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कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्

हिन्दू मान्यता के अनुसार, किसी भी पूजा से पहले भगवान गणेश की स्तुति की जाती है. उसी तरह किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूर मंत्र का जाप करने का अपना महत्व है. भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई गई है.   ये समझा जाता है कि भगवान शिव जो  शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी प्रवत्ति वाला है । लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य और सुंदर है । भगवान शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति । शिव शंभू की इस स्तुति में उनके दिव्य रूप का बखान किया गया है. शिव को जीवन और मृत्यु का देवता माना गया है. जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं । ऐसे शिवजी हमारे मन में  वास कर, मृत्यु का भय दूर करें ।

हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि

अर्थात- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है ।

हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
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हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा

सानन्दमानन्दवने वसन्तं आनन्दकन्दं हतपापवृन्दम्
सानन्दमानन्दवने वसन्तं आनन्दकन्दं हतपापवृन्दम्
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये

जो भगवान् शंकर आनन्दवन काशी क्षेत्र में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं, जो परमानन्द के निधान एवं आदिकारण हैं, और जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, ऐसे अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की मैं शरण में जाता हूँ ।

हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
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हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्

जो भगवान् शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं, अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी देव महाकाल नाम से विख्यात महादेव जी को मैं नमस्कार करता हूँ । नमस्कार करता हूँ ।

हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः

जिनके कंठ मे साँपोंका हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग है (अनुलेपन) है, दिशाँए ही जिनके वस्त्र हैं, उन अविनाशी महेश्वर “न” कार स्वरूप शिवको नमस्कार है।

हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
हर-हर शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा
शंभु (शंभु), शंभु (शंभु), शिव महादेवा

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