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मोर पंख वाला मिल गया

अकेली गई थी ब्रिज में कोई नही था मेरे मन में
मोर पंख वाला मिल गया…..

नींद चुराई बंसी बजा के चैन चुराया सैन चुरा के
लगी आस मेरे मन में गई थी मैं वृंदावन में बांसुरी वाला मिल गया
मोर पंख वाला मिल गया…..

उसी ने बुलाया उसी ने रुलाया ऐसा सलोना श्याम मेरे मन भाया
तेरी बांकी चाल देखी तेरा मुकट भी देखा
टेढ़ी टांग वाला मिल गया
मोर पंख वाला मिल गया…..

बांके बिहारी मेरे हिरदये में बरसाऊ
तेरे बिन श्याम सुंदर कहा चैन पाई
लगन लगी तन मन में ढूंड रही मैं निधि वन में
गाऊये वाला मिल गया मोर पंख वाला मिल गया……

नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ढूँढूँ रे सांवरिया
कान्हा – कान्हा  रट के मैं तो हो गई रे बावरिया

बेदर्दी मोहन ने मोहे फूँका ग़म की आग में
बिरहा की चिंगारी भर दी दुखिया के सुहाग में
पल-पल मनवा रोए छलके नैनों की गगरिया
नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे…

आई थी अँखियों में लेकर सपने क्या-क्या प्यार के
जाती हूँ दो आँसू लेकर आशाएं सब हार के
दुनिया के मेले में लुट गई जीवन की गठरिया
नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे…

दर्शन के दो भूखे नैना जीवन भर न सोएंगे
बिछड़े साजन तुमरे कारण रातों को हम रोएंगे
अब न जाने रामा कैसे बीतेगी उमरिया
नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे…

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