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इंसानियत की कद्र करना इनसे सीखें

एक बार एक नवाब की राजधानी में एक फकीर आया। फकीर की कीर्ति सुनकर पूरे नवाबी ठाठ के साथ भेंट के थाल लिए हुए वह फकीर के पास पहुंचा। तब फकीर कुछ लोगों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने नवाब को बैठने का निर्देश दिया। जब नवाब का नंबर आया तो फकीर ने नवाब की ओर बढ़ा दिया।

भेंट के हीरे-जवाहरातों को भरे थालों को फकीर ने छुआ तक नहीं, हां बदले में एक सूखी रोटी नवाब को दी, कहां इसे खा लो। रोटी सख्त थी, नवाब से चबायी नहीं गई। तब फकीर ने कहा जैसे आपकी दी हुई वस्तु मेरे काम की नहीं उसी तरह मेरी दी हुई वस्तु आपके काम की नहीं।

हमें वही लेना चाहिए जो हमारे काम का हो। अपने काम का श्रेय भी नहीं लेना चाहिए। नवाब फकीर की इन बातों को सुनकर काफी प्रभावित हुआ। नवाब जब जाने के लिए हुआ तो फकीर भी दरवाजे तक उसे छोड़ने आया। नवाब ने पूछा, मैं जब आया था तब आपने देखा तक नहीं था, अब छोड़ने आ रहे हैं?

फकीर बोला, बेटा जब तुम आए थे तब तुम्हारे साथ अहंकार था। अब तो चोला तुमने उतार दिया है तुम इंसान बन गए हो। हम इंसानियत का आदर करते हैं। नवाब नतमस्तक हो गया।

In English

Once there was a fakir in the capital of a Nawab. Upon hearing the fakir’s story, he reached near the fakir, who came with the whole Navabhi chic, for the gift of offering. Then the fakir was talking to some people. They instructed the Nawab to sit. When Nawab came, the fakir extended towards the Nawab.

The diamonds of the offering were not touched by the favors filled with gems, but instead gave a dry roti to the Nawab, where to eat it. The bread was strict, the Nawab did not chewed. Then the fakir said that the thing you gave me is not of my work, in the same way my given thing is not of your work.

We should take what belongs to our work. Do not even take credit for your work. Nawab was very impressed by these aspects of Faqir. When Nawab came to go, Fakir too came to the door to leave him. Nawab asked, when I came, you did not even see it, now you are coming to leave?

Fakir said, son, when you came, you had an ego with you. You have now become a human, now you have become a human. We respect humanity. Nawab became a bowl.

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