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मटकिया फुट गई हो प्यारी राधे रूठ गई

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कैसे मनाऊ प्यार कैसे जताऊ मेरे हाथ से कंकरिया छुट गई
मटकिया फुट गई हो प्यारी राधे रूठ गई…..

बातो से करता हु मैं बस शरारत तेरे कान्हा को जान जारी
ऐसे निगाहें चुराती हो क्यों तुम मेरी राधिके मान जा री
ऐसे न देखो आ पास बैठो गुस्से में ऐसे तू क्यों उठ गई
मटकिया फुट गई हो प्यारी राधे रूठ गई…..

दीवाना बनाये मेरे दिल को भाये अदा रूठने की तुम्हारी
चुप यु रहो न कुछ तो कहो न मेरी राधिके प्यारी प्यारी,
मनाता ये कान्हा तेरा यु रूठ जाना ऐसी अदा मुझको लुट गई
मटकिया फुट गई हो प्यारी राधे रूठ गई….

जाने है कैसी कशिश तुझमे राधे तेरी ही लत बस लगी है
करती है सजदा तुझको कविता तुझमें मगन हो चुकी है
तुझसे शुर तुझपे खत्म मेरी तो हर बात इस में झूठ नही
मटकिया फुट गई हो प्यारी राधे रूठ गई…………..

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