महाप्रलय के बाद भगवान नारायण दीर्घ कालतक योगनिद्रा में निमग्र रहे। योगनिद्रा से जगने के बाद उनकी नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ। जिसकी कर्णिकाओंपर स्वयम्भू श्रीब्रह्मा प्रकट हुए। उन्होंने अपने नेत्रों को चारों ओर घुमाकर शून्य में देखा। इस चेष्टा से चारों दिशाओं में उनके चार मुख प्रकट हो गये। जब चारों ओर देखने से उन्हें कुछ भी दिखलायी नहीं पड़ा, तब उन्होंने सोचा कि इस कमल पर बैठा हुआ मैं कौन हूं? मैं कहां से आया हूं तथा यह कमल कहां से निकला है? दीर्घ काल तक तप करने के बाद श्रीब्रह्मा को शेषशय्या पर सोयो हुए भगवान विष्णु के दर्शन हुए। अपने एंव विश्व के कारण पुरुष का दर्शन करके कहा कि अब आप तप: शक्ति से सम्पन्न हो गये हैं और आपको मेरा अनुग्रह भी प्राप्त हो गया है। अत: अब आप सृष्टि करने का प्रयत्न कीजिये। भगवान विष्णु की प्रेरणा से सरस्वती देवी ने ब्रम्हाजी को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान कराया।
सभी पुराणों तथा स्मृतियों में सृष्टि-प्रक्रिया में सर्वप्रथम श्रीब्रह्मा के प्रकट होने का वर्णन मिलता है। वह मानसिक संकल्प से प्रजापतियों को उत्पन्न कर उनके द्वारा संपूर्ण प्रजा की सृष्टि करते हैं। इसलिए वह प्रजापतियों के भी पति कहे जाते हैं। मरीचि ,अत्रि,अंगिरा,पुलस्य,पुलह,क्रतु,भृगु,वशिष्ठ,दक्ष तथा कर्दम -यह दस मुख्य प्रजापति हैं। भागवतादि पुराणों के अनुसार भगवान रुद्र भी श्रीब्रह्मा के ललाट से उत्पन्न हुए।स मानव सृष्टि के मूल महाराज मनु उनके दक्षिण भाग से उत्पन्न हुए और वाम भाग से शतरूपा की उत्पत्ति हुई। स्वायम्भुव मनु और महारानी शतरूपा से मैथुनी-सृष्टि प्रारम्भ हुई। सभी देवता ,दानव तथा सभी जीवों के पितामह हैं फिर भी वह विशेष रूप से धर्म के पक्षपाती हैं। इसलिए जब देवासुरादि सग्रामों में पराजित होकर देवता श्रीब्रह्मा के पास जाते हैं, तब ब्रम्हाजी धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु को अवतार लेने के लिए प्रेरित करते हैं। अत: भगवान विष्णु के प्राय: चौबीस अवतारों में यह ही निमित्त बनते हैं।
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