगा।

कई सालों में अच्छी रकम इकट्ठा हो गयी। फिर तुमने लड़की की शादी भी तय कर दी। एक दिन तुम महंतजी के पास अपनी रकम लेने पहुंचे। दुर्योग से बड़ी रकम ने महंतजी का ईमान भ्रष्ट कर दिया। महंतजी कड़ककर बोले, “कौन सी रकम, कैसी रकम ? तुमने मुझे कोई रकम नहीं दी।”

तुमने महंतजी को समझाने की बहुत कोशिश की। लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला। महंतजी की आंखों पर लालच का पर्दा पड़ चुका था। हारकर तुमने पंचायत बुलाई। लेकिन तुम्हारे पास पैसे देने का कोई सुबूत नहीं था।

ऐसे में पूरा गांव महंतजी की तरफ था। हो भी क्यों नहीं, आखिर इतने बड़े मठ के इतने प्रतिष्ठित महंत जो ठहरे। फिर एक गरीब किसान के पास इतना पैसा आया कैसे ? हारकर तुमने जैसे तैसे अपनी बेटी की शादी की।

तुम्हारा फैसला इस धरती की न्याय व्यवस्था में तो न हो सका। लेकिन ईश्वर के कर्मसिद्धांत में वह अंकित हो गया। इस जन्म में अपने अच्छे कर्मों के बल पर तुम फिर इंसान बने। लेकिन महंतजी अपने कर्मफल के अनुसार बैल बने और पिछले जन्म का तुम्हारा कर्ज चुकाने के लिए तुम्हारे यहां आए हैं।

दैवीय कृपा से इन्हें पिछले जन्म का ज्ञान है। लेकिन आरामतलब जीवन जीने के आदी महंतजी थोड़ी मेहनत के बाद थककर बैठ जाते हैं। मैंने इनके कान में केवल इतना ही कहा है, “महंतजी कर्ज उतारना ही पड़ेगा, चाहे खुशी से कर लो। चाहे मार खा कर करो। यही ऋणानुबंध है, यही कर्मसिद्धांत है।”

moral of story- कहानी से सीख

यह कहानी हमें सीख देती है कि अपने कर्मों का चयन बहुत सोच समझकर करना चाहिए। किसी के साथ गलत करने से बचना चाहिए। क्योंकि सब कुछ चुकाना पड़ेगा। यही ईश्वर का कर्म सिद्धांत है। इससे कोई नहीं बच सकता।

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