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तीर्थ का अर्थ

अपनी सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी खत्म करके घर लौटे बिरजू ने देखा उसकी मां बाहर दरवाजे पर खड़ी हुई उसकी राह देख रही थी अंदर आकर हाथ मुंह धोकर दोनों ने भोजन किया तो मां ने उसे प्रसाद देते हुए कहा आज गली के मोड़ वाली सुमन भी वैष्णो देवी मंदिर दर्शन कर आई बस एक में ही हूं जो कोई तीर्थ …..

मां की ये बात सुनकर बिरजू मनमोसकर रह गया दरअसल गली में जब से पड़ोस में रहनेवाली आंटीजी और उनके बच्चे अमृतसर गुरुद्वारे दर्शन करके आएं थे मां भी जिद किए बैठी थी उसे भी ऐसे ही किसी तीर्थ स्थल पर दर्शन करने जाना है वैसे उनकी ये इच्छा पूरी करने की तैयारी में बिरजू भी लगा हुआ था बीते कुछ महीनों से अपने सिक्योरिटी सुपरवाइजर से वह कुछ एक्स्ट्रा ड्युटी की बात भी कर चुका था ताकि वह भी मां को किसी तीर्थ स्थल की यात्रा करवा सकें और इन एक्स्ट्रा ड्युटी से आने जाने के लिए कुछ पैसों का इंतजाम हो सकें

उसकी कम्पनी सुपरवाइजर ने उसे बताया था कि जल्द ही कम्पनी सभी सिक्योरिटी गार्ड को सैलरी बढ़ाकर देने वाली है और पिछले कुछ दिनों से वो एक्सट्रा ड्युटी भी कर रहा था जिसके चलते वो सुबह पांच बजे निकल जाता था तो रात को ग्यारह बजे तक लौटकर घर आया करता था आज वो बहुत खुश था वह जल्द से जल्द घर पहुंचकर अपनी मां को खुशखबरी सुनाना चाहता था की उसकी सैलरी बढ गई है और आज की एक्स्ट्रा ड्युटी मिलाकर और कुछ जोड़े हुए पैसे मिलाकर उसके पास लगभग दस हजार रुपए इकट्ठा हो गए हैं

घर पहुंचकर उसने देखा मां चुपचाप टीवी चला कर बैठी हुई है वह खुशी से उसके गले में अपनी बाहों को डालकर बोला….मां…. आपकी मनोकामना पूर्ण होती हुई दिख रही है हम भी अगले हफ्ते ही जहां आप कहोगी वहां तीर्थ स्थल चलेंगे चाहो तो माता वैष्णो देवी जी के दर्शन करने चलेंगे अब मेरे पास दस हजार रुपए इकट्ठा हो गए हैं मां ने बिरजू की बात सुनकर चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान दी पर उनकी मुस्कान में वो खुशी वो उत्साह नज़र नहीं आ रहा था जो अक्सर वो दूसरे के जाने पर स्वयं के जाने का सोचकर हो उठती थी

क्या हुआ मां…. आपकी तबियत ठीक तो है ना….

मेरी तबियत को क्या हुआ भला मैं ठीक हूं मां बोली

फिर आप मुझे खुश कयुं नहीं लग रही हो इतने समय से आप ही तो जिद लिए बैठी हुई थी की मुझे भी किसी तीर्थ स्थल दर्शन करने जाना है और आज जब मौका आया तो आपके चेहरे पर वो खुशी नजर नहीं आ रही

नहीं ऐसा कुछ नहीं है तू बेकार में….नहीं मां….कोई तो बात जरूर है बताओ ना देखो घर में हम केवल दो ही लोग हैं अगर मुझे कोई परेशानी है तो में आपसे ही कहूंगा ना ताकि उस परेशानी का कोई हल निकल सकें और यदि आप परेशान हो तो मुझे नहीं तो किसे बताओगी कहो ना |

बिरजू की बात सुनकर मां ने एकटक उसकी और देखा और फिर बोली….बिरजू में सोच रही हूं भगवान तो सभी जगह एक ही हैं तो बेकार इतनी दूर जाकर ….मां की अधूरी बात से ही बिरजू समझ गया की जरुर मां के मन में जरूर कुछ चल रहा है वह उसके हाथों को सिर पर रखकर बोला….क्या हुआ मां बताओ मुझे बिरजू आज गांव से रामू लौटकर आया तो बता रहा था तुझे याद है तेरे केशव चाचा हमारे मुसीबत के वक्त में हमारी बड़ी मदद की थी उन्होंने …अब वो तो रहे नहीं..

उनकी बेटी की शादी है अगले महीने…सोचती हूं एक अकेली मां कैसे इतना कुछ कर पाएंगी तो वापस गांव चली जाऊं….उन्हें कुछ पैसे की मदद भी.. मां कहते हुए झिझक रही थी बिरजू ने मां के हाथ को अपने हाथ में ले लिया और कहा ….मां आपका उस तीर्थ से इस तीर्थ जाने का फैसला सही है में समझ नहीं पा रहा ये सब कहते हुए आप झिझक क्युं रही है मां इस दुनिया में बेटी के कन्यादान से बढ़कर कोई तीर्थ नहीं है….और मां मैं अपने कम्पनी सुपरवाइजर अगले महीने छुट्टी की अर्जी लगा देता हूं आखिर बहन की शादी में उसके भाई का होना भी तो जरूरी है कि नहीं… कहकर बिरजू हंसने लगा

मगर बेटा….तुमने इतने दिनों तक डबल ड्यूटी करते हुए मेहनत की और अपनी बचत ….

मां….ये बचत ये डबल ड्यूटी अपने परिवार के लिए ही तो की थी अब खर्च चाहे मां की यात्रा में हो या बहन की शादी में ….है तो परिवार ही …बिरजू की बात सुनकर मां ने भीगी हुई पलकों को साफ करते हुए उसके सिर पर हाथ फेरते हुए ढेरों आशीर्वाद देते हुए उसके माथे को चूम लिया….

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