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नंद के लाला गिरधर गोपाला


नंद के लाला गिरधर गोपाल गोपाला
हे नंद के लाला गिरधर गोपाल गोपाला
कितना तू सोणा सोणा लागे मैं वारी जावा

बिम्बा के फल जैसे अधर तुम्हारे,
मोती से दांत भी लागे मैं सदके जावां,

पलके हैं जैसे गुलाबी पखुड़िया,
नैन कमल से लागे मैं सदके,,,,,,

ध्यान में तेरे मैं खुद को भूली,
आनंद नित नित लागे मैं सदके जावां,,,,,,,,


ज़रा सामने तो आओ, गोपाल जी,
छुप छुप माखन चुराने का क्या राज़ है,
तुम छुप ना सकोगे नन्द लाल जी,
माँ यशोदा के मन की आवाज है,
ज़रा सामने तो आओ, गोपाल जी…..

हम तुम्हें खिलाएँ, तुम नहीं खाओ,
ऐसा कभी ना हो सकता,
भक्तों के हाथों भोग ना लगाओ,
ऐसा कभी ना हो सकता…-2
अब आ भी जा नन्द के लाला,
ग्वाल बालों की ये आवाज़ है,
तुम छुप ना सकोगे नन्द लाला,
माँ यशोदा के मन की आवाज है,
ज़रा सामने तो आओ, गोपाल जी…..

आ के तोड़ मेरी दहिया की मटकी,
तेरे लिए ही संभाली है,
माखन सजाया, मिश्री सजाई,
सज गयी भोग की थाली है…-2
सबके मन की तू जाने मोहन,
सबके दिल का तो तू ही सरताज है,
तुम छुप ना सकोगे नन्द लाला,
माँ यशोदा के मन की आवाज है,
ज़रा सामने तो आओ, गोपाल जी……

बंसी की धुन, हमें मधुर सुना दो,
भगतों ने तुमको पुकारा है,
“चन्दन” कहता इस कलियुग में,
तू ही तो भव का किनारा है…-2
तूने द्रौपदी सुदामा की मोहन,
जैसे बचाई लाज़ है,
तुम छुप ना सकोगे नन्द लाला,
माँ यसोदा के मन की आवाज है,
ज़रा सामने तो आओ, गोपाला….

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