लाल बहादुर शास्त्री जी अपनी सादगी और देशसेवा की भावना के लिए प्रसिद्ध थे। एक बार की बात है, तब शास्त्रीजी केंद्रीय मंत्री थे। उस समय के प्रधानमंत्री नेहरूजी उन्हें किसी जरूरी काम से कश्मीर भेजना चाहते थे।
लेकिन शास्त्रीजी ने उन्हें कहा कि किसी और को उनकी जगह भेज दिया जाय। नेहरूजी ने उनसे इसका कारण पूछा। उन्होंने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया कि इस समय कश्मीर में बड़ी सर्दी पड़ रही है।
मेरे पास गर्म कोट नहीं है। इसलिए आप किसी और को वहां भेज दें। नेहरू जी उनकी सादगी से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बहुत आग्रह करके शास्त्री जी को अपना एक कोट दे दिया।
लेकिन चूंकि शास्त्रीजी छोटे कद के थे और नेहरूजी लंबे। इसलिए नेहरूजी का कोट शास्त्रीजी को फिट नहीं आया। इसलिए मजबूरी में शास्त्रीजी अपने एक मित्र को साथ लेकर नया कोट खरीदने बाजार गए।
वहां उन्होंने बहुत सी दुकानें देखी। लेकिन कोई कोट पसंद नहीं आया। अगर कोई पसंद आता तो वह बहुत महंगा होता और सस्ता कोट उन्हें फिट नहीं आता। अंत में एक दुकानदार ने उन्हें एक दर्जी का पता दिया।
जो सस्ते कोट सिलता था। शास्त्रीजी ने एक सस्ता कपड़ा खरीदा और सिलने को दे दिया। वापसी में उनके मित्र ने पूछा, “आप केंद्रीय मंत्री हैं। अगर आप चाहें तो आपके पास कोटों की लाइन लग जाये।”
“फिर भी आप एक सस्ते कोट के लिए बाजार में मारे-मारे फिर रहे हैं।” शास्त्रीजी ने उत्तर दिया, ” भाई मुझे इतना वेतन नहीं मिलता की मैं महंगा कोट पहन सकूं। मेरे लिए सभी सुख-सुविधाओं से बढ़कर देश सेवा है। जोकि मैं सस्ते कपड़ों में भी कर सकता हूँ।”
ऐसे थे जय जवान-जय किसान का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्रीजी। यह प्रेरक प्रसंग उनकी सादगी और देशप्रेम को दिखाता है।