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भगवान शिव के लिए माता पार्वती ने किया था घोर तप

Bhagavaan shiv ke lie maataa paarvatee ne kiyaa thaa ghor tap
Bhagavaan shiv ke lie maataa paarvatee ne kiyaa thaa ghor tap

शिवपुराण में कथा है कि ब्रह्माजी के आदेशानुसार भगवान शंकर को वरण करने के लिए पार्वती ने कठोर तप किया था। ब्रह्मा के आदेशोपरांत महर्षि नारद ने पार्वती को पंचाक्षर मंत्र “शिवाय नमः” की दीक्षा दी। दीक्षा लेकर पार्वती सखियों के साथ तपोवन में जाकर कठोर तपस्या करने लगीं। उनके कठोर तप का वर्णन शिवपुराण में आया है। माता-पिता की आज्ञा लेकर पार्वती ने सर्वप्रथम राजसी वस्त्रों और अलंकारों का परित्याग किया। हार को गले से निकालकर मृग चर्म धारण किया और गंगावतरण नामक पावन क्षेत्र में सुंदर वेदी बनाकर वे तपस्या में बैठ गईं। भयंकर शीत-ऋतु में जल के मध्य रात-दिन बैठकर उन्होंने कठोर तप किया। इस प्रकार निराहार रहकर पार्वती ने पंचाक्षर मंत्र का जप करते हुए सकल मनोरथ पूर्ण करनेवाले भगवान सदाशिव के ध्यान में मन को लगाया। सयानी पार्वती को देखकर माता मैना और पिता हिमालय को पुत्री के विवाह की चिंता हुई। इतने में महर्षि नारद वहां आ गए। नारद जी को घर में आया देखकर राजा-रानी ने कन्या के भविष्य के विषय में पूछा। नारद जी ने पार्वती का हाथ देखकर भविष्यवाणी की- राजा हिमालय ने प्रश्न में बेटी के अवगुण पहले पूछे थे किंतु नारदजी ने पहले पार्वती के गुणों का कथन किया। नारदजी चतुर और मनोवैज्ञानिक वक्ता हैं। अतः माता-पिता से पार्वती के दिव्य गुणों की चर्चा करते हैं। सद्गुणों की एक लंबी सूची नारदजी ने प्रस्तुत की किंतु जब पार्वती के पिता ने पूछा कि महाराज! कुछ दोष हों तो वे भी बतला दें। पुनः नारदजी ने कहा- “सुनहु जे अब अवगुन दुइ चारी” दो चार अवगुण भी हैं उन्हें भी सुन लो। नारदजी ने कहा कि पार्वती पुत्री तो सर्वगुण संपन्न हैं, किंतु इसका पति जटाजुटधारी, दिगम्बर तथा अमंगल वेश वाला होगा। नारदजी की बात सुनकर माता-पिता तो उदास हो गए किंतु पार्वती को आंतरिक प्रसन्नता हुई – “जौ बिबाहु संकर सन होई। दोषउ गुन सम कह सबु कोई” नारदजी ने पार्वती के माता-पिता को समझाया कि जिन दोषों का वर्णन मैंने किया वे सभी शंकर जी में हैं और पार्वती का विवाह यदि भगवान शंकर से हो गया तो ये दोष भी गुण में परिणत हो जाएंगे। अंत में नारदजी ने यहां तक कह दिया कि शिव को छोड़कर संसार में पार्वती के लिए दूसरा वर है ही नहीं किंतु आशुतोष होने पर भी शंकर जी दुराराध्य हैं। यानी शिव जी कठोर उपासना से प्रसन्न होते हैं। उनको प्राप्त करने का एक ही उपाय है कि पार्वती वन में जाकर कठोर तप करें। नारदजी की प्रेरणा से माता-पिता की आज्ञा लेकर पार्वतीजी हिमालय के वन में तपस्या करने चली जाती हैं। पार्वती जी ने शिवजी के चरणों का ध्यान करते हुए संपूर्ण भोगों तथा सुख के साधनों का परित्याग कर दिया। एक हजार वर्ष तक मूल और फल का सौ वर्ष केवल शाक का आहार किया। कुछ दिन तक पानी का हवा का आहार किया, कुछ दिन इन्हें भी त्यागकर कठिन उपवास किया। पुनः वृक्ष से गिरी हुई बेल की सूखी पत्तियां खाकर तीन हजार वर्ष व्यतीत किया। जब पार्वती ने सूखी पत्तियां लेना बंद कर दिया तो उनका नाम अपर्णा पड़ गया। पार्वती को कठोर तपस्या की देखकर आकाशवाणी हुई कि हे देवी! तुम्हारे मनोरथ पूर्ण हो गए। अब तुम हठ छोड़कर घर जाओ, भगवान शंकर से शीघ्र मिलन होगा और इस प्रकार कठोर तपस्या के बाद माता पार्वती भगवान शिव को पति के रुप में प्राप्त करती है।

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