रोज की तरह संगीता अपनी कम्पनी से बस में खड़े होकर सफर करती हुई लौटी थी शरीर थकान से चूर चूर हो रहा था इसलिए वह घर में घुसते ही बिस्तर पर लेट गई तभी मोबाइल पर बेटी के नाम की रिंगटोन सुन उसने फुर्ती से फोन उठा लिया
हैलो मम्मी मैं दस मिनट में घर आ रही हूं कुछ चटपटा खाने को बना लो
अरे सुमन बेटा सुन आज मैं बहुत थकी हूं और अभी कोई सब्जी वगैरह की भी तैयारी भी नहीं है एक काम कर तू बाजार से ही कुछ लेकर आ दोनों मां बेटी साथ में खा लेंगे ठीक है कहकर फोन साइट में रखकर संगीता निश्चित हो आराम करने लगी तभी दीवार पर टंगी हुई अपने पति की हार टंगी तस्वीर पर नजर गई तो अकस्मात ही उनके द्वारा कही हुई बातें स्मरण हो उठी… संगीता ये सब ठीक नहीं है सुमन को अपनी गृहस्थी में रमने दो यूं लाड़ प्यार करना ठीक नहीं आएं दिन यहां आकर कभी ये बना दो कभी वो बना दो खुद भी तो बना सकती है ना या कम से कम कभी अपने यहां से तुम्हारे लिए कुछ बना कर भी तो ला सकती है ना
आप भी ना बच्ची है वो अभी और पास में रहती है तो आ जाती है | मां के हाथ का बना पसंद है तो वहां कहा मिलता होगा मां मां होती है और सास सास संगीता इसलिए कहता हूं उसे अपने सास ससुर और ससुराल में रमने दो मगर ओफ्फो छोड़ो तुम तो बेकार में ही
देखना एक दिन तुम स्वयं पछताओगी याद रखना अभी तो मैं हूं कल यदि ना रहा तो पीसकर रह जाओगी संभल जाओ मगर संगीता को बेटी का प्यार भरे अंदाज में कहना भाता था पहले पहल तो संगीता को अच्छा लगता मगर जब कभी थकी हुई कम्पनी से लौटकर आती और सुमन उसे अनदेखा कर फरमाइशें करती कभी ये बना दो कभी वो कभी कभी तो अपने पति के साथ डिनर आपके यहां करुंगी कहकर आ जाती और बिना किसी मदद के का पीकर निकल जाती बाद में बर्तन साफ करते हुए संगीता की कमर अक्सर जबाब दे जाती बढ़ती उम्र में पहले कम्पनी में फिर बसों में सफर घर आकर यूं बेवजह का काम बढ़ना शरीर एक तय सीमा तक ही थकान झेल पाता था
आखिरकार उसने सोच ही लिया था वह अपने पति की कही बातों का मान रखते हुए अगली बार सुमन को ही कुछ लाने का कहेंगी एकबार फिर वह अपने पति की तस्वीर देखकर बुदबुदाई … आखिर आज आपका कहा मानकर सुमन से कुछ लाने का कह ही दिया देखना वो अभी अपनी मां के लिए क्या कुछ नहीं लेकर आती, मगर इंतजार करते हुए डेढ़ घंटे से ऊपर का समय बीत गया ना तो सुमन आई ना ही उसने कोई फोन करके बताया कि वह कहां है और क्या ला रही है आखिरकार उसने चिंतित होकर सुमन को फोन किया
हैलो सुमन कहा रह गई बेटा जबाब में सुमन खींझते हुए गुस्से में बोली मम्मी जब खरीदकर ही खाना था तो मैंने यही से मंगवा कर खा लिया अच्छा सुनो रात को डिनर के लिए इनके साथ आती हूं कुछ मटर पनीर कोफ्ते वगैरह बना लेना
सुमन की बात सुनकर संगीता अवाक सी रह गई फिर स्वयं को संभालते हुए बोली
सुमन सुन बेटा मैं तुम्हें वहीं बता रही थी आज कम्पनी के सहकर्मी के बेटे की बर्थडे पार्टी तो मुझे भी डिनर के लिए बुलाया है तुम किसी और दिन आ जाना फिर कभी अच्छा कल का डिनर रख लें नहीं बेटा हो सकता है कल से मैं ओवरटाइम शुरू कर लूं कम्पनी रात को खाना भी देती है तो बनाने की मेहनत भी बच जाएगी में तुम्हें सामने से बता दूंगी जब मुझे समय होगा ठीक है अच्छा नमस्ते बेटा कहकर संगीता ने फोन रख दिया और फिर से अपने पति की तस्वीर की और भींगी हुई पलकों को साफ करते हुए कहा आप इतने समय से मुझे समझाते रहे मगर मैं हमेशा आपकों ही कहते हैं ना अच्छी बातें देर से समझ आती है आप हमेशा मुझे संभलने को कहते थे ना लीजिए आज मैं संभल ही गई।