कभी नेमप्लेट और कभी लक्ष्मी को देखे जा रहा है। उसे वह दिन याद आया जब लक्ष्मी और अमर का विवाह था सभी बेहद खुश थे। बारात का स्वागत धूमधाम से किया गया।सभी रिश्तेदार खुश थे और बातचीत कर रहे थे कि लक्ष्मी बहुत भाग्यशाली है जो उसे पढ़ा-लिखा, ऊँचे पद पर काम करने वाला साथी मिला, तभी अमर को पता चला कि लक्ष्मी केवल तीसरी कक्षा तक पढ़ी है तो उसने उसी समय विवाह से इंकार कर दिया। लक्ष्मी के परिवार वालों ने यह बात पहले ही अमर के माता-पिता को बता दी थी पर उन्होंने दहेज के लालच में अमर को यह नहीं बताया था।
सभी ने अमर को बहुत समझाया पर अमर टस से मस न हुआ और वहाँ से चला आया। लक्ष्मी और उसके परिवार वाले बेहद दुःखी थे,पर लक्ष्मी ने अगले कुछेक दिनों में पढ़कर कुछ बनने का निश्चय कर लिया, लेकिन वह कहाँ से शुरुआत करे समझ नहीं पा रही थी, तभी उसे अपनी अध्यापिका सरला जी का ध्यान आया जो हमेशा उसे आगे पढ़ने को कहती थीं। लक्ष्मी फौरन उनके पास गई सरला जी उसे देखकर बेहद खुश हुईं। उन्होंने उसका हालचाल पूछा तो लक्ष्मी ने सारी बात बताई।
सरला जी ने उसे पढ़ाने का फैसला लिया। कुछ समय गुजरा धीरे-धीरे लक्ष्मी की लगन और मेहनत रंग लाई और लक्ष्मी कलेक्टर की परीक्षा पास करके कलेक्टर बन गई। आज अमर को अपने किए पर पछतावा हो रहा है क्योंकि जिस लक्ष्मी को कम पढ़ी-लिखी कहकर उसके साथ विवाह करने से इंकार कर दिया था और जिस पढ़ी-लिखी से उसने विवाह किया वह उससे तलाक ले चुकी थी। आज लक्ष्मी आत्मसम्मान से भरी उसके सामने खड़ी थी और वह उसकी नज़रों से नज़रें भी नहीं मिला पा रह