Breaking News

राजा विदूरथ की कथा

 

Raajaa vidoorath kee kathaa
Raajaa vidoorath kee kathaa

विख्यातकीर्ति राजा विदूरथ के सुनीति और सुमति नामक दो पुत्र थे । एक समय विदूरथ शिकार के लिए वन में गये, वहां ऊपर निकले हुए पृथ्वी के मुख के समान एक विशाल गड्ढे को देखकर वे सोचने लगे कि यह भीषण गर्त क्या है ? यह भूमि पृथ्वी तो नही हो सकता ? वे इस प्रकार चिंता कर ही रहे थे कि उस निर्जन वन में उन्होंने सुव्रत नामक एक तपस्वी ब्राह्मण को समीप आते हुए देखा । आश्चर्यचकित राजा ने उस तपस्वी को भूमि के उस भयंकर गड्ढे को दिखाकर पूछा कि ‘यह क्या है ?’

ऋषि ने कहा – ‘महिपाल ! क्या आप इसे नहीं जानते ? रसातल में अतिशय बलशाली उग्र नाम का दानव निवास करता है । वह पृथ्वी को विदीर्ण करता है, अत: उसे कुजृम्भ कहा जाता है । पूर्वकाल में विश्वकर्मा ने सुनंद नामक जिस मुसल का निर्माण किया था, उसे इस दुष्ट ने चुरा लिया है । यह उसी मूसल से रण में शत्रुओं को मारता है । पाताल में निवास करता हुआ वह असुर उस मूसल से पृथ्वी को विदीर्ण कर अन्य सभी असुरों के लिए द्वारों का निर्माण करता है । उसने ही उस मूसलरूपी शस्त्र से पृथ्वी को इस स्थानपर विदीर्ण किया है । उस पर विजय पाये बिना आप कैसे पृथ्वी का भोग करेंगे ? मूसलरूपी आयुधधारी महाबली उग्र यज्ञों का विध्वंस, देवों को पीड़ित और दैत्यों को संतुष्ट करता है ।यदि आप पाताल में रहनेवाले उस शत्रु को मारेंगे तभी सम्राट बन सकेंगे । उस मूसल को लोग सौनंद कहते हैं । मनीषिगण उस मूसल के बल और अबल के प्रसंग में कहते हैं कि उस मूसल को जिस दिन नारी छू लेती है, उसी क्षण वह शक्तिहीन हो जाता है और दूसरे दिन शक्तिशाली हो जाता है । आपके नगर के समीप में ही उसने पृथ्वी में छिद्र कर दिया है, फिर आप कैसे निश्चित रहते हैं ? ’ ऐसा कहकर ऋषि के प्रस्थान करने पर राजा अपने नगर में लौटकर उस विषय पर मंत्रियों के साथ विचार करने लगे । मूसल के प्रभाव एवं उसकी शक्तिहीनता आदि के विषय में उन्होंने जो कुछ सुना था, वह सब मंत्रियों के सम्मुख व्यक्त किया । मंत्रियों से परामर्श करते समय राजा के समीप में बैठी हुई उनकी पुत्री मूदावती ने भी सभी बातें सुनी ।

इस घटना के कुछ दिनों के बाद अपनी सखियों से घिरी हुई मुदावती जब उपवन में थी, तब कुजृम्भ दैत्य ने उस वयस्क कन्या का अपहरण कर लिया । यह सुनकर राजा के नेत्र क्रोध से लाल हो गये । उन्होंने अपने दोनों कुमारों से कहा कि ‘तुमलोग शीघ्र जाओ और निर्विन्ध्या नदी के तट प्रांत में जो गड्ढा है, उससे रसातल में जाकर मुदावती का अपहरण करने वाले का विनाश करो ।’

इसके बाद परम क्रुद्ध दोनों राजकुमारों ने उस गड्ढे को प्राप्त कर पैर के चिन्हों का अनुसरण करते हुए सेनाओं के साथ वहां पहुंचकर कुजृम्भ के साथ युद्ध आरंभ कर दिया । माया के बल से बलशाली दैत्यों ने सारी सेना को मारकर उन दोनों राजकुमारों को भी बंदी बना लिया । पुत्रों के बंदी होने का समाचार सुनकर राजा को अतिशय दु:ख हुआ । उन्होंने सैनिकों को बुलाकर कहा – ‘जो उस दैत्य को मारकर मेरी कन्या और पुत्रों को मुक्त करायेगा, उसी को मैं अपनी विशालनयना कन्या मुदावती को दे दूंगा ।’

राजा ने पुत्रों और कन्या के बंधन युक्त होने से निराश होकर अपने नगर में भी उपर्युक्त घोषणा करा दी । उस घोषणा को शस्त्रविद्या में निपुण भनन्दन के पुत्र बलवान वत्सप्रीने भी सुना । उसने अपने पिता के श्रेष्ठ मित्र महाराज से विनयावनत हो प्रणाम कर कहा – ‘आप मुझे आज्ञा दें, मैं आपके प्रताप से उस दैत्य को मारकर आपके दोनों पुत्रों और कन्या को छुड़ा लाऊंगा ।’

अपने प्रिय मित्र के पुत्र को आनंदपूर्वक आलिंगन कर राजा ने कहा – ‘वत्स ! जाओ, तुम्हें अपने कार्य में सफलता प्राप्त हो ।’ वत्सप्री तलवार, धनुष, गोदा, अंगुलित्र आदि अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित हो उस गर्त के द्वारा शीघ्र ही पाताल में चला गया । उस राजपुत्र ने अपने धनुष की डोरी का भयंकर शब्द किया, जिससे निखिल पाताल विवर गूंज उठा । प्रत्यञ्चा के शब्द को सुनकर अतिशय क्रोधाविष्ट दानवपति कुजृम्भ अपनी सेना के साथ आया । फिर तो दोनों सेनाओं में युद्ध छिड़ गया । वह दानव तीन दिनों तक उसके साथ युद्ध करने के बाद कोप से आविष्ट हो मूसल लाने के लिए दौड़ा । प्रजापति विश्वकर्मा के द्वारा निर्मित तथा गंध, माल्य एवं धूप से पूजित वह मूसल अंत:पुर में रखा रहता था । उधर मूसल के प्रभाव से अवगत मुदावती ने श्रद्धावनत होकर उस मूसल का पुन: पुन: स्पर्श किया ।

इसके बाद असुरपति ने रणभूमि में उपस्थित होकर उस मूसल से युद्ध आरंभ किया, किंतु शत्रुओं के बीच उसका पात व्यर्थ होने लगा । परमास्त्र सौनंद मूसल के निर्वीर्य होने पर वह दैत्य अस्त्र शस्त्र के द्वारा ही संग्राम में शत्रु के साथ युद्ध करने लगा । राजकुमार ने उसे रथहीन कर दिया और कालाग्नि के समान आग्नेयास्त्र से उस काल के गाल में भेज दिया । तत्क्षम पाताल में स्थित सर्पों ने महान आनंद मनाया । राजपुत्र पर पुष्पवृष्टि होने लगी । गंधर्वों ने संगीत आरंभ किया और देववाद्य बजने लगे । उस राजपुत्र ने दैत्य का विनाश कर सुनीति और सुमति नामक दोनों राजपुत्रों एवं कृशांगी मुदावती को मुक्त किया ।

कुजृम्भ के मारे जाने पर शेष नामक नागराज भगवान अन्त ने उस मूसल को ले लिया । उन्होंने अतिशय आनंद के साथ सौनंद मूसल का गुण जाननेवाली मुदावती का नाम सौनंदा रखा । राजपुत्र वत्सप्री भी दोनों राजकुमारों और राजकन्या को शीघ्र ही राजा के पास ले आया और उसने प्रणाम कर निवेदन किया – ‘तात ! आपकी आज्ञा के अनुसार आपके दोनों कुमारों और मुदावती को मैं छुड़ा लाया हूं, अब मेरा क्या कर्तव्य है, आज्ञा प्रदान करें ।’ राजा ने कहा – ‘आज मैं तीन कारणों से देवों के द्वारा भी प्रशंसित हुआ हूं -पर्थम तुम को जामात के रूप में प्राप्त किया, द्वितीय शत्रु विनष्ट हुआ, तृतीय मेरे दोनों पुत्र और कन्या वहां से अक्षत – शरीर पुन: लौट आये । राजपुत्र ! आज शुभ दिन में मेरी आज्ञा के अनुसार तुम मेरी पुत्री सुंदरी मुदावती का प्रीतिपूर्वक पाणिग्रहण करो और मुझे सत्यवादी बनाओ ।’

वत्सप्री ने कहा – ‘तात की आज्ञा का पालन मुझे अवश्य करना चाहिए, अत: आप जो कहेंगे मैं उसका पालन करूंगा, आप जानते ही हैं कि पूज्यजनों की आज्ञा के पालन से मैं कभी भी पराङ्मुख नहीं होता ।’

इसके बाद राजेंद्र विदूरथ ने कन्या मुदावती और भनंदपुत्र वत्सप्री का विवाह संपन्न किया । विवाह हो जाने पर दंपत्ति रमणीय स्थानों और महल के शिखरों पर विहार करने लगे । कालक्रम से वत्सप्री के पिता भनंदन वृद्ध होकर वन में चले गये और वत्सप्री राजा होकर यज्ञों का अनुष्ठानएवं धर्मानुसार प्रजा का पालन करने लगे । प्रजा भी उन महात्मा से पुत्र के समान प्रतिपालित होकर उत्तरोत्तर समृद्धिशाली होने लगी ।

To English Wish4me

vikhyaatakeerti raaja vidoorath ke suneeti aur sumati naamak do putr the . ek samay vidoorath shikaar ke lie van mein gaye, vahaan oopar nikale hue prthvee ke mukh ke samaan ek vishaal gaddhe ko dekhakar ve sochane lage ki yah bheeshan gart kya hai ? yah bhoomi prthvee to nahee ho sakata ? ve is prakaar chinta kar hee rahe the ki us nirjan van mein unhonne suvrat naamak ek tapasvee braahman ko sameep aate hue dekha . aashcharyachakit raaja ne us tapasvee ko bhoomi ke us bhayankar gaddhe ko dikhaakar poochha ki ‘yah kya hai ?’

rshi ne kaha – ‘mahipaal ! kya aap ise nahin jaanate ? rasaatal mein atishay balashaalee ugr naam ka daanav nivaas karata hai . vah prthvee ko videern karata hai, at: use kujrmbh kaha jaata hai . poorvakaal mein vishvakarma ne sunand naamak jis musal ka nirmaan kiya tha, use is dusht ne chura liya hai . yah usee moosal se ran mein shatruon ko maarata hai . paataal mein nivaas karata hua vah asur us moosal se prthvee ko videern kar any sabhee asuron ke lie dvaaron ka nirmaan karata hai . usane hee us moosalaroopee shastr se prthvee ko is sthaanapar videern kiya hai . us par vijay paaye bina aap kaise prthvee ka bhog karenge ? moosalaroopee aayudhadhaaree mahaabalee ugr yagyon ka vidhvans, devon ko peedit aur daityon ko santusht karata hai .yadi aap paataal mein rahanevaale us shatru ko maarenge tabhee samraat ban sakenge . us moosal ko log saunand kahate hain . maneeshigan us moosal ke bal aur abal ke prasang mein kahate hain ki us moosal ko jis din naaree chhoo letee hai, usee kshan vah shaktiheen ho jaata hai aur doosare din shaktishaalee ho jaata hai . aapake nagar ke sameep mein hee usane prthvee mein chhidr kar diya hai, phir aap kaise nishchit rahate hain ? ’ aisa kahakar rshi ke prasthaan karane par raaja apane nagar mein lautakar us vishay par mantriyon ke saath vichaar karane lage . moosal ke prabhaav evan usakee shaktiheenata aadi ke vishay mein unhonne jo kuchh suna tha, vah sab mantriyon ke sammukh vyakt kiya . mantriyon se paraamarsh karate samay raaja ke sameep mein baithee huee unakee putree moodaavatee ne bhee sabhee baaten sunee .

is ghatana ke kuchh dinon ke baad apanee sakhiyon se ghiree huee mudaavatee jab upavan mein thee, tab kujrmbh daity ne us vayask kanya ka apaharan kar liya . yah sunakar raaja ke netr krodh se laal ho gaye . unhonne apane donon kumaaron se kaha ki ‘tumalog sheeghr jao aur nirvindhya nadee ke tat praant mein jo gaddha hai, usase rasaatal mein jaakar mudaavatee ka apaharan karane vaale ka vinaash karo .’

isake baad param kruddh donon raajakumaaron ne us gaddhe ko praapt kar pair ke chinhon ka anusaran karate hue senaon ke saath vahaan pahunchakar kujrmbh ke saath yuddh aarambh kar diya . maaya ke bal se balashaalee daityon ne saaree sena ko maarakar un donon raajakumaaron ko bhee bandee bana liya . putron ke bandee hone ka samaachaar sunakar raaja ko atishay du:kh hua . unhonne sainikon ko bulaakar kaha – ‘jo us daity ko maarakar meree kanya aur putron ko mukt karaayega, usee ko main apanee vishaalanayana kanya mudaavatee ko de doonga .’

raaja ne putron aur kanya ke bandhan yukt hone se niraash hokar apane nagar mein bhee uparyukt ghoshana kara dee . us ghoshana ko shastravidya mein nipun bhanandan ke putr balavaan vatsapreene bhee suna . usane apane pita ke shreshth mitr mahaaraaj se vinayaavanat ho pranaam kar kaha – ‘aap mujhe aagya den, main aapake prataap se us daity ko maarakar aapake donon putron aur kanya ko chhuda laoonga .’

apane priy mitr ke putr ko aanandapoorvak aalingan kar raaja ne kaha – ‘vats ! jao, tumhen apane kaary mein saphalata praapt ho .’ vatsapree talavaar, dhanush, goda, angulitr aadi astr shastron se susajjit ho us gart ke dvaara sheeghr hee paataal mein chala gaya . us raajaputr ne apane dhanush kee doree ka bhayankar shabd kiya, jisase nikhil paataal vivar goonj utha . pratyancha ke shabd ko sunakar atishay krodhaavisht daanavapati kujrmbh apanee sena ke saath aaya . phir to donon senaon mein yuddh chhid gaya . vah daanav teen dinon tak usake saath yuddh karane ke baad kop se aavisht ho moosal laane ke lie dauda . prajaapati vishvakarma ke dvaara nirmit tatha gandh, maaly evan dhoop se poojit vah moosal ant:pur mein rakha rahata tha . udhar moosal ke prabhaav se avagat mudaavatee ne shraddhaavanat hokar us moosal ka pun: pun: sparsh kiya .

isake baad asurapati ne ranabhoomi mein upasthit hokar us moosal se yuddh aarambh kiya, kintu shatruon ke beech usaka paat vyarth hone laga . paramaastr saunand moosal ke nirveery hone par vah daity astr shastr ke dvaara hee sangraam mein shatru ke saath yuddh karane laga . raajakumaar ne use rathaheen kar diya aur kaalaagni ke samaan aagneyaastr se us kaal ke gaal mein bhej diya . tatksham paataal mein sthit sarpon ne mahaan aanand manaaya . raajaputr par pushpavrshti hone lagee . gandharvon ne sangeet aarambh kiya aur devavaady bajane lage . us raajaputr ne daity ka vinaash kar suneeti aur sumati naamak donon raajaputron evan krshaangee mudaavatee ko mukt kiya .

kujrmbh ke maare jaane par shesh naamak naagaraaj bhagavaan ant ne us moosal ko le liya . unhonne atishay aanand ke saath saunand moosal ka gun jaananevaalee mudaavatee ka naam saunanda rakha . raajaputr vatsapree bhee donon raajakumaaron aur raajakanya ko sheeghr hee raaja ke paas le aaya aur usane pranaam kar nivedan kiya – ‘taat ! aapakee aagya ke anusaar aapake donon kumaaron aur mudaavatee ko main chhuda laaya hoon, ab mera kya kartavy hai, aagya pradaan karen .’ raaja ne kaha – ‘aaj main teen kaaranon se devon ke dvaara bhee prashansit hua hoon -partham tum ko jaamaat ke roop mein praapt kiya, dviteey shatru vinasht hua, trteey mere donon putr aur kanya vahaan se akshat – shareer pun: laut aaye . raajaputr ! aaj shubh din mein meree aagya ke anusaar tum meree putree sundaree mudaavatee ka preetipoorvak paanigrahan karo aur mujhe satyavaadee banao .’

vatsapree ne kaha – ‘taat kee aagya ka paalan mujhe avashy karana chaahie, at: aap jo kahenge main usaka paalan karoonga, aap jaanate hee hain ki poojyajanon kee aagya ke paalan se main kabhee bhee paraanmukh nahin hota .’

isake baad raajendr vidoorath ne kanya mudaavatee aur bhanandaputr vatsapree ka vivaah sampann kiya . vivaah ho jaane par dampatti ramaneey sthaanon aur mahal ke shikharon par vihaar karane lage . kaalakram se vatsapree ke pita bhanandan vrddh hokar van mein chale gaye aur vatsapree raaja hokar yagyon ka anushthaanevan dharmaanusaar praja ka paalan karane lage . praja bhee un mahaatma se putr ke samaan pratipaalit hokar uttarottar samrddhishaalee hone lagee .

Check Also

pati-patni

सहानुभूति और समर्पण

यह कहानी एक साधारण बुखार के दौरान पत्नी के प्यार और सहारे की गहराई को दिखाती है। एक अद्भुत बंधन जो बीमारी के समय में भी अदभुत उत्साह और....