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महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?

महामृत्युंजय मंत्र का उत्पत्ति ऋग्वेद से हुई है, जो एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है। यह मंत्र ऋग्वेद में “मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्” (Mrityormukshīya mā’mṛitāt) ऋक के अंतर्गत आता है, जिसका अर्थ है, “मुझे मृत्यु से मुक्त करो और अमृत से योग्य बनाओ”।

इस मंत्र को श्रवण करने और जप करने में शिवभक्तों को आत्मिक शांति और मृत्यु से मुक्ति की कामना होती है। महामृत्युंजय मंत्र को शिवपुराण और यजुर्वेद साहित्य में भी प्रमुखता से उल्लेख किया गया है।

यह मंत्र हिन्दू धर्म में मृत्यु से मुक्ति, रोगों की शान्ति और आत्मा के पुनर्जन्म की कामना के लिए जाना जाता है। लोग इसे नियमित रूप से जपते हैं और अपने आत्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इसका अभ्यास करते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र को हिन्दू धर्म में एक अत्यंत प्रभावशाली मंत्र माना जाता है जो भगवान शिव की स्तुति में है और मृत्युंजय रूपी भगवान की कृपा को प्राप्त करने का उपाय होता है। इस मंत्र का जप भगवान शिव के आशीर्वाद से व्यक्ति को मृत्यु से मुक्ति और आत्मिक शक्ति प्रदान करता है।

महामृत्युंजय मंत्र की शक्ति कुछ मुख्य दिशाएं हैं:

  1. मृत्यु से मुक्ति: मंत्र का जप करने से व्यक्ति को मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और उसकी आत्मा को नए जन्मों की ओर प्रवृत्ति होती है।
  2. रोग निवारण: महामृत्युंजय मंत्र का जप रोगों को ठीक करने और रोगों से बचाव के लिए किया जाता है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायक होता है।
  3. आत्मिक शक्ति: मंत्र का जप करने से व्यक्ति को आत्मिक शक्ति मिलती है, जिससे उसमें उत्साह, साहस, और आत्मविश्वास की भावना बढ़ती है।
  4. योगिक उन्नति: महामृत्युंजय मंत्र का जप ध्यान और योगाभ्यास में मदद करता है। यह मानव चेतना को ऊँचाईयों तक ले जाने में सहायक होता है।

इस मंत्र की शक्ति पर विश्वास करने वाले लोग इसे नियमित रूप से जप करते हैं और अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन महसूस करते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई ?
किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना और जाने इसकी शक्ति
शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था.
*मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए.
*मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं.
*महादेव प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा.
*भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है.
*ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है.
*मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी.
मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे.
मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए. यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था.
यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए.
इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए.
बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया.
*यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं.
शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?
*यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है.
*भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते.
*यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा.
*महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है.

महामृत्युंजय मंत्र कहाँ से लिया गया है?
महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है। वहीं शिवपुराण सहित अन्य ग्रंथो में भी इसका महत्व बताया गया है। संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो मृत्यु को जीतने वाला हो। इसलिए भगवान शिव की स्तुति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई?
मार्कण्डेय ने ‘महामृत्युंजय मंत्र’ की रचना की और उसका जाप करने लगे। मार्कण्डेय ने कई वर्षों तक इसी मंत्र का जाप करते हुए घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दीर्घायु होने का वरदान दिया। बालक मार्कण्डेय के द्वारा निर्मित होने के कारण यह मंत्र भगवान शिव का प्रिय हो गया।

महा मृत्युंजय मंत्र का आविष्कार किसने किया था?
मार्कण्डेय ने अपने पिता से कहा कि उन्हें कुछ नहीं होगा। मार्कण्डेय अपने माता-पिता से आज्ञा लेकर भगवान शिव की तपस्या करने चले गये। उन्होंने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की। वे एक वर्ष तक इसका पाठ करते रहे।

मृत्युंजय और महामृत्युंजय में क्या अंतर है?
मृत्युंजय मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र में कोई अंतर नहीं है। ये दोनों मंत्र एक ही हैं। यह मंत्र भगवान शिव की स्तुति है और इसे मृत्यु को जीतने वाला मंत्र भी कहा जाता है। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

सही महामृत्युंजय मंत्र क्या है?
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ। शास्त्रों के अनुसार, इस मंत्र का जाप करने से मरते हुए व्यक्ति को भी जीवन दान मिल सकता है.

महामृत्युंजय मंत्र कितना शक्तिशाली है?
शास्त्रों में महादेव के एक मंत्र को महामृत्युंजय से भी कहीं ज्यादा शक्तिशाली माना गया है. ये मंत्र तमाम गंभीर बीमारियों से निजात दिलाने में कारगर है, साथ ही इसको लेकर ये भी मान्यता है कि इस मंत्र के जाप से मरा हुआ शख्स भी जीवित हो सकता है. सनातन धर्म में महामृत्युंजय मंत्र को बहुत शक्तिशाली माना जाता है.

महामृत्युंजय मंत्र कितनी बार में सिद्ध होता है?
इसका 108 बार रोजाना जाप करने से मनुष्य की सभी बाधाएं और परेशानियां खत्म हो जाती हैं और अधिक से अधिक लाभ प्राप्त होता है. माना जाता है कि ये मोक्ष मंत्र है. महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है. शविपुराण में भी इसका महत्व बताया गया है.


🚩🚩हर हर महादेव🚩🚩
🚩🚩जय श्री महाकाल 🚩🚩
🚩🚩उमापति महादेव की जय 🚩🚩

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