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परमा एकादशी

32भगवान विष्‍णु

इस दिन व्रत और दान को उत्तम बताया गया है। परमा एकादशी के बारे में एक कहानी प्रचलित है। सुमेधा नामक एक ब्राह्मण गरीबी में दिन गुजार रहे थे। एक दिन ब्राह्मण के घर कौण्डिल्य ऋषि पधारे।

सुमेधा की सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि ने परमा एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। ऋषि ने ब्राह्मण को यह भी बताया कि देवताओं के खजांची कुबेर ने भी यह व्रत रखा था। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने कुबेर को देवताओं का खजांची बनाया। परमा एकादशी धनदायक और मुक्ति प्रदान करने वाली है।

व्रत पूजन विधि
इस व्रत के दिन भगवान विष्णु का ध्यान करके उनके निमित्त व्रत रखना चाहिए। व्रत करने वाले को घी का दीपक जलाकर फल, फूल, तिल, चंदन एवं धूप जलाकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में विष्णु सहस्रनाम एवं विष्णु स्तोत्र के पाठ का बड़ा महत्व है। व्रत करने वाले को जब भी समय मिले इनका पाठ करना चाहिए।

दान का महत्व 
शास्त्रों में परमा एकादशी को दान के लिए भी उत्तम बताया गया है। इस दिन धर्मिक पुस्तक, अनाज, फल, मिठाई दान करने का विधान है। जो लोग किसी कारण यह व्रत नहीं कर सकते उन्हें व्रत का पुण्य प्राप्त करने के लिए इन वस्तुओं का दान करना चाहिए। दान करते समय यह ध्यान रखें कि, धार्मिक पुस्तक उसे ही दान करें जो ईश्वर एवं धार्मिक पुस्तकों के प्रति आस्था रखता हो।

 

अधिक मास में कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है वह हरिवल्लभा अथवा परमा एकदशी के नाम से जानी जाती है ऐसा श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है (additional months krishna paksha Parma Ekadashi). भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा व विधि भी बताई थी. भगवान में श्रद्धा रखने वाले आप भक्तों के लिए यही कथा एवं विधि प्रस्तुत है.

परमा एकादशी कथा (Parma Ekadasi Vrat Katha)

: काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास करता था. ब्राह्मण धर्मात्मा था और उसकी पत्नी पतिव्रता. यह परिवार स्वयं भूखा रह जाता परंतु अतिथियों की सेवा हृदय से करता. धनाभाव के कारण एक दिन ब्रह्मण ने ब्रह्मणी से कहा कि धनोपार्जन के लिए मुझे परदेश जाना चाहिए क्योंकि अर्थाभाव में परिवार चलाना अति कठिन है.

ब्रह्मण की पत्नी ने कहा कि मनुष्य जो कुछ पाता है वह अपने भाग्य से पाता है. हमें पूर्व जन्म के फल के कारण यह ग़रीबी मिली है अत: यहीं रहकर कर्म कीजिए जो प्रभु की इच्छा होगी वही होगा। ब्रह्मण को पत्नी की बात ठीक लगी और वह परदेश नहीं गया. एक दिन संयोग से कण्डिल्य ऋषि उधर से गुजर रहे थे तो उस ब्रह्मण के घर पधारे। ऋषि को देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषिवर की खूब आवभगत की.

ऋषि उनकी सेवा भावना को देखकर काफी खुश हुए और ब्राह्मण एवं ब्राह्मणी द्वारा यह पूछे जाने पर की उनकी गरीबी और दीनता कैसे दूर हो सकती है, उन्होंने कहा मल मास में जो कृष्ण पक्ष की एकादशी (Mal mass Krishna Paksha Ekadashi) होती है वह परमा एकादशी (Parma Ekadasi) के नाम से जानी जाती है, इस एकादशी का व्रत आप दोनों रखें. ऋषि ने कहा यह एकादशी धन वैभव देती है तथा पाप का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली है. किसी समय में धनाधिपति कुबेर ने इस व्रत का पालन किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया.

समय आने पर सुमेधा नामक उस ब्राह्मण ने विधि पूर्वक इस एकादशी का व्रत रखा जिससे उनकी गरीबी का अंत हुआ और पृथ्वी पर काफी समय तक सुख भोगकर वे पति पत्नी श्री विष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गये.

परमा एकादशी व्रत विधान (Parma Ekadashi Vrat vidhan)

परमा एकादशी व्रत की विधि बड़ी ही कठिन है. इस व्रत में पांच दिनों तक निराहार रहने का व्रत लिया जाता है. व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल एवं फूल लेकर संकल्प करना होता है. संकलप के बाद भगवान की पूजा करनी होती है फिर पांच दिनों तक श्री हरि में मन लगाकर व्रत का पालन करना होता है. पांचवें दिन ब्रह्मण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना होता है.

 

 

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