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तडपत है मन दर्श की खातिर


तडपत है मन दर्श की खातिर
श्याम मोहे तरसाओ ना
तडपत है मन दर्श की खातिर
ये सांसे कही रुक न जाए,
आओ भगवन आओ ना
तडपत है मन दर्श की खातिर

क्या मैं यत्न करू मोरे भगवन
दर्श तेरा कर पाऊ मैं
दर पर तेरे कब से खड़ा हु
आके दर्श दिखाओ न
तडपत है मन दर्श की खातिर

मोर मुकट सिर सवाली सूरत,
सोहे बंसुरिया होठो पर,
एसी छवि आँखों में वसी है,
मोहे श्याम रुलाओ न
तडपत है मन दर्श की खातिर

तू दाता को भाग्ये विध्याता
तू संसार का रखवाला,
अपने भगतो की तू सुनता आओ देर लगाओ ना
तडपत है मन दर्श की खातिर……..

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