लाला बैकुंठनारायण जीवनभर एक के दो करने के फेर में लगा रहा। कंजूस इतना था कि न तो कभी उसने किसी गरीब की कोई सहायता की और न ही कभी फूटी कौड़ी का दान दिया ।
एक दिन वह असाध्य रोग से ग्रस्त होकर चारपाई पर पड़ गया। परिजनों ने उसके बचने की आशा त्याग दी थी। स्वयं बैकुंठनारायण को भी जीवन की अब कोई आशा नहीं थी।
एक दिन उसने सोचा कि मैंने जीवन में कभी कोई दान नहीं किया। तिजोरियां भरने में ही लगा रहा।
भगवान के घर पहुंचकर क्या जवाब ढूंगा। कमसे-कम एक गाय ही दान कर दें। कोई यह तो नहीं कहेगा कि मैंने दान नहीं किया। फिर उसने अपने पुत्र को बुलाकर कहा”बेटा, एक गाय खरीद ला। मैं दान करना चाहता हूं। जीवन का अब कोई भरोसा नहीं है, लेकिन ज्यादा पैसा खर्च मत करना। कोई | दुबली-पतली गाय ही ले आना जो कुछ ही दिनों में चल बसे। दान में ही तो देनी है।”
पिता की आज्ञा से बैकुंठनारायण का पुत्र एक मरियल-सी गाय ले आया। उसने वह गाय एक ब्राह्मण को दान में दे दी। दान देने के तुरंत बाद ही गाय मर गई। कुछ ही देर बाद बैकुंठनारायण भी चल बसा।
गाय आगे-आगे थी, बैकुंठनारायण पीछे-पीछे। उसने लपककर गाय की पूंछ पकड़ ली और सीधा यमलोक जा |( पहुचा। यमराज का दरबार लगा था। सभी जीव लाइन में खड़े थे। उनके कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त यमराज को सबकछ बताते जा रहे थे।
बैकठनारायण की जब बारी आई तो चित्रगुप्त बोले, “यमराजइस बनिये ने जीवनभर कोई भी सद्कर्म नहीं कियाबस तिजोरियां ही भरता रहा, लेकिन मरने से पूर्व इसने एक मरियल-सी गाय दान देने का सद्कर्म किया है, अत: यमलोक के नियमानुसार इसे एक दिन का स्वर्ग भोगने का हक है।”
यमराज ने बैकुंठनारायण से पूछा, “तुम पहले स्वर्ग चाहोगे अथवा नरक” भागना । बैठनारायण बोला”महाराज! स्वर्ग का सुख मुझे थोड़ा ही मिलेगाअत: पहले मैं स्वर्ग ही भोग लेना चाहता हूं, नरक तो भोगता ही रहूंगा।” तब यमराज बोले, ठीक है, तुमने जो गाय दान में दी थी, वही गाय तुम्हारे आदेश का पालन करेगी। लेकिन ऐसा कुछ समय तक ही होगा।”
बैकुंठनारायण बोला, “ठीक है, यमदेव!” फिर उसने गाय को आदेश दिया, “जाओ, यमराज को मारो।” आदेश मिलते ही गाय नथने फुलाते हुएपूंछ उठाकर यमराज को मारने दौड़ी। गाय से बचने के लिए यमराज शिवलोक में जा पहुंचे और बचाव की प्रार्थना करने लगे।
भगवान शिव अभी कुछ उपाय बताते तब तक गाय और बैकुंठनारायण भी शिवलोक में धमक पड़े।
बैकुठनारायण सोचा ने कि भगवान शिव कहीं यमराज को बचा न लें, अत: उसने गाय को भगवान शिव का पीछा करने का आदेश दे डाला। अब गाय भगवान शिव को मारने दौड़ी तो वह भी भाग छूटे।
इस प्रकार आगेआगे यमराजपीछे भगवान शिवउनके पीछे गाय आर अत में । बैकुठनारायण था। वे सब भगवान विष्णु के धाम बैकुंठलोक में जा पहुंचे। इस बीच स्वर्ग सुख का समय समाप्त हो चुका था। यमराज बैकुंठनारायण को घसीटते हुए यमपुरी ले जाने लगे।
तभी भगवान विष्णु ने कहा“ठहरो यमदेव! बैकुंठनारायण ने एकसाथ ही हम सबके दर्शन कर लिए हैं, इसलिए यह बैकुंठधाम का वासी हो चुका है। अब तुम इसे छोड़ दो। ”
इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है कथा-सार।
बुद्धि से काम लिया जाए तो ईश्वर भी सहायता करता है।