एक गांव में एक हलवाई और एक परचून की आमने सामने दुकान थीं। परचून की दुकान वाला ईमानदारी से धंधा करता था। लेकिन हलवाई दूध में पानी मिलाता और बासी मिठाई को भी ताजा बताकर बेंच देता था।
जिससे हलवाई को ज्यादा मुनाफा होता था। वह दिन पर दिन अमीर होता जा रहा था। बेचारा परचून वाला यह सब देखता और सोचता कि पाप करके भी हलवाई कितनी तरक्की कर रहा है।
एक दिन उसके यहाँ एक महात्मा आये। उसने उनसे सारी बात बताई और कहा, “महाराज ! मुझे लगता है कि ग्रंथों में गलत लिखा है कि पाप की कमाई नाश का कारण बनती है। मैं तो देख रहा हूँ कि पाप की कमाई से उन्नति होती है।”
महाराज जी बोले, “चलो गंगा स्नान करके आते हैं। वहीं तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी मिल जायेगा।” गंगा किनारे महात्माजी ने एक बड़ा गड्ढा खुदवाया और परचूनी को उसमें खड़ा कर दिया। फिर उस गड्ढे में उन्होंने घड़ों से पानी डलवाना प्रारम्भ किया।
जब तक पानी परचूनी के गले के नीचे था। वह तब तक आराम से खड़ा रहा। जैसे ही पानी गले से ऊपर पहुंचा। वह बोला, “महाराज! अब बस करिए, नहीं तो मेरी सांसें रूक जायेंगीं।”
महाराज बोले, “बस यही बात पाप की कमाई में भी होती है। जब तक पाप गले के नीचे रहता है। उसकी कमाई में बरकत दिखाई देती है। लेकिन जैसे ही वह गले के ऊपर जाता है। किसी न किसी तरह नष्ट हो जाता है।
चोरी से, बीमारी से, आग लगने से, लूटने से या किसी अन्य प्रकार से वह नष्ट ही हो जाता है।
Moral- सीख
पाप या अन्यायपूर्ण तरीके से धन नहीं कमाना चाहिए।