बादशाह अकबर अक्सर अपने दरबारियों से कुछ अजीबोगरीब काम करने कहते रहते थे और न कर पाने पर बहुत नाराज़ हुआ करते थे. एक दिन भरे दरबार में उन्होंने बीरबल से कहा, “बीरबल! मैं चाहता हूँ कि तुम अपने कल्पनाशक्ति का इस्तेमाल कर एक ऐसा चित्र बनाओ, जिसे देखकर मैं ख़ुश हो जाऊं.”
बीरबल को चित्रकारी नहीं आती थी. वह अकबर से बोला, “हुज़ूर! मैं तो आपका मंत्री हूँ. मैं कैसे चित्र बना सकता हूँ? मुझे तो चित्रकारी आती ही नहीं है.”
बीरबल के जवाब पर अकबर नाराज़ होते हुए बोले, “मैं कुछ सुनना नहीं चाहता. तुम्हे हर हाल में मेरा हुक्म मानना होगा. यदि एक सप्ताह के अंदर तुम अपनी कल्पनाशक्ति का इस्तेमाल कर चित्र बनाकर नहीं लाये, तो तुम्हें फांसी पर लटका दिया जायेगा.”
मरता क्या न करता? बीरबल को अकबर का हुक्म मानना ही पड़ा. वह घर लौट आया और सोचने लगा कि कैसे अपनी जान बचाई जाए. आखिरकार उसे एक उपाय सूझ ही गया. फिर वह एक सप्ताह तक आराम से घर पर रहा.
एक सप्ताह बाद जब वह अकबर के दरबार में गया, तो साथ में एक चित्र भी लेकर गया. वह चित्र उसने एक कपड़े से ढक रखा था. अकबर बीरबल को देखकर ख़ुश हो गए कि उसने उनका हुक्म माना है. लेकिन जैसे ही उन्होंने चित्र के ऊपर से कपड़ा हटाया, उनका चेहरा उतर गया.
दरबारी भी हैरान हो गए कि एक पल में बादशाह की ख़ुशी कहाँ गायब हो गई? सबने बीरबल के द्वारा लाये चित्र को देखा. उसमें एक कोरा कागज भर था, जिसमें चित्र का कोई नामो-निशान नहीं था.
आग-बबूला होते हुए अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल ये क्या है?”
बीरबल बोला, ”हुज़ूर! आपका हुक्म बजाकर लाया हूँ. अपनी कल्पनाशक्ति का पूरा इस्तेमाल कर मैंने ये चित्र बनाया है.”
“ये कोई चित्र है? क्या बनाया है तुमने?” अकबर अब भी गुस्से में थे.
“हुज़ूर! ये घास खाती गाय का चित्र है.” बीरबल ने विनम्रता से जवाब दिया.
लेकिन इसमें तो न गाय नज़र आ रही है, न ही घास.”
“हुज़ूर! जैसे मैंने अपनी कल्पना का इस्तेमाल किया है, वैसे आप भी कीजिये. इस चित्र में घास नहीं हैं, क्योंकि घास गाय खा चुकी है.”
“लेकिन गाय भी तो नहीं है.”
“हुज़ूर! घास खाने के बाद भला गाय यहाँ क्या करेगी? वह भी चली गई है.” बीरबल मासूमियत से बोला.
ये सुनकर अकबर जोर से हंस पड़े और उनका गुस्सा काफूर हो गया. उन्होंने बीरबल को उसकी अक्लमंदी के लिए पुरुस्कृत किया ||