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किसी का अंधा अनुसरण ना करने की सीख देती हिंदी कहानी

एक बार की बात है। एक गुरूजी थे। उनके बहुत से शिष्य थे। उन्होंने एक दिन अपने शिष्यों को बुलाया और समझाया-शिष्यों सभी जीवों में ईश्वर का वास होता है इसलिए हमें सबको नमस्कार करना चाहिए।

कुछ दिनों बाद गुरूजी ने एक विशाल हवन का आयोजन किया और कुछ शिष्यों को लकड़ी लेने के लिए पास के जंगल भेजा। शिष्य लकड़ियाँ चुन रहे थे कि तभी वहाँ एक पागल हाथी आ धमका। सभी शिष्य शोर मचा कर भागने लगे,” भागो….हाथी आया…पागल हाथी आया….”

लेकिन उन सबके बीच एक शिष्य ऐसा भी था जो इस खतरनाक परिस्थिति में भी शांत खड़ा था। उसे ऐसा करते देख उसके साथियों को आश्चर्य हुआ और उनमे से एक बोला, “ये तुम क्या कर रहे हो? देखते नहीं पागल हाथी इधर ही आ रहा है…भागो और अपनी जान बचाओ!”

इस पर शिष्य बोला, ” तुम लोग जाओ, मुझे इस हाथी से कोई भय नहीं है… गुरूजी ने कहा था ना कि हर जीव में नारायण का वास है इसलिए भागने कि कोई जरुरत नहीं।”

और ऐसा कह कर वह वहीं खड़ा रहा और जैसे ही हाथी पास आया वह उसे नमस्कार करने लगा।

लेकिन हाथी कहाँ रुकने वाला था, वह सामने आने वाली हर एक चीज को तबाह करते जा रहा था। और जैसे ही शिष्य उसके सामने आया हाथी ने उसे एक तरफ उठा कर फेंक दिया और आगे बढ़ गया।

शिष्य को बहुत चोट आई, और वह घायल हो कर वहीँ बेहोश हो गया।

जब उसे होश आया तो वह आश्रम में था और गुरूजी उसके सामने खड़े थे।

गुरूजी बोले, “हाथी को आते देखकर भी तुम वहाँ से हटे क्यों नहीं जबकि तुम्हे पता था कि वह तुम्हे चोट पहुंचा सकता है।”

तब शिष्य बोला, “गुरूजी आपने ही तो ये बात कही थी कि सभी जीवों में ईश्वर का वास होता है। इसी वजह से मैं नहीं भागा, मैंने नमस्कार करना उचित समझा।”

तब गुरूजी ने समझाया –

“बेटा तुम मेरी आज्ञा मानते हो ये बहुत अच्छी बात है मगर मैंने ये भी तो सिखाया है कि विकट परिस्थितियों में अपना विवेक नहीं खोना चाहिए । पुत्र, हाथी नारायण आ रहे थे ये तो तुमने देखा। हाथी को तुमने नारायण समझा। मगर बाकी शिष्यों ने जब तुम्हे रोका तो तुम्हे उनमे नारायण क्यों नज़र नहीं आये। उन्होंने भो तो तुम्हे मना किया था ना। उनकी बात का तुमने विश्वास क्यों नहीं किया।उनकी बात मान लेते तो तुम्हे इतनी तकलीफ का सामना नहीं करना पड़ता, तुम्हारी ऐसी हालत नहीं होती।जल भी नारायण है पर किसी जल को लोग देवता पर चढ़ाते है और किसी जल से लोग नहाते धोते हैं। हमेशा देश, काल और परिस्थिति को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए।”

मित्रों, कई बार ऐसा होता है कि किसी ज्ञानवर्धक बात का असल भाव समझने की बजाये हम उस बात में कहे गए शब्दों को पकड़ कर बैठ जाते हैं। गुरूजी ने शिष्यों को प्रत्येक जीव में नारायण देखने को कहा था जिसका अर्थ था कि हमें सभी का आदर करना चाहिए और किसी को नुक्सान नहीं पहुंचना चाहिए। लेकिन वह शिष्य बस उनके शब्दों को पकड़ कर बैठ गया और उसके जान पर बन आई।

अतः इस कहनी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों कि बात का अनुसरण तो जरुर करना चाहिए मगर विशेष परिस्थिति में अपने विवेक का प्रयोग करने से नहीं चूकना चाहिए। हमें अपनी परिस्थिति के अनुसार ही निर्णय लेना चाहिए।

Translate into Hindi to English

once upon a time. There was a Guruji. He had many disciples. He called his disciples one day and explained- God is living in all living beings, so we should greet everyone.

After a few days, Guruji organized a huge havan and sent some nearby forest to nearby forest to take wood. The disciples were picking up the woods that only there a mad elephant threatened. All the disciples started shouting and running, “Run … .hathi came … mad elephant came ….”

But there was also a disciple among them who stood still in this dangerous situation. His companions were surprised to see him do this and one of them said, “What are you doing? Do not see the crazy elephant coming here … Run and save your life! ”

On this, the disciple said, “You go, I do not have any fear with this elephant … Guruji had said that Narayana is the abode of every creature, so there is no need to escape.”

By saying this, he stood there and as soon as the elephant approached, he began to greet him.

But where the elephant was about to stop, he was going to destroy everything that came in front of him. And as soon as the disciple came in front of him, the elephant lifted him on one side and threw it and went ahead.

The disciple was badly hurt, and he got injured and became unconscious.

When he sensed, he was in the ashram and Guruji stood in front of him.

Guruji said, “Even seeing the elephant coming down, why did not you go from there, while you knew that he could hurt you.”

Then the disciple said, “Guruji, you said this only that God lives in all living beings. For this reason I did not run, I thought it good to greet. ”

Then Guruji explained –

“Son, you believe in me, this is a very good thing, but I have also taught that even in the unfortunate circumstances, you should not lose your discretion.” Son, Hathi Narayan was coming, you saw this, you saw the elephant as Narayan, but the rest of the disciples When he stopped you, why did not you see Narayan in them, even if he had forbidden you, why did not you believe him? You do not have to face such a problem, you do not have such a condition. The water is also Narayana, but people offer water to the god and people wash their bath with water, always keep in mind the country, the time and the circumstances should take a decision. . ”

Friends, many times it happens that instead of understanding the real meaning of any enlightening thing, we get caught by the words we say in that matter. Guruji had asked the disciples to look in Narayana in every organism which meant that we should respect everybody and no one should be harmed. But the disciple simply got hold of his words and got up on his life.

So, by saying this, we get this education that we should follow the others’ point of view, but in the special circumstances, we must not lose sight of our discretion. We must make decisions according to our circumstances.
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