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रॉबिन हुड की कहानी टंट्या भील (टंट्या मामा)

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1842 में खंडवा जिले के बड़दा गांव में जन्मे टंट्या भील (टंट्या मामा) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें भारतीय रॉबिन हुड भी कहा जाता है। 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद, अंग्रेजों ने बेहद कठोर कार्रवाई की, जिसके बाद ही टंट्या भील ने अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ना शुरू किया। वह उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे, जिन्होंने बारह साल तक ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया।
विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए, अपने अदम्य साहस और जुनून के बल पर वह 12 साल तक लड़ते रहे और आदिवासियों और आम लोगों की भावनाओं के प्रतीक बने। वह ब्रिटिश सरकार के सरकारी खजाने और उनके चाटुकारों की संपत्ति को लूटकर गरीबों और जरूरतमंदों में बांट देते थे।
टंट्या भील, गुरिल्ला युद्ध में निपुण थे। लेकिन एक लंबी लड़ाई के बाद, वर्ष 1888-89 में राजद्रोह के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जबलपुर जेल ले जाया गया, जहां ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें अमानवीय रूप से प्रताड़ित किया। टंट्या भील की गिरफ्तारी की ख़बर 10 नवंबर 1889 को न्यूयॉर्क टाइम्स के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित की गई थी। इस ख़बर में उन्हें ‘भारत का रॉबिन हुड’ बताया गया था।
19 अक्टूबर 1889 को उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई थी। भारत के वीर सपूत टंट्या भील को शत् शत् नमन!

ये एक अकेला क्रांतिकारी ब्रिटिशों की नींद उड़ाने के लिए काफी था

टंट्या मामा के शौर्य और साहस का गवाह है महू खण्डवा रेलवे ट्रेक, इनके बीच के जंगल, उसमे रहने वाले आदिवासी समेत समग्र समाज जो उन्हें आज भी भगवान की तरह पूजते है आज पातालपानी एक पिकनिक स्पॉट के रूप में प्रसिद्ध है | डरे हुए अंग्रेज जानते थे कहीं जनता उनके नायक का मृत शरीर देख कर छावनी में आग न लगा दें। स्वतन्त्रता, समता, स्वाभिमान, सम्मान और सांकृतिक पंरपराओं के रक्षा की आवाज है टंट्या मामा भील सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक शोषण के विरुद्ध वंचित, पीड़ित, प्रताड़ित, उपहासित श्रमवीरों का काम पूरा होने तक #टंट्या_भील रूप बदल कर आते रहेगा।

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