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मेरी पसंदीद फिल्म

तो आज आपको एक ऐसी भूली हुई फ़िल्म के बारे में बताती हूँ जिसका गाना हमने रेडियो पर फ़रमाईश करवाया था अपनी अंजू मौसी जी के लिए और बजा भी था।
हमने फ़रमाईश भेजी थी पीले पोस्ट कार्ड पर चंडीगढ़ से और उन्होंने सुना था इसे मुरादाबाद में।
इस फ़िल्म के गाने सुपरहिट, फ़िल्म सुपर डुपर हिट थी और हीरोईन ने दो किरदार निभाये थे, माँ का भी और बेटी का भी।
सुचित्रा सेन और अशोक कुमार के साथ बेहद हैंडसम धर्मेंद्र को हमने पहली बार दूरदर्शन पर देखा था और दिल बैठ गया था की जैसे किसी ग्रीक गॉड को देख लिया हो।उफ़ क्या लगते थे धर्मेंद्र तब! शानदार बेमिसाल! पर अशोक कुमार के अभिनय के सामने किसी उनको नोटिस ही नहीं किया था। उन्होंने ख़ुद ये बात स्टारडस्ट मैगजीन् में कही थी कि मेरा रोल तो कोई भी कर सकता था क्योंकि अशोक कुमार थे इस फ़िल्म में तो मुझे कोई देख ही नहीं पाया।
अमीर लड़के का गरीब मजबूर लड़की से प्रेम और मढ़के का विदेश पढ़ाई के लिये चले जाना, लड़की के पिता के ऊपर विलेन का क़र्ज़ा होना और लड़की की ज़बरदस्ती उसी से ब्याह कर देना तो सही था पर आगे जो मजबूरियाँ और ट्विस्ट एंड टर्न्स थे उन्होंने कितना रुलाया महिलाओं को की क्या कोई फ़िल्म रुलाएगी। उस प्रेमिका की बच्ची को छाती से लगा के बड़ा करना और वकील बनाना, माँ के हाथ एक हत्या हो जाना और लड़की का माँ को इंसाफ़ दिलाना। फ़िल्म नहीं मानो एक पूरा नावेल था स्क्रीन पर।
इस फ़िल्म के लयबद्ध कर्णप्रिय गाने इतने ज़्यादा पॉपुलर हैं आज भी की इस फ़िल्म के वीडियो अगर आप यूट्यूब पर देखेंगे तो हफ़्ते दस दिन पहले किसी ना किसी का कॉमेंट पोस्टेड ही होगा पक्का। सोचिए आज भी कितने लाखों दिलों में इसके गीत बसे हुए हैं।
१- रहे ना रहे हम
२- छुपा को दिल में यूँ प्यार मेरा
३- रहते थे कभी जिनके
४- इन बहारों में
सुचित्रा सेन की भव्य सुंदरता और गंभीर अभिनय के साथ अशोक कुमार की स्क्रीन शेयरिंग और ग़ज़ब का निर्देशन था फ़िल्म का। बहुत ही सेंसेटिव टॉपिक पर बनी थी तो शुरू में जेसी फ़िल्म से डिस्ट्रिब्यूटर डरे पर फिर इस फ़िल्म ने तो सफलता के वो झंडे गाड़े की फ़िल्म बहुत हिट होकर ही पर्दे से उतरी।
इसके कोर्ट और बँगलो के शूटिंग बहुत अच्छी स्टोरी सेटिंग सीन से भरी हुई है। आप अबकी फ़िल्मों के झूठे ग्राफ़िक सेट्स से कहीं ना कहीं उबा हुआ महसूस करोगे। पुराने जमाने में हर चीज़ में सच्चाई दिखाने का प्रयत्न किया जाता था। आप बिना फिल्टर्स के एक बेहद मंजी हुई और सुंदर हीरोइन को सीधा बिना फिल्टर्स के देख रहे हो इस फ़िल्म में। आप हर सीन के साथ उनके साथ जुड़ते चले जाते हो।
मैंने अभी दो तीन दिन पहले ही इस फ़िल्म को दोबारा पूरा देखा। कई कई जगह ये आपको रोने पर बेबस कर देती है। इतना अच्छा कम्बिनेशन था भावनाओं का की अभिनेताओं का इसकी स्टोरीलाइन से जुड़ाव साफ़ नज़र आता है। पुरानी फ़िल्मों में मेरी पसंदीद फिल्मों में एक है ये फ़िल्म। 🙏🏻❤️

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