रसोई से भागने का मन कर रहा था सुधा का आधा काम भी नहीं निपटा था पसीने से लथ-पथ मारे गरमी के बेहाल हुई जा रही थी ….घर मे एकदम पीछे की तरफ बनी रसोई में तनिक भी हवा की गुंजाइश नहीं है………उसे बेटी आराध्या की बहुत याद आ रही थी…तीन महीने पहले ही उसके हाथ पीले कर दिए थे…चार बरस की थी वो तब से पिछले साल गरमी तक, चुपके से उसके पीछे आ कर खड़ी हो जाती…
ठंडी-ठंडी हवा के झोंके बता देते थे उसकी गुड़िया उसकी आरु पीछे खड़ी पंखा झल रही है…. सुधा कितना मना करती पर मानती ही नही…खड़ी रहती उसके साथ जबतक उसका रसोई का काम निपट नही जाता था….उसकी दादी आराध्या को खूब चिढ़ाती
” बड़ी आई माँ की चहेती……..
ये सुनकर दोनों माँ-बेटी हँस दिया करती ….
आज उमस भरी गरमी मे उसकी ये यादें भी बयार जैसी कलेजे को ठंडक दे रहीं थी | जैसे वो आज भी पीछे खडी हवा के ठंडे झोके दे रही हो……सुधा महसूस कर रही थी उन हवा के झोंको को……..मगर….महसूस करने में बाल कहा उड़ते है…लेकिन बाल तो उड़ रहे थे उसके…
सुधा ने चौंक कर पीछे देखा…
एक हाथ से अपनी छड़ी थामे दूसरे हाथ से पंखा झलती मां उसके पीछे खड़ी थी… वो सकपकाती हुई बोली…
“माँ आप यहा….”अब तेरी चहेती तो ससुराल चली गई….
उसकी मां को गरमी लग रही होगी…तो मैं आ गई….
“मेरी कहां…. वो तो आप की चहेती है…आप जो कहतीं वही तो वो किया करती है…सुधा का जवाब सुनकर मां के चेहरे का रंग बदल गया।
चिढ़ सी गई फिर बोली… ” वो कैसे भला…
“सब मालूम है मुझे सालों से चल रही आप दोनों की इस मिली-भगत का….
आप ही हमेशा उसे यहा भेजा करतीं थी ना………ये पंखा देकर…
मां शरमा सी गयी….उनको शर्माता देख सुधा की तो हँसी छूट पड़ी……..ये देखकर मां भी हँस पड़ी….रसोई फिर से गुलजार हो गई …मां बेटी नहीं………अब सास-बहु के ठहाकों से….