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सास बहु और ठाकुर जी

ठाकुर_जी_की_हँसी*

*एक सासु माँ और बहू थी। सासु माँ हर रोज ठाकुर जी पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सेवा करती थी। एक दिन शरद रितु मेँ सासु माँ को किसी कारण वश शहर से बाहर जाना पडा। सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी को साथ ले जाने से रास्ते मेँ उनकी सेवा-पूजा नियम से नहीँ हो सकेँगी। सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी की सेवा का कार्य अब बहु को देना पड़ेगा लेकिन बहु को तो कोई अक्कल है ही नहीँ के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी हैँ। सासु माँ ने बहु ने बुलाया ओर समझाया के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है।

कैसे ठाकुर जी को लाड लडाना है।

सासु माँ ने बहु को समझाया के बहु मैँ यात्रा पर जा रही हूँ और अब ठाकुर जी की सेवा पूजा का सारा कार्य तुमको करना है।

सासु माँ ने बहु को समझाया देख ऐसे तीन बार घंटी बजाकर सुबह ठाकुर जी को जगाना। फिर ठाकुर जी को मंगल भोग कराना। फिर ठाकुर जी स्नान करवाना। ठाकुर जी को कपड़े पहनाना। फिर ठाकुर जी का श्रृंगार करना ओर फिर ठाकुर जी को दर्पण दिखाना। दर्पण मेँ ठाकुर जी का हंस्ता हुआ मुख देखना बाद मेँ ठाकुर जी राजभोग लगाना। इस तरह सासु माँ बहु को सारे सेवा नियम समझाकर यात्रा पर चली गई।

अब बहु ने ठाकुर जी की सेवा कार्य उसी प्रकार शुरु किया जैसा सासु माँ ने समझाया था।

ठाकुर जी को जगाया नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया। सासु माँ ने कहा था की दर्पण मेँ ठाकुर जी का हस्ता हुआ देखकर ही राजभोग लगाना। दर्पण मेँ ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख ना देखकर बहु को बड़ा आशर्चय हुआ। बहु ने विचार किया शायद मुझसे सेवा मेँ कही कोई गलती हो गई हैँ तभी दर्पण मे ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिख रहा।

बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया। लेकिन ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा। बहु ने फिर विचार किया की शायद फिर से कुछ गलती हो गई। बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया श्रृंगार किया दर्पण दिखाया। जब ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नही दिखा बहु ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया ।

ऐसे करते करते बहु ने ठाकुर जी को 12 बार स्नान किया।

हर बार दर्पण दिखाया मगर ठाकुर जी का हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा। अब बहु ने 13वी बार फिर से ठाकुर जी को नहलाने की तैयारी की। अब ठाकुर जी ने विचार किया की जो इसको हस्ता हुआ मुख नहीँ दिखा तो ये तो आज पूरा दिन नहलाती रहेगी।

अब बहु ने ठाकुर जी को नहलाया कपड़े पहनाये श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया।

अब बहु ने जैसे ही ठाकुर जी को दर्पण दिखाया तो ठाकुर जी अपनी मनमोहनी मंद मंद मुस्कान से हंसे। बहु को संतोष हुआ की अब ठाकुर जी ने मेरी सेवा स्वीकार करी। अब यह रोज का नियम बन गया ठाकुर जी रोज हंसते। सेवा करते करते अब तो ऐसा हो गया के बहु जब भी ठाकुर जी के कमरे मेँ जाती बहु को देखकर ठाकुर जी हँसने लगते।

कुछ समय बाद सासु माँ वापस आ गई।

सासु माँ ने ठाकुर जी से कहा की प्रभु क्षमा करना अगर बहु से आपकी सेवा मेँ कोई कमी रह गई हो तो अब मैँ आ गई हूँ आपकी सेवा पूजा बड़े ध्यान से करुंगी।

तभी सासु माँ ने देखा की ठाकुर जी हंसे और बोले की मैय्या आपकी सेवा भाव मेँ कोई कमी नहीँ हैँ आप बहुत सुंदर सेवा करती हैँ लेकिन मैय्या दर्पण दिखाने की सेवा तो आपकी बहु से ही करवानी है…

*इस बहाने मेँ हँस तो लेता हूँ।*

*हरे कृष्ण*

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