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नम्र बनो, कठोर नहीं!!

एक संत मृत्युशैया पर थे। उन्होंने अपने शिष्यों को अंतिम उपदेश के लिए अपने पास बुलाया। उन्होंने शिष्यों से कहा, “जरा मेरे मुंह में देखो कितने दांत शेष बचे हैं? शिष्यों ने बताया “महाराज आपके दांत तो कई वर्ष पहले ही टूट चुके हैं। अब तो एक भी नही बचे।

संत ने कहा, ” अच्छा देखो जीभ है या वह भी नहीं है।” शिष्यों ने बताया कि जीभ तो है। तब उन्होंने शिष्यों से पूछा, ” यह तो बड़े आश्चर्य का विषय है जीभ तो दांतों से पहले से ही मौजूद है। दांत तो बाद में आये थे। जो बाद में आये उनको बाद में जाना भी चाहिए था। फिर ये पहले कैसे चले गए?

शिष्यों के पास कोई उत्तर नहीं था। तब संत बोले, ” ऐसा इसलिए क्योंकि जीभ बहुत मुलायम अर्थात विनम्र है, इसलिए अभी तक मौजूद है। जबकि दांत बहुत कठोर थे। इसलिए पहले चले गए।”

अगर इस संसार में अधिक समय तक रहना है तो नम्र बनो, कठोर नहीं।

Moral of Story- सीख

विनम्रता मनुष्य को बड़ा और महान बना देती है।

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