रमेश का एक छोटा सा परिवार था, जिसमें एक ख़ूबसूरत पत्नि और दो प्यारे बच्चे थे. उसकी पत्नि और बच्चे हर हाल में ख़ुश थे. लेकिन रमेश उन्हें ज़िंदगी के सारे ऐशो-आराम देना चाहता था और इसके लिए वह प्रतिदिन १६ घंटे से भी अधिक काम किया करता था. दिनभर ऑफिस में काम करने के साथ-साथ वह सुबह और शाम ट्यूशन सेंटर में ट्यूशन भी पढ़ाया करता था.
वह सुबह-सुबह घर से निकल जाता और आधी रात के बाद घर लौटता था. बच्चों के लिए उसका चेहरा देखना मुहाल था, क्योंकि सुबह-सवेरे उसके घर से निकलते समय बच्चे सोते रहते और देर रात घर में कदम रखने के पहले ही सो चुके होते. हाँ, रविवार को ज़रूर वह घर पर होता. लेकिन उस दिन भी वह किसी न किसी काम में व्यस्त रहता और उसका समय परिवार के साथ न बीतकर काम करते हुए बीतता. परिवार उसके साथ क्वालिटी टाइम बिताने का बस इंतजार करता रह जाता.
पत्नि अक्सर उससे कहा करती कि उसे घर में वक़्त बिताना चाहिए. बच्चे उसे बहुत मिस करते हैं. उस वक़्त वह यही जवाब देता कि ये सब मैं उनके लिए ही तो कर रहा हूँ. बढ़ते घरेलू खर्च और स्कूल खर्च के लिए मेरा ज्यादा काम करना ज़रूरी है. मैं उन्हें एक अच्छी ज़िंदगी देना चाहता हूँ.
रमेश की यह दिनचर्या वर्षों जारी रही. वह यूं ही परिवार को अनदेखा कर कड़ी मेहनत करता रहा. इसका प्रतिफल भी उसे मिला. उसे पदोन्नति प्राप्त हुई, आकर्षक वेतन मिलने लगा. परिवार अब बड़े घर में रहने लगा. खाने-पीने और अन्य सुविधाओं की उन्हें कोई कमी न रह गई. लेकिन रमेश का यूं ही काम करना जारी रहा.
वह अधिक से अधिक पैसे कमाना चाहता था. पत्नि पूछती कि आप पैसे के पीछे क्यों भाग रहे हैं? हमारे पास जो है, हम उसमें खुश रह सकते हैं. तो उसका जवाब होता कि मैं तुम्हें और बच्चों को दुनिया-जहाँ की खुशियाँ देना चाहता हूँ. बस कुछ साल और मुझे मेहनत करने दो. पत्नि चुप हो जाती.
दो साल और बीते. इन दो सालों में रमेश बमुश्किल अपने परिवार के साथ समय बिता पाया. बच्चे अपने पिता को देखने, उससे बातें करने तरस गए. इस बीच एक दिन रमेश की किस्मत खुल गई. उसके दोस्त ने उसे अपने व्यवसाय में हिस्सेदारी की पेशकश की और इस तरह रमेश एक व्यवसायी बन गया.
व्यवसाय अच्छा निकला और रमेश को पैसे की कोई कमी नहीं रह गई थी. उसका परिवार अब शहर के सबसे अमीर परिवारों में से एक था. उनके पास सभी सुख-सुविधाएं और विलासिता थी. लेकिन अपने बच्चों से मिलने का समय उसके पास अब भी नहीं था. अब तो वह बमुश्किल घर पर रह पाता. उसका अधिकांश समय गहर से दूर बिज़नस टूर में बीतता.
साल गुजरने के साथ उसके बच्चे बड़े हो गए. अब वे किशोरावस्था में पहुँच गए थे. रमेश ने भी इन सालों में इतना पैसा कमा लिया था कि उसकी अगली पांच पीढ़ियाँ शानदार जीवन जी सकती थी.
एक दिन रमेश के परिवार ने छुट्टी बिताने समुद्र तट स्थित अपने घर जाने की योजना बनाई. बेटी ने उससे पूछा, “पापा! क्या आप एक दिन हमारे साथ बिताएंगे?”
रमेश ने जवाब दिया, “हाँ ज़रूर. कल तुम लोग जाओ. मैं कुछ काम निपटाकर दो दिन में वहाँ पहुँचता हूँ. उसके बाद का मेरा पूरा समय तुम लोगों का है.”
पूरा परिवार बहुत खुश हो गया. वे समुद्र तट स्थित अपने घर पर चले गए. दो दिन बाद रमेश वहाँ पहुँचा. लेकिन उस दिन उसके साथ समय बिताने कोई नहीं था. दुर्भाग्य से वे सभी उस दिन सुबह आई सुनामी में बह गए थे.
रमेश अपनी पत्नि और बच्चों को कभी नहीं देख सकता था. करोड़ों की संपत्ति होने के बाद भी वह उनके साथ का एक पल नहीं ख़रीद सकता है. वह पछताने लगा. पत्नि के कहे शब्द उसे याद आने लगे : “आप पैसों के पीछे क्यों भाग रहे हैं? हमारे पास जो है, हम उसमें खुश रह सकते हैं.”
सीख – पैसा सब कुछ नहीं खरीद सकता. इसलिए पैसों के लिए अपने परिवार को महत्त्व देना कम मत करें. पैसा खो देने के बाद फिर से कमाया जा सकता है. लेकिन अपनों को खो देने के बाद दोबारा वापस नहीं पाया जा सकता.