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पवित्र भावना का प्रतिफल

नन्हीं सुरेखा के मन में यह प्रश्न उठता था कि, “राधा माँ उसमें और सुमन में भेदभाव क्यों करती है? मेरी माँ मुझे छोड़कर भगवान के घर चली गई उसमें मेरा तो कोई दोष नहीं है।” सुरेश जी ने दूसरी शादी की तो सुरेखा को लगा कि उसे माँ मिल जाएगी। सुरेखा ने अपनी माँ की तरह ही चाहा राधा माँ को।

सुलेखा की उम्र पॉंच साल की थी, वह प्यार से मॉं के गले में बाहें डालती तो वो झिड़क देती, वह सोचती की जब में माँ के गले में बाहें डालती थी तो वे कितना प्यार करती थी। फिर धीरे- धीरे सुरेखा राधा माँ से दूर रहने लगी, जितना जरूरी होता उतना ही बोलती, फिर उसकी एक बहन आ गई।

उसका नाम सुमन रखा, सुरेखा उसे बहुत प्यार करती, वह धीरे-धीरे बढ़ी हो रही थी, जब वो राधा माँ के गले में बाहें डालती तो,वे उसे बहुत प्यार करती, सुरेखा की ऑंखें बरबस भींग जाती, जिसे वह सबसे छुपा लेती थी। बारहवीं पास करने के बाद सुरेखा की पढ़ाई छुड़वा दी, राधा माँ का‌ कहना था कि “लड़की को पराये घर भेजना है, तो अब उसे घर के काम काज सीखना चाहिए।”

सुरेश जी पर राधा माँ ने ऐसी मोहिनी डाली थी, कि उनकी हर बात उन्हें सही लगती थी। सुरेखा का विवाह तय हो गया, वर की पहली पत्नी शांत हो गई थी, और दो छोटे बच्चे थे, राधा ने उनके परिवार के तारीफ के पुल बांध दिए तो, सुरेश जी ने भी स्वीकृति दे दी। बेचारी सुरेखा क्या करती विवाह हो गया और वह ससुराल आ गई। सुमन को आगे की पढाई के लिए कॉलेज में प्रवेश दिलाया, सुरेखा की कितनी इच्छा थी आगे पढ़ने की….. राधा माँ के व्यवहार को देख उसके मन में, माँ के प्रति कड़वाहट भर गई। ससुराल में दो जुड़वा बच्चे थे लव और कुश, उसे उनकी माँ की जिम्मेदारी निभानी थी।

वह उन बच्चों को बहुत प्यार से रखती, शादी के दो साल बाद उसको भी एक बेटा हुआ नाम रखा लक्ष वह तीनों बच्चों को एक ऑंख से देखती थी, जरा भी भेद नहीं करती। यही कारण है उसे अपने पति का भरपूर प्यार मिल रहा था। वह सोचती बच्चे भगवान का रूप हैं, ये मुझे अपनी माँ मानते हैं, इनमें और लक्ष में क्या अन्तर है। आज मेरे मन में राधा माँ के प्रति जो कड़वाहट है। वह इन बच्चों के मन में नहीं आने दूॅंगी मैं तीनों को हमेशा एक ऑंख से देखूँगी। उसकी पवित्र भावना को बड़े होने पर उन बच्चों ने भी समझा,अपनी माँ को दिल से सम्मान दिया, और उसकी ताकत बने।

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