महाराज रणजीत सिंह एक बार घोड़े पर सवार होकर सैनिकों के साथ कहीं जा रहे थे। अचानक एक पत्थर आकर उनको लगा। पत्थर मारने वाले की तलाश में सैनिक एक वृद्धा चारों ओर दौड़ पड़े। थोड़ी देर में सैनिक को पकड़ कर लायें और कहा-‘इसी दुष्टा ने पत्थर मारा हैं।
महाराज ने पास बुलाकर पत्थर मारने का कारण पूछा । वृद्धा कहा-मेरे बच्चे दिन हैं। घर में ने महाराज दो से भूखे अन्न का एक दाना भी नही है। भोजन की तलाश में घर से निकली तो देखा एक पेड़ फलों से लदा है। मैंने पत्थर मारकर फल गिराने चाहे। इसी बीच एक पत्थर आपको लग गया है। मैं क्षमा चाहती हूँ।
महाराज रणजीत सिंह ने कहा-इसे कुछ आशर्फियाँ देकर छोड़ दो। सेनापति ने चकित होकर कहा-महाराज यह कैसा न्याय! इसे तो सजा मिलनी चाहिये। रणजीत सिंह ने हँसकर उत्तर दिया-पत्थर मारने पर जब पेड़ भी मीठे फल दे सकता है तो मैं मनुष्य होकर उसे क्यों निराश कहूं?