पंडित बलराम से उनकी पत्नी माया काफी समय से एक हार की मांग कर रही थी। हर बार पंडित उनकी बातों को टाल देते थे। वो कभी अपनी पत्नी से यह नहीं कह पाते थे कि उनके पास हार खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। वो हमेशा कहते, “घर में हार रखने से चोरी हो जाता है। ऊपर से हमेशा जौहरी हार के दाम को बढ़ाकर ही बोलता है। इन गहनों को खरीदने से किसी तरह का फायदा नहीं होता है। बस कुछ देर के लिए सजने संवरने के लिए काम आने वाले हार से इतनी मुसीबत आती है, तो इसे खरीदना बेकार ही है।
पंडित की पत्नी काफी भोली थी। वो हमेशा अपने पति के इन बातों में आ जाती थी, लेकिन दूसरी महिलाओं के पास गहने देखकर उसके मन में होता था कि काश! मेरे पास भी ऐसा जेवर होता। वैसे पंडित थोड़ी मेहनत करते, तो अपनी पत्नी के लिए हार खरीद सकते थे, लेकिन उन्हें सिर्फ भोजन करना और आराम करना ही पसंद था। वो अपने आलस्य के कारण पत्नी की चार बातों को सुनना भी बुरा नहीं मानते थे।
एक दिन बच्चों को पढ़ाकर पंडित घर लौटे, तो देखा कि उनकी पत्नी के गले में वही हार है, जिसकी मांग वो लंबे समय से कर रही थी। हार देखते ही उन्होंने पूछा, “अरे, इतना सुंदर हार तुम्हारे गले में कैसे आया?”
पत्नी ने जवाब में कहा कि ये पड़ोस में रहने वाली महिला का है। मैं उससे मिलने गई थी आज। उसने जब मुझे ये हार दिखाया, तो मैं इसे पहनकर आ गई, ताकि तुम इसे देख लो। मुझे बस ऐसा ही एक हार चाहिए।
पंडित बोले, “पगली! तुम किसी दूसरे का इतना महंगा हार लेकर आ गई हो। अगर चोरी हो गया, तो यह बनवाना ही पड़ेगा और बदनामी होगी जो ऊपर से वो अलग।
पंडित की पत्नी कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। उसने बताया कि ये 20 तोले का हार है और मुझे भी बिल्कुल ऐसा ही जेवर चाहिए।
पत्नी की जिद सुनकर पंडित को घबराहट होने लगी। तभी पत्नी बोल पड़ी, “जब सारी महिलाएं ऐसे हार पहनती हैं, तो मैं आखिर क्यों नहीं पहन सकती?”
गुस्से में पंडित बोल पड़े, “सब लोग कुएं में कूदेंगे, तो क्या तुम भी कूद जाओगी। ऐसा नहीं होता है कि जो दूसरे करें, उसे हम भी करें। फिर पंडित ने दिमाग लगाकर अपनी पत्नी को बताया कि देखो इस हार की कीमत आने वाले समय में घट जाएगी। अगर आज इसे मैंने एक हजार में लिया, तो एक साल बाद यह 600 रुपये का हो जाएगा और फिर पांच साल में इसकी कीमत सिर्फ 300 ही रहेगी। यह काफी बड़ा नुकसान है। इसे सहकर मैं हार नहीं खरीद सकता। तुम जल्दी से इस हार को वापस कर दो। इतना कहकर पंडित घर से बाहर की ओर चले गए।
उसी रात माया ने एक चोर को अपने घर में देखा। वो चिल्लाने लगी। जब पंडित ने कहा कि क्या हुआ, तो वो बोली मैंने अभी एक परछाई को देखा है, वो घर के अंदर गया है। वो पक्का चोर है। पंडित ने जल्दी से अपनी छड़ी और लालटेन पत्नी से मांगी।
पत्नी ने कहा कि मैं डर के मारे उठ ही नहीं पा रही हूं। तभी बाहर से कुछ लोग आ गए।
उन्होंने पंडित से पूछा, “क्या हुआ? घर में चोरी हो गई है क्या?”
पंडित की पत्नी माया बोली, “नहीं, वो ऊपर छत से नीचे की ओर कूदा था और फिर हमारे बिस्तर के पास से तेजी से आगे भागा। मैंने उसकी परछाई देखी थी।” तभी माया ने अपना हाथ गर्दन की ओर फिराया, तो उसे पता चला कि पड़ोसन का वो हार उसके गले से गायब है। हे भगवान! कहकर वो अपना सिर पीटने लगी।
पंडित बलराम शास्त्री ने पूछा, “तुम उस हार को उतारकर क्यों नहीं सोई थी?”
सहमी सी आवाज में माया बोली कि मुझे क्या पता था कि आज ही घर में इतनी बड़ी मुसीबत आ जाएगी।
तभी पंडित ने कहा, “कहता था न मैं कि जेवर सब मुसीबत ही लेकर आते हैं। अब समझ आया तुम्हें या नहीं?”
पंडित के पड़ोसियों ने तबतक पूरा घर छान मारा, लेकिन कोई चोर नहीं दिखा। छत पर भी देखा पर कुछ हाथ न लगा।
एक पड़ोसी बोला, “लगता है किसी जानने वाले ने ही ये काम किया है।”
दूसरे पड़ोसी ने कहा, “देखो! घर के लोगों द्वारा बताए बिना किसी को कुछ पता नहीं चलता है। हार के अलावा और क्या चोरी हुआ है वो देखना चाहिए।
पंडित की पत्नी माया बोली, “सब कुछ तो सही ही दिख रहा है। संदूक भी बंद ही हैं और बर्तन भी सारे घर में ही हैं। उस चोर को पराये लोगों का सामान ही ले जाना था। मेरा कुछ ले जाता। वो गहना ले गया, जिसकी मैं मालकिन ही नहीं थी।
“अब हार का मजा आ गया न तुम्हें। कितना समझाया, लेकिन तुम्हें कुछ समझ आए तब न बात बने”, तंज मारते हुए पंडित ने कहा।
माया बोली, “पूरे 20 तोले का था। अब कह दूंगी उसे की चोर ले गया, जो लेगी हार के बदले ले ले।”
पंडित ने झल्लाते हुए कहा कि तुम्हें बदले में हार ही न देना पड़ेगा।
पत्नी ने पूछा कि इतना पैसा तो है नहीं। इसका इंतजाम कैसे होगा?
पंडित बोले, “कुछ-न-कुछ तो करना ही पड़ेगा। नहीं तो बदनामी होगी। तुमने उसका गहना रखकर बहुत बड़ी भूल कर दी है।
माया ने दुखी होते हुए कहा कि मेरा भाग्य ही खराब है। दूसरों की चीज गले में डालकर मुझे क्या सुख मिला था कि मैं उसे पहनकर ही सो गई।
उसके पति ने कहा कि अब खुद को दोष मत दो। देखते हैं कुछ-न-कुछ कर ही लेंगे। पड़ोसी से कह देना कि जल्द ही उनका हार उन्हें मिल जाएगा।
इतना कहने के बाद पंडित सोचने लगा कि आखिर ऐसा क्या करें कि उस हार की कीमत का पैसा जुट जाए। उसके बाद पंडित ने अपने ज्ञान से धन कमाना शुरू कर दिया। पंडित को उस हार की रकम चुकाने की इतनी चिंता थी कि उन्होंने दिन में सोना तक छोड़ दिया था। बच्चों को पाठशाला में पढ़ाने के बाद श्रीमद् भागवत की कथा करते और फिर लोगों की कुंडलियां सब देखते। इतना करते-करते देर रात तक जागते और फिर सुबह पाठशाला में बच्चों को पढ़ाने के लिए चले जाते।
इस तरह दिन-रात एक करके उन्होंने छह महीने तक किसी तरह से उस हार की रकम जीतना पैसा कम लिया। जैसे ही हार की रकम पूरी हुई पंडित सीधे ठीक वैसा ही जेवर खरीदकर ले आए और अपनी पत्नी के सामने रख दिया।
पंडित की पत्नी माया पहले तो हार देखकर बहुत खुश हुई। फिर उसने पंडित से पूछा कि आप गुस्से में दे रहे हैं क्या ये हार?
जवाब में पंडित ने पूछा, “गुस्से और नाराजगी जैसी क्या बात है? उसका हार हमारे घर से गायब हुआ था, तो उधार तो चुकाना ही होगा न?”
इतना सुनकर पंडित शास्त्री की पत्नी बोली, “नहीं, ये उधार नहीं है।”
पंडित ने कहा, “चलो, उधार न सही, बदला तो है न? जाओ उसे ये दे आओ।
उसकी पत्नी बोली, “नहीं-नहीं, ये बदला भी नहीं है।
गुस्से में पंडित ने पूछा, “अब तुम ही बता दो कि क्या है ये?”
पत्नी माया ने कहा कि यह आपकी तरफ से मुझे दिया गया तोहफा और निशानी है। उस रात हार चोरी नहीं हुआ था। मैंने तो बस ऐसे ही शोर मचा दिया था।
हैरान होते हुए पंडित ने सवाल किया, “सही में?”
माया ने कहा, “हां, सच में।
पंडित ने फिर सवाल पूछा, “तो तू मेरा कौशल देखना चाहती थी।”
जैसे ही पत्नी ने जवाब हां में दिया पंडित बोले, “तुम्हें कोई अंदाजा नहीं है कि इस कौशल के लिए मुझे क्या सब मूल्य चुकाना पड़ा है।”
पत्नी ने मासूमियत से पूछा, “600 से भी ज्यादा क्या?”
पंडित ने भारी मन से कहा, “हां, बहुत ऊपर। इस कौशल के लिए मुझे अपनी स्वतंत्रता तक को कुर्बान करना पड़ा।”
कहानी से सीख:
आलस्य में इंसान कई बार अपनों की इच्छा पूरी नहीं करता है, लेकिन जब उसपर जिम्मेदारी का भार पड़ता है, तो वो उसे किसी भी तरीके से पूरा कर लेता है।