रमजान का पाक महीना खत्म होने के बाद आखिरकार वो दिन आ गया जिसका सबको इंतजार था। आज ईद का दिन है। इस मनोहर और सुंदर दिन की बधाई पूरे गांव में किसी शहनाई की तरह गूंज रही है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आ रही है। खेतों में अलग ही रौनक नजर आ रही है। हर जगह देखकर ऐसा लग रहा है मानो सूरज, नदिया समेत पूरा संसार ईद की बधाई दे रहा हो। गांव के बड़े-बूढ़े और बच्चे ईदगाह के मेले में जाने की तैयारियां करने में जुटे हैं। कोई अपने पुराने कपड़ें सिल रहा है, तो कोई जल्दी-जल्दी अपने घर और खेत का काम निपटा रहा है। ईदगाह का मेला गांव से तीन कोस की दूरी पर लगता है, जहां लोगों को पैदल ही चलकर जाना होता है। मेले से घर वापस आने में भी देर हो जाती है।
ईदगाह में जाने को लेकर सबसे ज्याद खुशी लड़कों में नजर आ रही है। भले ही किसी ने एक रोजा भी न रखा हो, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके चेहरे पर साफ है। पूरे महीने ये लड़के इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। इन लड़कों को घर की परेशानियों से कोई वास्ता नहीं हैं। घर में सेवैयां बनाने के लिए दूध और शक्कर हो या न हो, इन्हें तो बस सेवैयां चाहिएं। उन्हें नहीं मालूम कि उनके अब्बू गांव के चौधरी कायमअली के घर भागते हुए जा रहे हैं, ताकि उनके घर में आज ईद के दिन चूल्हा जल सके और वो अपने बच्चों को सेवैयां खिला सकें।
ये तो बस ईदगाह जाने की राह देख रहे हैं। एक तरफ बैठा महमूद अपने पैसे गिन रहा है। उसकी जेब से बारह पैसे निकले। महमूद के पास बैठे मोहसिन मियां भी अपने पैसे गिनने में लगे हुए हैं, एक, दो, तीन, आठ, नौ, पंद्रह। मोहसिन खुशी से उछलकर पैसों को जेब में रखकर कहता है- “इन्हीं अनगिनत पैसों से हम अनगिनत चीजें लाएंगे। मेले से ढेर सारे खिलौने, मिठाइयां और भी बहुत कुछ खरीद कर लएंगे।”
गांव का गरीब बच्चा हामिद सबसे ज्यादा खुश है। हामिद पांच साल का एक दुबल-पतला गरीब सूरत वाला लड़का है। हामिद के पिता पिछले ही साल हैजे से मर गए थे। उसकी मां का शरीर भी पीला पड़ गया था, जिसके बाद वह भी इस दुनिया से चल बसी। गांव में यह किसी को नहीं पता था की हामिद की अम्मी के शरीर का रंग पीला क्यों हुआ था। परिवार के नाम पर हामिद के पास एक बूढ़ी दादी थी, जिसका नाम था अमीना। अमीना ने हामिद को बताया था कि उसके अब्बा बहुत सारे पैसा कमाने गए हैं और उसकी अम्मी अल्लाह के घर उसके लिए अच्छे-अच्छे खिलैनों लेने गई है। यह सब सोचकर और दादी की ऐसी बाते सुनकर हामिद बड़ा खुश रहता था। वह कहता- जब उसके अब्बू और अम्मी वापस आएंगे, तो ढेर सारे पैसों और खिलौनों से वह मोहसिन, नूरे और सम्मी को चिढ़ाया करेगा।
अपनी गरीबी से हामिद और अमीना दोनों ही वाकिफ थे। हामिद के पास एक भी जोड़ी जूते नहीं थे। उसके पास सिर्फ एक पुरानी और गंदी टोपी थी। यह सब सोचकर बूढ़ी अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही थी कि आज ईद के दिन भी उसके घर में खाने के लिए कुछ नहीं है। वह ईद के दिन को कोस रही थी कि जब उसे ऐसे ही अंधेरे में रहना है, तो ईद आती ही क्यों है। तभी कोठरी में हामिद आता है और दादी से कहता है, “तुम डरो मत, मैं मेले से सबसे पहले आ जाउंगा।”
बूढ़ी अमीना परेशान थी कि गांव के सभी बच्चे अपने खालिद के साथ मेले में जा रहे हैं। वह हामिद को अकेले गांव से इतना दूर कैसे भेजे। कहीं वो मेले की भीड़ में खो गया, तो वह क्या करेगी? उसके पास जूते भी नहीं हैं। तीन कोस कैसे चलेगा, पैरों में छाले पड़ जाएंगे। उसी दिन अमीना ने गांव के फहीमन के कपड़े सिले थे, बदले में उसे आठ आने पैसे मिले थे, जिनमें से तीन आने उसने हामिद को मेले में घूमने और मिठाई खाने के लिए दे दिए और बाकी के पांच आने अपने पर्स में रख लिए। ताकि, ईद के दिन अगर घर पर धोबन, नाइन और चुड़िहारिन आए, तो वो उन्हें सेवैयां खिला सके।
कुछ ही देर बाद गांव का एक दल सज-धजकर मेले की तरफ निकल पड़ा। मेले के रास्ते में जाते हुए बड़ी-बड़ी इमारते, बगीचे, कालेज, क्लब सब दिखने लगे। बच्चों के बीच फुसफुस होने लगी कि क्लब में तरह-तरह के खेल होते हैं। यहां बड़े-बड़े आदमी और मैडम बैट से खेलती हैं।
महमूद – “अगर हमारी अम्मी बैट पकड़ लें, तो अल्लाह कसम उनके हाथ कांपने लगेंगे।”
मोहसिन – “सौ किलो आटा एक बार में पीस डालती हैं। रोज सैकड़ों घड़े पानी भरती हैं। इतना करने वाली के हाथ कैसे कांपेगें। किसी अंग्रेजी मेम को बोलो एक घड़ा पानी भरने के लिए, तो उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा जाएगा।”
महमूद – “लेकिन हमारी अम्मी दौड़ या उछल-कूद तो नहीं कर सकती हैं।”
मोहसिन – “हां, उछल-कूद नहीं कर सकती, लेकिन गाय पकड़ने के लिए उनसे तेज तो मैं भी नहीं दौड़ सकता हूं।”
आगे उन्हें हलवाइयों की दुकान मिली।
मोहसिन ने कहा – “अब्बा ने बताया था कि रात को जिन्न आते हैं, जो दुकानों पर बची हुई सारी मिठाईयां खरीद ले जाते हैं और बदले में रुपये-पैसे भी देते हैं।”
हामिद को मोहसिन की बात पर यकीन न आया। उसने पूछा – “जिन्न को रुपये कहां से मिलते होंगे?”
मोहसिन ने बताया – “जिन्न के पास खुद के खजाने हैं। उन्हें भला पैसे-रुपयों की क्या कमी होगी।”
तभी हामिद ने फिर पूछा – “क्या जिन्न बहुत बड़े होते हैं?”
मोहसिन – “हां, उनका सिर आसमान के जितना ऊंचा होता है, लेकिन अगर वो चाहे तो एक लोटे में भी घुसकर बैठ सकते हैं।”
हामिद – “तो क्या जिन्न को खुश करने के लिए लोग कोई मंतर फूंकते हैं? मुझे भी पता चले तो मैं भी एक जिन्न को खुश कर लूंगा।”
मोहसिन – “मुझे यह तो नहीं पता, लेकिन सुना है चौधरी के पास कई जिन्न हैं। उसके जिन्न तो चोरों और चोरी हुई चीजों का भी नाम बता देते हैं। एक दिन जुमराती का बछवा खो गया था। तीन दिन बाद भी जब नहीं मिला, तो वे चौधरी के पास गए। चौधरी ने फट से बता दिया कि उसका बछवा मवेशीखाने में है।”
थोड़ा आगे चलने पर पुलिस लाइन पहुंच गएं। एक बच्चे ने कहा – “यहां सब पुलिसवाले रहते हैं, जो रात-रात भर घूम कर घरों में चोरियां होने से रोकते हैं।”
यह बात सुनकर मोहसिन बोला – “गलत कह रहे हो तुम। शहर के सारे चोर-डाकू इन पुलिसवालों से मिले होते हैं। चोरों से कहकर ये दूसरे मोहल्ले में चोरी करवाते हैं और खुद किसी दूसरे मोहल्ले में पहरा देते हैं। मेरे मामा खुद एक पुलिसवाले हैं। महीने में उनको बीस रूपये तनख्वाह मिलती है, लेकिन घर पर वो पचास रूपये देते हैं। मैने उनसे पूछा भी था कि इतने रुपये कहां से आते हैं, तो उन्होंने कहा कि अल्लाह देते हैं। वो चाहें, तो एक दिन में लाखों भी कमा सकते हैं, लेकिन फिर बदनामी न हो इसलिए इतना ही लेते हैं।”
इतने में हामिद बोला – “अगर ये लोग खुद चोरी करवाते हैं, तो फिर इन्हें कोई पकड़ता क्यों नहीं है?”
मोहसिन – “अरे, इन्हें कौन पकड़ सकता है, क्योंकि पकड़ने का काम तो इनका खुद ही है, लेकिन अल्लाह भी इन्हें सजा देने में पीछे नहीं रहता है। मेरे मामा के घर में कुछ ही दिनों में आग लग गई। उनका सारा पैसा व सामान जलकर खाक हो गया।”
हामिद – “क्या एक सौ पचास से ज्यादा होते हैं?”
मोहसिन – “पचास तो एक थैली जितना होता है। जबकि सौ तो दो थैलियों से भी ज्यादा होता है।”
अब आगे उन्हें ईदगाह जा रहे लोगों की दूसरी टोलियां मिलने लगीं। थोड़ी देर में ईदगाह भी नजर आ गई। जहां पहुंच कर सबने एक इमली के पेड़ के नीचे नामज पढ़ी। नमाज पढ़ने के बाद सबसे पहले लोग मिठाई और खिलौनों की दूकानों पर पहुंचे। हामिद को छोड़कर महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी सभी एक-एक पैसा देकर घोड़ों ओर ऊंटों पर बैठकर सवारी का अनंद लेने लगें।
इसके बाद सभी खिलौने की दुकान पर गएं। महमूद ने दो पैसे का सिपाही खरीदा, जिसने खाकी वर्दी और लाल पगड़ी पहनी थी। उसके कंधे पर बंदूक भी थी। मोहसिन ने भी दो पैसे में पानी पिलाने वाली भिश्ती खरीदा। उसकी कमर झुकी हुई थी और उसके ऊपर पानी भरने वाला मशक रखा हुआ था। नूरे ने भी दो पैसे में वकील खरीदा, जिसने काले और सफेद रंग का कपड़ा पहना था। उसके कपड़े की एक तरफ जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर और एक हाथ में कानून का पोथा था।
वहीं, हामिद सोच रहा था कि अगर ये खिलौने एक बार नीचे गिर जाए, तो सब बर्बाद हो जाएगा। इसलिए, उसने खिलौनों को खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन मन ही मन वह उन खिलौनों को हाथ में लेने के लिए उत्सुक हो रहा था।
मोहसिन – ‘मेरा भिश्ती हर रोज पानी पिलाएगा मुझे।”
महमूद – “मेरा सिपाही मेरे घर की पहरेदारी करेगा।”
नूरे – “मेरा वकील हर दिन नया मुकदमा लड़ेगा।”
सम्मी – “मेरी धोबिन हर रोज कपड़े धोएगी।”
आगे बढ़ें, तो मिठाइयां दिखी। यहां भी हामिद को छोड़कर किसी ने रेवड़ी खाई, तो किसी ने गुलाब जामुन और किसी ने हलवा। हामिद बस ललचाई आंखों से सबको घूर रहा था।
मोहसिन ने चिढ़ाते हुए कहा – “हामिद रेवड़ी खा लो, इसकी खुशबू बहुत अच्छी है।”
हामिद मोहसिन के पास जाता है और उसके सामने अपना हाथ फैलाता है। मोहसिन ने एक रेवड़ी निकाली और हामिद को दिखाते ही उसे खुद खा गया। यह देखकर महमूद, नूरे और सम्मी तालियां बजा कर हंसने लगे।
तभी महमूद कहता है – “हम तुम्हें गुलाबजामुन खिलाएंगे। मोहमिन तो शरारती है।”
इस बार हामिद ने साफ-साफ उन्हें मना कर दिया कि वो मिठाई नहीं खाएगा।
मिठाइयों की दुकानों के बाद मेले में कुछ लोहे की चीजों की दुकानें थी, जहां पर तरह-तरह के नकली गहनें भी थे। लड़कों को इनमें कोई दिलचस्पी नहीं थी, तो वे मेले में आगे बढ़ गए और शर्बत पीने लगे, लेकिन हामिद एक चिमटे की दुकान के सामने खड़ा हो गया। उसे याद आया कि रोटी बनाते समय उसकी दादी के हाथ जल जाते हैं। उसने सोचा कि अगर वह चिमटा खरीद लेगा, तो दादी का हाथ नहीं जलेगा और वो उसे ढेर सारी दुआएं भी देगी।
हामिद दुकानदार से चिमटे की कीमत पूछता है।
पहले तो दुकानदार हामिद को मना करता है कि यहां उसके काम की कोई चीज नहीं है, लेकिन बादमें उसने बताया कि एक चिमटे की कीमत छह पैसे है। अगर उसे लेना है, तो वह पांच पैसे लगा देगा।”
हामिद ने कहा – “क्या तीन पैसे में दोगे यह चिमटा?”
हामिद को लग ही रहा था कि दुकनादार उसे डांटेगा, लेकिन दुकानदार ने डांटने की जगह हामिद को तीन पैसे में चिमटा बेच दिया।
चिमटे को हामिद ने अपने कंधे पर किसी बंदूक के जैसा रखा और अपने दोस्तों को दिखाने लगा।
मोहसिन और महमूद ने हामिद के चिमटे का मजाक बनाते हुए कहा – “क्या भला चिमटा भी कोई खेलने की चीज है?”
हामिद ने जवाब दिया – “हां, मेरा चिमटा भी एक खिलौना है। कंधे पर रखूं तो यह बंदूक लगती है और हाथ में ले लूं तो किसी फकीर का चिमटा लगता है। मैं इस चिमटे से मजीरे का काम भी कर सकता हूं। अगर एक भी चिमटा तुम्हारे खिलौनों को लगा, तो इनका यहीं दम निकल जाएगा।”
सम्मी ने बजाने वाली खंजरी खरीदी थी। वह हामिद के चिमटे से काफी प्रभावित हुआ। उसे हामिद से अपनी अंजरी के बदले चिमटा बदलने के लिए कहा, लेकिम हामिद ने उसे मना कर दिया। हामिद के बहादुर चिमटे से उसके सभी दोस्त प्रभावित हुए, लेकिन अब किसी के पास पैसे नहीं बचे थे और वे मेले से दूर भी निकल आए थे।
मेले से वापस घर आते समय बच्चों के दो दल बन गये थे। एक दल में मोहसिन, महमूद, सम्मी और नूरे, तो दूसरे दल में अकेला हामिद। इनके बीच अपने-अपने खिलौनों को लेकर बहस होने लगी।
तभी मोहसिन ने कहा – “हामिद का चिमटा पानी नहीं भर सकता है।”
यह सुनते ही हामिद ने अपने चिमटे को सीधा खड़ा किया और कहा – “मेरा चिमटा भिश्ती को एक बार डांटे, तो वह दौड़ा हुआ उसके लिए पानी लाकर देगा।”
ऐसे एक-एक करके जब सबके खिलौने हामिद के चिमटे से हार गए, तो मोहसिन ने फिर से कहा – “तुम्हारे चिमटे का मुंह हर रोज आग से जलेगा।”
इस बात को सुनते ही हामिद ने कहा – “आग में तो बहादुर ही कूदते हैं। तुम लोगों के खिलौने पूरे दिन घर में रहेंगे और मेरा बहादुर चिमटा हर दिन आग में कूदेगा।”
ऐसे ही उनकी बहस थोड़ी और भी आगे बढ़ी, लेकिन अंत में हामिद और उसका बहादुर चिमटा जीत गया। बाकियों ने भी सोचा कि उनके खिलौने कुछ दिनों में टूट जाएंगे, लेकिन हामिद का चिमटा सालों-साल नया बना रहेगा।
कुछ देर तक चली उनकी आपसी बहस के बाद आखिर सभी के बीच सुलह हो गई। सुलह के नाम पर सभी बच्चे एक-एक करके हामिद का चिमटा अपने हाथों में पकड़ते और हामिद भी एक-एक करके उनके खिलौनों को देखता।
हामिद ने सारे खिलौने देखने के बाद कहा – “मैं तुम लोगों को बस चिढ़ा रहा था। भला कोई चिमटा कैसे किसी खिलौने की बराबरी कर सकता है। ये खिलौने बड़े सुंदर हैं, ऐसा लगता है कि बस अभी के अभी ये सारे बात करने लगेंगे।”
हामिद की बात सुनकर मोहसिन से कहा – “लेकिन ये खिलौने देखने के बाद कोई हमें दुआ तो नहीं देगा!”
इतने में महमूद मियां बोल पड़ें – “दुआ छोड़ें, भाई ये मिट्टी के खिलौने देखकर कहीं अम्मीजान हमें मारने न लगे?”
अपने दोस्तों की बातें सुनकर हामिद मन ही मन में काफी खुश हो रहा था। उसे यकीन था कि उसका चिमटा देखकर उसकी दादी बहुत खुश होगी और उसे दुआएं देगी।
थोड़ा आगे जाने पर महमूद को भूख लगी, तो उसने खाने के लिए अपने अब्बा से केले लिए। इस बार उसने हामिद को भी केला खाने के लिए दिया। ये केला हामिद को उसके चिमटे की वजह से मिला था।
दिन के 11 बजते-बजते मेले का पूरा दल गांव वापस आ गया था। मोहसिन जैसे ही घर पहुंचा उसकी छोटी बहन ने उसके हाथ से भिश्ती को छीन लिया। तभी उसकी बहन के हाथ से भिश्ती जमीन गिरा और उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए। इसके बाद दोनों भाई-बहन खूब लड़ें। ऊपर से अम्मीजान ने भी दोनों को दो-दो चांटे लगाए।
दूसरी तरफ नूरे ने अपने वकील को घर में सजाने का नया इंतजाम किया। वकील जैसे लोग अब जमीन पर तो बैठ नहीं सकते थे, इसलिए नूरे ने दीवार में खूटियां लगाई, फिर उस पर लकड़ी का पटरा रखा। पटरे पर कागज के पन्नों से कालीन बिछाया गया, फिर कहीं जाकर उसके ऊपर वकील साहब को बिठाया गया। वकील साहब को गर्मी न लगे इसके लिए नूरे बांस के पंखे से हवा करने लगा, लेकिन हवा का झोंका लगते ही वकील साहब पटरे के सिंघासन से सीधा जमीन पर गिरे और वो भी मिट्टी में मिल गए।
वहीं, महमूद ने अपने सिपाही के लिए एक पालकी का इंतजाम किया, जिसे उसने फटे-पुराने कपड़े और एक छोटी टोकरी से बनाया था। फिर उसमें सिपाही साहब को लिटाया गया। इसके बाद महमूद और उसके दोनों छोटे भाई टोकरी को सिर पर रखकर इधर-ऊधर घूमने लगे। उसके छोटे भाई अपनी तोतली आवाज में “छोनेवाले, जागते लहो” कहकर पुकारते चले जा रहे थे। अंधेरे का समय था, इसी दौरान महमूद को ठोकर लगी और उसकी टोकरी नीचे गिर गई। इस हादसे में महमूद के सिपाही की एक टांग टूट गई।
इसके बाद महमूद ने खुद ही उसका पैर ठीक करने का फैसला किया। टूटे हुए पैर को जोड़ने के लिए गूलर का दूध लाया गया, लेकिन ये तरकीब काम न आई। बदले में सिपाई की दूसरी टांग भी तोड़ दी गई।
अब हामिद मियां की बात करें, तो वो जैसे ही अपने घर पहुंचा उसकी दादी ने उसे गले लगा लिया। फिर उसके हाथ में चिमटा देखकर बड़ी हैरानी से पूछा – “यह चिमटा किसका है?”
हामिद – “मैने मेले से खरीदा है।”
अमीना – “कितने पैसे में?”
हामिद – “तीन पैसे में।”
इतना सुनते ही बूढ़ी अमीना छाती पिटते हुए रोने लगी। हामिद को कोसने लगी कि कितना बेवकूफ लड़का है ये। दिन भर कुछ खाया-पिया नहीं और मेले में जाकर सारे पैसों से ये चिमटा खरीद कर लाया है। फिर उसने हामिद से गुस्से में पूछा – “मेले में कोई और चीज नहीं थी क्या, जो तू लोहे का चिमटा लेकर आया है?”
हामिद ने उदास मन से कहा – “रोटियां बनाते हुए तुम्हारी उंगलियां जल जाती थी, इसलिए मैने यह चिमटा खरीद लिया।”
हामिद की बात सुन कर बुढ़ी अमीना एकदम से चुप हो गई। उसके पास छोटे नादान बच्चे को कहने के लिए कोई शब्द नहीं थे। वो बस हामिद के त्याग और प्यार की भावना देखकर हैरान थी। मन ही मन सोच रही थी कि मेले में न जाने कितने खिलौने रहे होंगे, हजार रंग-बिरंगी मिठाईयां होंगी, फिर भी इस बच्चे ने अपने बारे में न सोचकर अपनी बूढ़ी दादी का ख्याल किया।
वो अब बस अपना दामन फैलाकर रो रही थी और हामिद के लिए दुआएं दिए जा रही थी। हामिद बस बूढ़ी दादी के आंखों से गिरते आंसूओं को देखे जा रहा था।
कहानी से सीख – अपनी सारी इच्छाओं और लालसाओं को त्यागकर, मन में दया और प्यार की भावना रखना ही हमें सबसे धनवान, साहसी और बड़ा बनाता है।