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रथ सप्तमी Ratha Saptami Vrat Vidhi

76रथ सप्तमी व्रत विधि 

भगवान सूर्य देव को समर्पित “रथ सप्तमी” का व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है। मान्यता है इस दिन किए गए स्नान, दान, होम, पूजा आदि सत्कर्म हजार गुना अधिक फल देते हैं।
रथ सप्तमी व्रत विधि: भविष्यपुराण अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को एक समय भोजन करना चाहिए और षष्ठी तिथि को उपवास कर भगवान सूर्य की पूजा करनी चाहिए। सप्तमी में प्रात: काल विधिपूर्वक पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। साथ ही इस दिन अगर संभव हो तो भगवान सूर्य की रथयात्रा करानी चाहिए।

इस दिन सूर्य भगवान की आराधना जो श्रद्धालु विधिवत तरीके से करते हैं उन्हें पुत्र, आरोग्य और धन की प्राप्ति होती है. वर्तमान समय में सूर्य का बहुत महत्व है. जीवों तथा वनस्पति को पोषण देने वाला सूर्य है.

रथ आरोग्य सप्तमी का महत्व

इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा भगवान सूर्य का व्रत रखा जाता है. सूर्य को प्राचीन ग्रंथों में आरोग्यकारक माना गया है ( In ancient scriptures, Sun is considered to be Arogyakarak). सूर्य की रोशनी के बिना संसार में कुछ भी नहीं होगा. सूर्य की किरणों में विटामिन डी होता है. सूर्य की उपासना से शरीर निरोग रहता है. इस सप्तमी को जो व्यक्ति सूर्य की उपासना तथा व्रत करते हैं उनके सभी रोग ठीक हो जाते हैं. वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य की रोशनी में बहुत से चमत्कारी गुण छिपे हैं. जिनके प्रभाव से रोगों का अंत हो जाता है. वर्तमान समय में भी सूर्य चिकित्सा का उपयोग आयुर्वेदिक पद्धति तथा प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता है. जिन व्यक्तियों को शारिरिक दुर्बलता, हड्डियों की कमजोरी या हड्डियों के जोडो़ में दर्द रहता है उन्हें भगवान सूर्य की आराधना करने से रोग से मुक्ति मिलने की संभावना बनती है. सूर्य की किरणों में कीटाणुओं का नाश करने वाले तत्व की प्रधानता होती है. सूर्य की ओर मुख करके सूर्य स्तुति करने से शारीरिक चर्मरोग आदि नष्ट हो जाते हैं. पुत्र प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का महत्व माना गया है. इस व्रत को श्रद्धा तथा विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है.

रथ आरोग्य सप्तमी व्रत विधि |

इस दिन सुबह जल्दी उठें. दैनिक कर्म से निवृत होकर घर के समीप बने किसी जलाशय, नदी, नहर में सूर्योदय से पहले स्नान करना चाहिए.  स्नान करने के बाद निकलते हुए सूर्य की आराधना करनी चाहिए.  भगवान सूर्य को जलाशय, नदी अथवा नहर के समीप खडे़ होकर भगवान सूर्य को अर्ध्यदान देना चाहिए. शुद्ध घी से दीपक जलाना चाहिए. कपूर, धूप, लाल पुष्प आदि से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए. उसके बाद दिन भर भगवान सूर्य का मनन करना चाहिए. इस दिन अपाहिजों, गरीबों तथा ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिए. दान के तौर पर वस्त्र, खाना तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं जरुरतमंद व्यक्तियों को दें सकते हैं.

माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन भगवान सूर्य के लिए रखे जाने वले व्रत के लिए एक अन्य मत से उस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर बहते हुए जल में स्��ान करना चाहिए. स्नान करते समय अपने सिर पर बदर वृक्ष और अर्क पौधे की सात-सात पत्तियाँ रखकर स्नान करना चाहिए. स्नान करने के पश्चात सात प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि को जल में मिलाकर उगते हुए भगवान सूर्य को जल देना चाहिए. सूर्य को भक्ति तथा विश्वास के साथ प्रणाम करना चाहिए. उसके पश्चात सूर्य मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए. सूर्य मंत्र है :- “ऊँ घृणि सूर्याय नम:”  अथवा “ऊँ सूर्याय नम:”
इसके अतिरिक्त यदि जातक कर सकते हैं तो “आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ करें.

आरोग्य व्रत सप्तमी कथा |

माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है. कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था. एक बार दुर्वसा ऋषि श्रीकृष्ण से मिलने के लिए आये. दुर्वासा ऋषि अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे. उनके क्रोध से सभी परिचित थे परन्तु शाम्ब को अनके क्रोध का ज्ञान नहीं था. दुर्वासा ऋषि बहुत तप करते थे. जब वह श्रीकृष्ण से मिलने आये तब भी एक बहुत लम्बे समय तक तप करके आये थे. तप करने से उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था. श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ने जब दुर्वासा ऋषि के कमजोर शरीर को देखा तब वह जोर से हंसने लगा. दुर्वासा ऋषि को शाम्ब के हंसने का जब कारण पता चला तब अपने क्रोधी स्वभाव के कारण उन्हें बहुत क्रोध आ गया और शाम्ब की धृष्ठता को देखकर उन्हों ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया. ऋषि के श्राप देते ही शाम्ब के शरीर पर तुरन्त असर होना आरम्भ हो गया.

शाम्ब के शरीर की चिकित्सकों ने हर तरह से चिकित्सा की परन्तु कुछ भी लाभ नहीं हुआ. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब को सूर्य भगवान की उपासना करने के लिए कहा. शाम्ब अपने पिता की आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना करनी आरम्भ कर दी. कुछ समय बीतने के बाद शाम्ब कुष्ठ रोग से मुक्त हो गये.

उपरोक्त कथा के अतिरिक्त रथ आरोग्य सप्तमी के साथ एक अन्य कथा भी जुडी़ है. उस कथा के अनुसार छठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के दरबार में एक कवि थे जिनका नाम मयूरभट्ट था. मयूर भट्ट एक बार कुष्ठ रोग से पीडि़त हो गये. रोग से पीडि़त होने पर मयूर भट्ट ने सूर्य सप्तक की रचना की. इस रचना के पूर्ण होते ही सूर्य्देव ने प्रसन्न होकर उन्हें रोगमुक्त कर दिया.

 

Ratha Saptami Vrat

Saptami Tithi is dedicated to Lord Surya. Shukla Paksha Saptami in Magha month is known as Ratha Saptami or Magha Saptami. It is believed that Lord Surya Dev started enlightening the whole world on Ratha Saptami day which was considered as birth day of God Surya. Hence this day is also known as Surya Jayanti.

Ratha Saptami is highly auspicious day and it is considered as auspicious as Surya Grahan for Dan-Punya activities. By worshipping Lord Surya and observing fast on this day one can get rid of all type of sins. It is believed that seven types of sins done, knowingly, unknowingly, by words, by body, by mind, in current birth and in previous births are purged by worshipping Lord Surya on this day.

On Ratha Saptami one should take bath during Arunodaya. Ratha Saptami Snan is one of the important rituals and is suggested during Arunodaya only. Arunodaya period prevails for four Ghatis (approx. one and half hour for Indian locations if we consider one Ghati duration as 24 minutes) before sunrise. Taking bath before sunrise during Arunodaya keeps one healthy and free from all types of ailments and diseases. Because of this belief Ratha Saptami is also known as Arogya Saptami. Taking bath in water body like river, canal is preferred over taking bath at home. DrikPanchang.com lists Arunodaya period and sunrise time for most cities across the globe.

After taking bath one should worship Lord Surya during sunrise by offering Arghyadan (अर्घ्यदान) to Him. Arghyadan is performed by slowly offering water to Lord Surya from small Kalash with folded hand in Namaskar Mudra while facing Lord Sun in standing position. After this one should light Deepak of pure Ghee and worship Sun God with Kapoor, Dhup, and red flowers. By doing morning Snan, Dan-Punya and Arghyadan to Suryadev one is bestowed with long life, good health and prosperity.

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